जब व्यक्ति अपने इष्ट रूपी गुरू की उपासना किसी विशिष्ट दिवस या मुहूर्त पर सम्पन्न करता है तो उसकी पूजा, साधना, मंत्र जप का सुफल शीघ्र ही प्राप्त होता है। प्राचीन ग्रंथो के अनुसार कुछ ऐसे विशेष काल व दिवस है, जो चेतन्य व पूर्ण फलदायक होते हैं, सूर्य ग्रहण ऐसे ही विशेष दिवसों में से एक है। जो व्यक्ति सूर्य ग्रहण के दिन पूजा, साधना, दीक्षा, मंत्र जप, हवन, यज्ञ आदि साधनात्मक क्रियायें सम्पन्न करते हैं उसका हमें कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है और हमारे संकल्प निश्चत रूप से पूर्ण होते है।
सांसारिक मनुष्य को यह ज्ञात है कि समय बलवान होता है, इसीलिये वह शुभ कार्य, करने के पूर्व शुभ मुहूर्त व विशेष दिवस का चयन करता है। अतः सूर्य ग्रहण युक्त सद्गुरूदेव अवतरण पर्व के सुयोगों में व्यक्ति अपने इष्ट व देवता स्वरूप सद्गुरू के ज्ञान व चेतना शक्ति को अपने अन्दर आत्मसात करता है तो उसका जीवन गुरूमय स्वरूप में शुभ-लाभमय निर्मित हो पाता है। ऐसे विशिष्ट दिवसों पर अपने सद्गुरूदेव से सूर्यग्रहण तेजस्विता सद्गुरूदेव शिष्याभिषेक दीक्षा ग्रहण करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
इस दीक्षा के अन्तर्गत शिष्य का विशेष रूप से अभिषेक सम्पन्न किया जाता है, जिससे वह समस्त सिद्धियों में पूर्णता युक्त दस महाविद्या साधनाओं में पारंगत होकर वह जीवन में सर्वोत्तम सुस्थितियों को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है। जो बिना गुरू के शुभाशीर्वाद के अत्यन्त दुर्लभ होता है। इस दीक्षा के माध्यम से शिष्य अपने गुरू के ज्ञान व चेतना को अपने अन्दर आत्मसात कर पाता है और गुरू भी उसे अपने शिष्य के रूप में पूर्णता प्रदान करते है। जिससे अपने भौतिक व आध्यात्मिक जीवन में निरन्तर गतिशील रहते हुये उन्नति प्राप्त करता है। साथ ही इस दीक्षा को आत्मसात करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में ब्रह्म तत्व को अनुभव कर पाता है।
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