शक्ति के दो भाग हैं, एक भाग तो शत्रुओं को परास्त करने के लिये, दूसरा स्वयं को बल और पौरूष से युक्त करने के लिये। देवी भगवती के शक्ति स्वरूप दस महाविद्याओं की उपासना से मानव जीवन में किसी भी प्रकार की कठिनाई, बाधा, विषमता, परेशानी का अस्तित्व नहीं रह जाता। दस महाविद्याओं में भगवती के धूमावती स्वरूप का वर्णन अत्यन्त ही तीव्र और भयच्युत कर देने वाला है और जो साधक को जीवन में भय पर पूर्णरूप से विजय प्राप्त करने वाला है। किसी के द्वारा किये गये तंत्र प्रयोग से रक्षा, प्रचण्ड शत्रुनाश, विपत्ति निवारण, संतान की रक्षा में सहायक है। देवी धूमावती अपने उपासक को भौतिक समृद्धि के साथ-साथ जीवन में पूर्णता प्रदान करती हैं।
यदि हम दस महाविद्याओं को सिद्ध कर लेते हैं तो जीवन में किसी और साधना को करने की आवश्यकता ही नहीं होती। श्री कुल की विद्या है काल कर्षिणी। काल कर्षिणी अपने साधक को सूर्य के समान तेज और हनुमान की तरह बल और साहस देती है जिससे व्यक्ति की हुंकारभरी दृष्टि मात्र से ही शत्रु अपनी शत्रुता को छोड़ देता है और साधक के नियंत्रण में जीवन भर रहता है।
अत: जीवन की जटिल परिस्थितियों के निवारण हेतु शक्ति तत्व को पूर्णत: आत्मसात करना ही सर्वश्रेष्ठ उपाय है। भगवती धूमावती अपने साधक को हर पल, हर क्षण, रक्षा-सुरक्षा प्रदान करने के लिये तत्पर रहती है, आवश्यकता केवल इस बात की है, कि हम इनकी कृपा के अधिकारी बनें, जो कि संभव है सदगुरू सानिध्य में साधनात्मक रूप से धूमावती काल कर्षिणी दीक्षा ग्रहण करने पर। जिससे व्यक्ति अपनी नारकीयमय स्थितियों का शमन कर काल रूपी कुस्थितियों पर विजयश्री प्राप्त कर दैवीय ऊर्जा, चेतना से धन, यश, वैभव, पद्, प्रतिष्ठा, सम्मान, दीर्घायु जीवन, संतान सुखमय सर्व कामना पूर्ति से युक्त हो पाता है। सांसारिक जीवन में बिरला व्यक्ति ही इस दीक्षा को ग्रहण कर पाता है।
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