राम नवमी जिस दिन भगवान श्रीराम का अवतरण हुआ था, यह दिवस मर्यादा और पुरूषोत्तमय शक्ति प्राप्ति दिवस है। भगवान राम का जीवन आदर्श की उच्चतम स्थिति और अद्भूत सद्गुणों से युक्त है, वे वीर्यवान, पीन बाहु, विशाल वक्ष, उदार मन, गम्भीर, ओजस्वी, संहारकर्ता एवं प्रजा पालक है। साथ ही उनमें धर्म के प्रति अपार निष्ठा, धर्म रक्षा, धर्म के अनुकूल आचरण करने वाले गुण विद्यमान हैं। वेद, वेदांग, धनुर्वेद एवं समस्त शास्त्रें के ज्ञाता भी हैं। यही कारण है कि उन्हें पुरूषों में ‘उत्तम पुरूषोत्तम’ की उपमा प्राप्त हुई।
साधक भी निरन्तर ऐसी पुरूषोत्तमय चेतना की प्राप्ति हेतु प्रयासरत रहता है। वास्तव में जीवन वही कहा जा सकता है, जिसमें प्रबल पौरूष शक्ति विद्यमान हो, वही व्यक्ति जीवन में अपने लक्ष्यों को पूर्णता से प्राप्त करता है। शक्ति और पुरूषोत्तम चेतना के युग्म से ही जीवन के भूत, वर्तमान, भविष्य की स्थितियों में श्रेष्ठता आती है। जिससे आधि-व्याधि, कष्ट, पीड़ा, धनहीनता स्वरूप में निर्मित सभी दुर्गतियों का नाश होता है। साथ ही साधक श्रेष्ठ भाव से संहारात्मक, सृजनात्मक, रचनात्मक जीवन में अभिवृद्धि की ओर अग्रसर होकर नवनिधि स्वरूप में सुख-समृद्धि, सम्पन्नता, सफलता, आरोग्यता, आयु, व्यापार वृद्धि, संतान सुख व मनोकामनाओं की पूर्ति करने में पूर्णतः सफल होता है।
सर्व विजयश्री रामनामी लॉकेट धारण करने से उक्त सभी स्थितियों को साधक प्राप्त कर जीवन में विजयश्री युक्त लक्ष्य की प्राप्ति करता है। इस लॉकेट को चैत्रीय नवरात्रि प्रतिपदा, अष्टमी अथवा रामनवमी दिवस पर शुद्ध वस्त्र धारण कर लॉकेट पर कुंकुम, अक्षत चढ़ायें इसके पश्चात् धूप, दीप दिखाकर 51 बार गुरू मंत्र का जप कर धारण करें।
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