इस हेतु वे अनेक उपाय करती रहती हैं, अनेक प्रकार के व्रत, उपवास और धार्मिक परम्पराओं का पालन करना भारतीय नारियों ने अपना प्रमुख कर्तव्य माना है। जो शत-प्रतिशत सही भी है, हमें अपनी परम्पराओं का पालन करना ही चाहिये। परन्तु इसके साथ ही दैवीय चेतना, ऊर्जा शक्ति को अपने भीतर आत्मसात करने की क्रियाओं में भी निरन्तर संलग्न रहना आवश्यक है, क्योंकि इन्हीं चेतना शक्ति से हमारे जीवन के जो भी अनिष्ट होते हैं, वह समाप्त हो पाते हैं। जिससे कि जीवन में मनोकामनाओं की पूर्ति हो पाती है।
इसलिये परम्पराओं के साथ ही मुख्य रूप से जीवन के अभाव, कष्ट, दु:ख, बाधाओं के निवारण हेतु साधनात्मक चेतना आत्मसात करना आवश्यक है, तब ही जीवन सुचारू रूप से गतिशील हो पाता है। जीवन को समुंगलमय, धन-लक्ष्मी, आयु वृद्धि, अखण्ड सुहाग सौभाग्य, वंश वृद्धि, अनुकूल वर प्राप्ति के लिये आवश्यक है कि हम वर्ष के सबसे बड़े मास ज्येष्ठ मास में वट सावित्री सौभाग्य शक्ति दिवस को साधनात्मक रूप से पूजा-अर्चना कर सम्पन्न करें।
अत: उपरोक्त सुस्थितियों की शीघ्र प्राप्ति के लिये इस सुअवसर पर अपने इष्ट, सदगुरूदेव से अखण्ड सुहाग सौभाग्य कुलवंश वृद्धि दीक्षा ग्रहण करना श्रेष्ठ रहता है। जिसके माध्यम से कुंवारी कन्याओं का उच्च कुल में विवाह सम्पन्न हो पाता है और विवाहित स्त्रियों का अपने पति, संतान व परिवार के मध्य बेहतर सामंजस्य स्थापित होता है, जो प्रत्येक गृहस्थ के लिये अति अनिवार्य है। जिससे जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान स्वत: होने लगता है। इसके साथ ही परिवार और संतान के जीवन की रक्षा भी होती है। सुख-समृद्धि युक्त कुलवंश वृद्धि हो पाती है। परिवार में सम्मान, अपनत्व की भाव-भूमि निर्मित होने से परिवार के कलह-कलेशों का शमन होने लगता है।
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