।। ऊँ र्विष्णु र्विष्णु र्विष्णु श्रीमदभगवतो महापुरूषस्य विष्णो राज्ञया प्रवर्तमानस्य ——————————————– विंशतितमें कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तेकदेशान्तर्गते ———अमुकक्षेत्रे ——————————-धारयामि ।।
इस मंत्र का सरल शब्दों में अर्थ है-हे विष्णु सृष्टि के पालक-भगवत गीता में उल्लेखित सभी महानुभवों- इस कलियुग में कैलाश पर्वत के छाया में भारतवर्ष व समस्त आर्य अखण्ड भारत के वैदिक काल के, अपने पूर्वज को साक्षी मान कार्य को आरम्भ व सम्पन्न करने की शक्ति व आशीर्वाद प्रदान करे।
हर मंगल व शुभ कार्य को शुरू करने से पूर्व हम यह मंत्र तो अवश्य बोलते है पर इसके मूल या अर्थ को समझने व अपने अन्दर आत्मसात नहीं करते, इसको बोलने का मनतव्य सिर्फ इतना है कि हम अपने मूल को, अपनी जड़ों (Roots) को सदैव याद रखे उन्हें न भूले, हमारा इतिहास कोई 100-200 साल पुराना नहीं अपितु हजारो साल पुराना है और इतने वर्ष का ज्ञान अनुभव पूर्ण रूप से वर्णित व लिखित है, यह एक ऐसी संपत्ति है जो मुफ्त में सभी को मिल गई है, परन्तु सभी इसका लाभ नहीं ले रहे है- यह ज्ञान सिर्फ कुछ लोगो कि वसीयत नहीं अपितु सम्पूर्ण मानवता के लिये है, इस ज्ञान की पूंजी को हम सभी समेट व इससे लाभ उठा सकते है, इसका प्रचार-प्रसार कई वर्षों से सद्गुरूदेव जी कर रहे है, हमे तो सिर्फ हाथ व दिमाग खोल इसे अपनाना है, हम अपने पौराणिक ज्ञान के लिये सदैव प्रामाणिकता का इन्तजार करते है या इसे किसी पंडित या हिन्दू सन्तों को मूर्ख या पैसा बनाने का जरिया मानते है पर जब इनके दिखाये विधि या मार्ग पर चल कर FOREIGN UNIVERSTY इसे प्रमाणित करती है तो शर्म करने के अलावा और कुछ नहीं कर पाते। यह सब बतलाने का मेरा उद्देश्य सिर्फ इतना है कि हमे कभी भी अपने मूल, अपनी जड़ों को भूलना या इसका तिरस्कार नहीं करना चाहिये। जो इसे समझ गये वे अपने जीवन में आज भौतिक व आध्यात्मिकता के चरम पर है। मैं आशा करता हुँ आप इसे अवश्य ही समझने का प्रयत्न व अपने भीतर आत्मसात् करने की कोशिश करेंगे। इसी ज्ञान के विस्तार हेतु समय-समय पर शिविरों का आयोजन हो रहा है।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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