वर्तमान काल में पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन में जिस सुख-समृद्धि, प्रेम, उल्लास, आनन्द, अठखेलियाँ, आत्मीयता, सम्मान का वर्णन किया गया है। उसका अभाव उनके जीवन में है ही। साथ ही उनके जीवन में तना-तनी, क्लेश, कलह, लड़ाई-झगड़ा, मन-मुटाव जैसी स्थितियाँ व्याप्त है। जिससे वैवाहिक जीवन समझौते का जीवन प्रतीत होता है। इसके कारण अनेक हैं, जैसे मनोनुकूल साथी नहीं मिलना, उसका स्वभाव-विचार भिन्न होना, उसके आचरण, क्रिया-कलाप, चरित्र सात्विक नहीं होना आदि। इन्हीं कारणों की वजह से वैवाहिक जीवन विनाश की ओर अग्रसर हो रहा है। ऐसे में आवश्यक है कि हम अपने गृहस्थ जीवन को सुरक्षित करने का श्रेष्ठ उपाय करें।
जीवन के इन अभावों को दूर करना अनिवार्य है तभी गृहस्थ जीवन का पूर्णतः भोग किया जा सकता है। इसीलिये अखण्ड सुहाग सौभाग्य प्रदाता पर्व- करवा चतुर्थी पर करवा शक्ति सावित्री दाम्पत्य सुख-समृद्धि वृद्धि दीक्षा प्रत्येक अविवाहित युवा-युवती व विवाहित गृहस्थ स्त्री-पुरूष दोनो के लिये ही अनुकूल है। एक तरफ जहाँ विवाहित स्त्री-पुरूष इस दीक्षा से गृहस्थ जीवन में मधुर प्रेम, सम्मान, शतायु जीवन, अखण्ड सावित्री सुहाग, सौभाग्य, पारिवारिक आत्मीयता, संतान सुख, भोग-विलास, समृद्धि, सम्पन्नता की प्राप्ति हो सकेगी। वहीं दूसरी ओर अविवाहित युवा-युवतियों को मनोनुकूल जीवन साथी की शीघ्र ही प्राप्ति हो सकेगी।
धन त्रयोदशी पर्व गृहस्थ सांसारिक व्यक्तियों के लिये श्रेष्ठतम दिवस है। इस दिवस पर दीक्षा आत्मसात करने से जीवन में सभी स्वरूपों में लक्ष्मी से पूर्ण हो सकते हैं और निरन्तर सुख-समृद्धि, धन-धान्य, व्यापार, मान-सम्मान, यश, कीर्ति, भवन, वाहन, उच्च शिक्षा, ऐश्वर्य की वृद्धि हो सकेगी। साथ ही जीवन से ऋण, धनहीनता, दरिद्रता समाप्त होने लगती है।
व्यक्ति का सारा चिंतन, उसकी मानसिक श्रेष्ठता, उसकी भावनाओं की ऊँचाई सभी कुछ उसकी आर्थिक स्थिति पर ही आश्रित होती है और जब धन की बात आती है, स्थायी सम्पत्ति की और प्रचुरता की बात आती है तो माँ भगवती जगदम्बे के विशिष्ट स्वरूप कमला लक्ष्मी का चिंतन सर्वप्रथम आता है। देवी कमला अपनी सम्पूर्णता से व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन में व्याप्त दरिद्रता, कायरता, कटुता और हीनता को समाप्त करने की शक्ति प्रक्रिया है और इसी शक्ति को आत्मसात कर व्यक्ति जीवन में राजयोग, भौतिक सम्पन्नता, पारिवारिक सुख, धन, वैभव आदि सुस्थितियों से परिपूर्ण हो पाता है। जो व्यक्ति भौतिक लक्ष्य की पूर्णता के साथ-साथ सभी स्वरूपों में देवमय शक्तियों से युक्त हो वही पूर्ण रूप से पुरूषोत्तममय व्यक्तित्व से युक्त होता है।
सांसारिक जीवन के समस्त योग-भोग युक्त सुस्थितियों की प्राप्ति कर पुरूषोत्तम शक्तियों से परिपूर्ण होने के लिये दीपावली पर्व सर्वश्रेष्ठ उत्सव है। इस दिव्य पर्व पर सद्गुरूदेव जी द्वारा दीक्षा आत्मसात करना एक अद्वितीय क्रिया है। सुयोगों से युक्त दीपावली महोत्सव पर दीक्षा ग्रहण करने पर व्यक्ति अपने लक्ष्यों को शीघ्र ही प्राप्त कर उच्चतम शिखर पर पहुँच जाता है। उसके जीवन में किसी भी दृष्टि से न्यूनता नहीं रहती। सुख-सौभाग्य, धन-धान्य, मान-सम्मान, यश, समृद्धि, सर्व सिद्धि का स्वामी बन जाता है।
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