गर्मी के मौसम में जो अत्यंत तेज और गर्म हवाएं चलती हैं, उन्हें हम लू कहते हैं। ये हवाएं अत्यंत तेज चलने और रूक्ष होने के कारण पृथ्वी की नमी को सोख लेती हैं, जिसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी पर जीवों, मनुष्य और वनस्पतियों में स्नेहांश (जल) की कमी हो जाती है। इस भीषण गर्मी की वृद्धि में सूर्य की उग्रता का प्रमुख भाव होता है, ग्रीष्म ऋतु में, विशेष रूप से मई-जून में सूर्य अधिक तापमान पर होता है, पृथ्वी पर उसकी किरणें अत्यंत तीक्ष्ण और सीधी पड़ती हैं, जिससे गर्मी का प्रकोप बढ जाता है गर्म हवाएं जिसे लू कहते हैं आरै अधिक गर्म हो जाती हैं।
गर्मी की ऋतु में पश्चिमी हवायें ही अधिक चलती हैं, जो अत्यधिक गर्म, तेज और शरीर को झुलसाने वाली होती हैं। इन गर्म हवाओं यानी लू से झुलस कर अनेक लोगों की मृत्यु तक हो जाती है, पश्चिमी हवाओं के विषय में आयुर्वेद में कहा गया है-
पश्चिमी हवायें उष्ण व रूक्ष तो होती ही है, साथ ही ये तेज, स्नेह एवं बल का नाश करने वाली होती है। यह लू के रूप में पित्त को कुपित कर शरीर में तीव्र दाह (गर्मी) उत्पन्न करती है, इसका अगर सही समय पर उपचार नहीं किया जाता है तो इससे रोगी की मृत्यु तक हो जाने की संभावना रहती है। लू का प्रमुख कारण पश्चिमी वायु ही है, क्योंकि यही अग्नि को प्रदीप्त करती है, यह शारीरिक उष्णता को बढ़ाकर व्यक्ति को लू के चपेट में ला खड़ा करती है।
लू विकार का प्रमुख कारण पित्त का कुपित होना है। इससे शरीर के अन्दर एवं त्वचा में भी तीव्र जलन की अनुभूति होती है। पसीना अधिक आना, मुखशोष, बार-बार प्यास लगना, प्यास लगने पर जल का सेवन न करने से शरीर में जलन होती है। शरीर में पानी की कमी के परिणाम स्वरूप Dehydration की स्थिति बन जाती है। इसी से शरीर में जलन, शरीर तपना, आंखें लाल होना आदि लक्षण मिलते हैं।
विदाह अर्थात् हाथ-पैर व आंख में जलन, अंतर्दाह कुक्षि, हृदय, कंठ में शूल रहित दाह, मुख सूखना, गला सूखना आदि प्रमुख लक्षण पाये जाते हैं। शरीर में पानी की कमी और अत्यधिक उष्णता के कारण रक्त प्रवाह धीमा हो जाता है, जिससे नसों में खिंचाव व संकुचन होने लगता है, कभी-कभी तो ऐसा होता है कि नसों में रक्त जम जाता है, जिससे नसें फट जाती हैं, ऐसे में रोगी का बचना संभव नहीं होता हैं।
इनके अलावा एकदम स्वस्थ युवा भी यदि तेज गर्मी में, देर तक, बिना ठीक से पानी और नमक लिए व्यायाम अथवा मेहनत करने चले जाए तो उन्हें ‘हीट एक्जॉशन’ से लेकर पूरा हीट स्ट्रोक तक कुछ भी हो सकता है, गर्म मौसम में दिनभर घूमना-फिरना, तेज धूप में दिनभर क्रिकेट खेलना, गर्मी में फिजिकल फिटनेस, टेस्ट के लिये पुलिस या फौज इत्यादि की नौकरी में लंबी दौड़, मैराथन या हाफ मैराथन आदि में लू लग जाती है।
गर्मी के दिनों में जब भयंकर लू चल रही हो, तो बाहर नहीं निकलना चाहिये, फिर भी यदि किसी आवश्यक काम से बाहर जाना ही पडे़ तो शीतल पेय पदार्थ का पर्याप्त सेवन करने के बाद ही बाहर निकलें, ठंडा जल अधिक से अधिक पीना चाहिए, मोटे सूती कपड़े अथवा खद्दर के कपड़े से शरीर को ढकें रहना चाहिए। ये सूती कपडे़ गर्मी के अवरोधक हैं, इन कपड़ो से लू से बचाव होता है। लू से बचने के लिए देशी ऊनी कंबल का उपयोग श्रेष्ठ होता है।
गर्मी में लाल मिर्च, मसालेदार तेल युक्त, खट्टे पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए, शराब, मांसाहार से दूर रहें, गर्मी में ज्यादा बाहर घूमना, अधिक चलना, क्रोध आदि से बचें, शीतल स्थान में निवास करें बाग-बगीचों में घूमना, शीतल जल से स्नान आदि नियमित रूप से करें। इस प्रकार की दिनचर्या से ग्रीष्म ऋतु में गर्मी के प्रकोप और लू विकार से बचा जा सकता है।
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