यह विशिष्ठ प्रयोग समस्त दुःखों का नाश करने वाला, शत्रुओं को समाप्त करने वाला तथा विरोधियों के भय को नाश करने वाला है, सभी दिशाओं में स्थित शक्तियों की साधना को आत्मसात करने की क्रिया कार्त्तवीर्यार्जुन साधना ही है।
कार्त्तवीर्यार्जुन सुदर्शन चक्र का अवतार है। भगवती काली ने उसकी उत्पति के लिए अपना रौद्र रूप प्रदान किया, लक्ष्मी ने प्रतिष्ठा, सम्मान और धन-धान्य प्रदान किया, सरस्वती ने सभी दृष्टियों से पूर्णता प्रदान की, ब्रह्मा ने ब्रह्माण्ड भेदन का ज्ञान दिया, पृथ्वी ने बिन्दु साधना दी, पवन ने वायु वेग से उड़ने की क्षमता प्रदान की, तारा ने आकस्मिक धन प्राप्ति की शक्ति दी और अन्य समस्त देवताओं ने अपने शरीर पुंज का निर्माण किया उसे ही ‘‘कार्त्तवीर्यार्जुन ’’ कहा गया है।
उपनिषदों और तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार जो साधक कार्त्तवीर्यार्जुन साधना को सम्पन्न करता है उसे स्वतः कई साधनायें सिद्ध हो जाती है। यह ऐसी साधना है जिसे प्रत्येक गृहस्थ को अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिये। अपने जीवन में पूर्ण सुख सौभाग्य के लिये इसके मंत्र का निरन्तर जप करते रहना चाहिये जिससे उसके जीवन की समस्त बाधा दूर हो कर भय मुक्त जीवन प्राप्त हो सके।
यह एक अत्यन्त गोपनीय तांत्रिक साधना है। इस साधना का ज्ञान, गुरू अपने विशिष्ठ शिष्य को ही प्रदान करता है। इसके बारे में कहीं लिखित रूप से वर्णन नहीं प्राप्त होता है। आदि शंकराचार्य के पूर्व के आचार्यो तथा ऋषियों के द्वारा रचित यह एक विशेष मांत्रिक व तांत्रिक पद्धति है। यह मूल रूप से व्यक्ति की रक्षा करने वाली, विपत्तियों का नाश करने वाली साधना है।
मेरू तंत्र में उल्लेख है कि –
इस प्रकार इसके अन्य कई प्रयोग है। यह मूलरूप से कार्तिक मास प्रयोग है। प्रत्येक परेशानी के लिए अलग-अलग प्रकार से प्रयोग सम्पन्न करते है।
किसी भी शुक्रवार को दिन या रात में स्नान कर के सफेद वस्त्र धारण करें। दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके बैठ जायें। पहले से ही ‘‘कार्त्तवीर्यार्जुन यंत्र’’ जो कि मेरू यंत्र के अनुसार पंचाम्नाय एवं दशाम्नाय तरीके से सिद्ध किया हुआ हो व विजयश्री शत्रुहंता माला प्राप्त कर लें। इस यंत्र को अपने सामने स्थापित कर के पंचोपचार विधि से पूजन करें। अपने चारों तरफ एक सौ आठ दीपक प्रज्ज्वलित करें। मिट्टी अथवा धातु के दीपक तथा किसी भी प्रकार का तेल प्रयोग कर सकते है। ध्यान रखें कि दीपक बुझने न पाये। इस कार्य के लिए अपने ही परिवार के किसी सदस्य को नियुक्त कर दें जो बराबर दीपकों में तेल डालता रहें। एक सौ आठ दीप जलाकर बीच में आसन पर बैठ जायें। हाथ जोड़ कर कार्त्तवीर्यार्जुन का ध्यान करें-
-: ध्यान :-
यंत्र के नीचे इच्छित कार्य का नाम लिख कर रखें। संकल्प करें और तीन दिन तक 21 माला जप करें। ऐसा करने पर कुछ ही दिनों में उस धन प्राप्ति का साधन बनना प्रारम्भ हो जाता है।
यह प्रयोग अत्यन्त सिद्ध और अचूक तांत्रिक प्रयोग है। इसकी साधना प्रत्येक साधक को अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिये।
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