एक होली के अवसर पर परम पूज्य गुरूदेव ने ऐसी ही छेड़-छाड़ करने वाली साधना बेला बोस को सिखा दी थी। और उसके लगन और अथक मेहनत करने की भावना को परख कर परम पूज्य सद्गुरूदेव जी ने कामाख्या कामरूप में उसे उच्चतर साधनाये सम्पन्न करवाई।
बेला बोस के जन्म चक्र में अन्य ग्रहों के अतिरिक्त चन्द्रमा की विशिष्ट स्थिति को रेखांकित कर ही इस प्रकार की साधनाये सद्गुरूदेव ने उसे प्रदान की, जिनमें व्यक्ति संवेदनाओं से परिपूर्ण तो हो, परन्तु उन्हें मर्यादित करने की भी क्षमता प्राप्त हो। ग्रहाधिपति चन्द्रमा की इससे बड़ी विशेषता क्या हो सकती है कि मानव जीवन का संचालन पांच ज्ञानेन्द्रियों और पांच कर्मेन्द्रियों से होता है। इन सभी इन्द्रियों का संचालन मन है तथा मन का संचालन चंद्रमा है। वेदों में कहा गया है- चंद्रमा मनसो जातः- अर्थात् चंद्रमा मन है। साधनाओं की दृष्टि से देखे तो चंद्रमा ने स्वयं इतनी दिव्यता प्राप्त कर ली है, कि इसे आवृत का मूल कहा गया है।
इसका दूसरा नाम ही सुधाकर है। शरद पूर्णिमा की रात को आज भी खीर के कटोरे या दूध से भरे पात्र को रख कर चंद्रमा की किरणों से अमृत प्राप्त कर साधना सम्पन्न कर दमा का इलाज किया जाता है। वर्ष भर के लिये अमृत पान कर निरोग बन जाने का महोत्सव भी शरदोत्सव कहलाता है। यहां तक कि समस्त देवो के अधिपति त्रिदेवों में भी प्रमुख, जिनका काम ही पूर्णता प्रदान करना है, ऐसे भगवान शंकर ने भी इसे अपनाया और किसी अन्य जगह नहीं सीधे अपने शीश पर ही स्थान दिया और स्वयं चंद्रशेखर कहलाये।
चंद्र साधना के लाभ-
नेत्र ज्योति और चेहरे की कान्ति के लिये चंद्र साधना विशेष रूप से अनुकूल है।
सौन्दर्य, कला, साहित्य का कारक ग्रह चंद्रमा ही है। अतएव इन क्षेत्रें में विशेष सफलता के लिये चंद्र साधना फलदायी होती है।
मन का कारक होने से नवीन शोध के कार्यों विचारों में मौलिकता जहाँ आवश्यक है, उसके लिये यह श्रेष्ठतम साधना है।
मन एवं नेत्रों पर आकर्षक तथा प्रभाव उत्पादकता सम्मोहन का आधार है। अतएव इस साधना द्वारा साधक के अन्दर सम्मोहन प्राकृतिक रूप से ही प्राप्त हो जाता है।
नारी की कमनीयता अथवा सुघड़ता अथवा ममता और मातृत्व भाव चंद्रमा की ही देन है। नारी की सुकोमलता, केश राशि एवं चेहरे का सौन्दर्य विशेष रूप से चंद्रमा द्वारा प्रभावित होता है। सौन्दर्य निखारने तथा खोये सौन्दर्य को पुनः लाने के लिये यह साधना स्त्रियों के लिये विशेष उपयोगी है। इसके अलावा मोती धारण करना भी सौन्दर्य की दृष्टि से महिलाओं के लिये कारगर माना गया है।
सूर्य या अन्य क्रूर ग्रहों के कोप से बचने के लिये भी चंद्र साधना से बड़ा शायद ही कोई और उपाय हो।
पारद विज्ञान अथवा (स्वर्ण निर्माण) के क्षेत्र में सफलता बिना चंद्रमा की कृपा के संभव ही नहीं है।
रोचकता, मौलिकता, उत्साह, तरंग, उमंग यह सब चंद्रमा के कारण ही प्राप्त होती है, अतएव संगीत का भी क्षेत्र चंद्रमा से बहुत प्रभावित है।
हमारी सृष्टि मैथुनी सृष्टि कहलाती है, जिसका आधार पति-पत्नी, भोग-आनन्द युक्त जीवन की अनुकूलता है। यह अनुकूलता उच्चतम सोपान की स्थिति तक चंद्रमा की अनुकूलता से ही पहुँच पाती है। अतः अनुकूल वर या वधू प्राप्त करने के लिये चंद्रमा की अनुकूलता अनिवार्य है।
उर्वशी मनोकामना सिद्धि साधना
जब चंद्रमा की आभा ग्रहणकाल में न्यून हो जाती है, ऐसे श्रेष्ठ समय में संध्या काल के बाद ग्रहण के अवसर पर नक्षत्र की तेजमय बेला पर सर्व मनोकामना सिद्धि साधना सम्पन्न की जाती है। इसके अन्तर्गत सप्त प्रकार की मनोकामनायें उर्वशी स्वरूप में पूर्ण होने की ओर साधक अग्रसर होता है।
उपरोक्त लाभ इस साधना में प्राप्त होते है और ऐसा प्रयोग चंद्र ग्रहण के अवसर पर ही सम्पन्न हो सकता है। साधना सामग्री- इसके लिये निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है।
1- ग्रहण आलोक्त मनोकामना यंत्र, 2- ग्रहण सिद्धिप्रद मनोकामना उर्वशी चित्र, 3- ग्रहण अभिषेकयुक्त मनोकामना सिद्धि माला, 4- सिद्धिदायक लक्ष्मी गुटिका, 5- मनोकामना सिद्धि फल।
रात्रि में नौ बजे के बाद पीले आसन पर पीली धोती पहिन कर उत्तर दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाय फिर सामान्य रूप में मनोकामना यंत्र, उर्वशी देवी चित्र एवं सिद्धि फल की पूजा करें तथा लक्ष्मी गुटिका को गले में धारण कर ले और मनोकामना सिद्धि माला से निम्न मंत्र की मात्र 11 माला मंत्र जप करें-
मंत्र
मंत्र जप पूरा होने पर लक्ष्मी गुटिका को तो तीन दिन गले में पहिने रहे, बाकी यंत्रों को तथा माला को मन्दिर में चढ़ा दें तो निश्चय ही कुछ ही समय में उसकी मनोकामना पूर्ण होती है और जीवन में अनुकूलता आनी प्रारम्भ होती है।
मानव मन का संचालक चंद्र है, समस्त संवेदनाओं का आधार भी चंद्रमा ही है। समस्त ग्रहों में सबसे तेज गति चंद्रमा की ही है, हर माह सवा दो दिन के लिये सर्वश्रेष्ठ अर्थात् उच्च भाव में चंद्र की गतिशीलता होती है। इसी चंद्रमा को देवाधिदेव स्वयं भगवान सदाशिव महादेव अपने मस्तक पर धारण कर इसे सर्वोच्च स्थल देकर स्वयं चंद्रशेखर कहलाते है।