घर के आंगन में खेलता हुआ, नन्हा सा, प्यारा सा फूल की तरह कोमल बच्चा जब दौड़ता हुआ अपनी माँ के आंचल में छिप जाता है, तब उस माँ के चेहरे पर छलकने वाले आनन्द का वर्णन करना असम्भव सा लगता है। अपने आप को अत्यन्त सौभाग्यशाली मानती है एक पुत्रवती स्त्री। पुरातन काल से चली आ रही यह परम्परा जब भी स्त्री किसी बुजुर्ग का चरण स्पर्श करती है तो उसे आशीर्वाद मिलता है- ‘सौभाग्यवती भव’, ‘पुत्रवती भव’………………………………………..
निश्चय ही स्त्री की पूर्णता उसके संतानवती, पुत्रवती होने से जुड़ी है। संतान सौभाग्य का प्रतीक है। वह स्त्री जो संतानोत्पति के सौभाग्य से वंचित रह जाती है, वह भले ही ऊपरी तौर पर सामान्य व्यवहार दिखलाये, किन्तु उसे उसका जीवन बोझ की तरह लगने लगता है, हर पल एक टीस सी रहती है- क्या कभी मेरे आंगन में भी बच्चो की किलकारी गूंजेगी?
आज के युग में डॉक्टरों ने ‘‘परखनली शिशु’’ का आविष्कार करके एक नवीनतम उपलब्धि हासिल की है। किन्तु इसकी सफलता का प्रतिशत बहुत कम है। साथ ही यह विधि अत्यन्त महंगी है, जिसे मध्यम वर्गीय परिवार के लोग आसानी से नहीं अपना रहे हैं। परखनली विधि के द्वारा उत्पन्न बच्चा जब परिवार से निकलकर समाज में पैर रखता है, तब उसे अत्यन्त आर्श्चजनक वस्तु मानकर लोग उसके साथ विचित्र व्यवहार करते हैं। ऐसी स्थिति में उसके साथ होने वाले व्यवहार के कारण, बच्चा मानसिक रूप से परेशान रहने लगता है, साथ ही उसके माँ-बाप को भी मानसिक उलझनों का सामना करना पड़ता है।
विज्ञान अब इस कोशिश में लगा है कि पुत्रहीन दम्पति को प्राकृतिक विधि के द्वारा ही संतान उत्पन्न हो।
अनन्त है साधना का क्षेत्र
जिन प्रश्नों का उत्तर विज्ञान के पास नहीं है, उनका ही उत्तर तो हमारे तंत्र, मंत्र, शास्त्र, साधनाओं में निहित है। हमारे ऋषि, मुनियों ने जो तपस्यायें की, उनमें उन्होंने सिर्फ भगवान के नाम की मालायें ही नहीं फेरी, उन्होंने मानव जीवन को पूरा महत्त्व देते हुये, उसकी प्रत्येक समस्या का समाधान ढूंढा। उनकी तपस्या का मुख्य उद्देश्य रहा कि समाज में रहने वाले व्यक्ति के जीवन को कैसे साधारण से श्रेष्ठ और श्रेष्ठतम बनाया जाय। इसके लिये नक्षत्रों का अध्ययन किया, प्रयोग किये, उनकी प्रामाणिकता को परखा और जब पूर्ण रूप से आश्वस्त हो गये तो उसे संहिता बद्ध कर दिया समाज के सामने प्रस्तुत किया।
रामचरित मानस में वर्णन है कि महाराज दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिये प्रयोग कराया था। प्रौढ़ावस्था प्राप्त करने तक, जब दशरथ के घर संतान उत्पन्न नहीं हुई तो उन्हें इस बात की अत्यन्त चिंता हुई कि उनके बाद इस राज्य को कौन संभालेगा? उनकी मृत्यु के बाद कौन पिण्ड दान देगा? अपनी इस समस्या को उन्होंने अपने गुरू वशिष्ठ से बताया। महर्षि वशिष्ठ ने उस समय के मंत्रों के ज्ञाता श्रृंगी ऋषि को इस समस्या के समाधान हेतु बुलाया और उनके द्वारा पुत्रेष्टि प्रयोग सम्पन्न कराया। सर्वविदित है कि इस प्रयोग के बाद दशरथ के घर चार पुत्र रत्न उत्पन्न हुए। जिनकी वन्दना आज तक लोग करते हैं।
द्वापर युग मे भी दुर्वाशा ऋषि ने कुन्ती की सेवा से प्रसन्न होकर पुत्रेष्टि प्रयोग की साधना सिखाई थी, कालान्तर में इस प्रयोग के द्वारा ही कर्ण, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव कुन्ती तथा माद्री के गर्भ से जन्म लिये थे।
युग परिवर्तन के साथ-साथ यह प्रयोग भी काल के गर्भ में जा छुपा, किन्तु समाज के हितार्थ परम पूज्य गुरूदेव जी ने अत्यंत कृपा करके पुनः इस प्रयोग को बताया। इसे पत्रिका पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करने में अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है-
यह प्रयोग पति-पत्नी दोनों के समन्वित रूप से सम्पन्न करना चाहिये। सर्वप्रथम पति-पत्नी सद्गुरू देव के पास आकर ‘‘मनोवांछित गर्भ निर्माण दीक्षा’ प्राप्त करें फिर गुरू आज्ञा प्राप्त करके यह प्रयोग सम्पन्न करें।
साधना विधि-
एक छोटी चौकी पर अष्ट दल कमल अंकित कर उसके ऊपर मिट्टी का कलश स्थापित कर कलश को जल से अच्छी तरह भर दें। इसके ऊपर एक दीप प्रज्जवलित करें। कलश के सामने त्रिगन्ध से स्वस्तिक का चिन्ह बना कर ‘‘पुत्रदा यन्त्र’’ स्थापित करें। यन्त्र के दाहिने तरफ पांच पुत्रदा फल एक क्रम में स्थापित करें। इनके सामने पांच दीपक शुद्ध घी का जलायें। यंत्र का पंचोपचार पूजन करें। कलश स्थापन से पूर्व, गुरू चित्र स्थापित कर के संक्षिप्त गुरू पूजन सम्पन्न करें। त्रिगन्ध से यंत्र और पुत्रदा फल पर तिलक करें। यंत्र के चारों ओर पुत्र जीवा माला रखें। एक नारियल मौली में बांध कर यंत्र के बांये तरफ स्थापित करें।
पति-पत्नी दोनों ही हाथ जोड़ कर परम पूज्य गुरूदेव से विनती करे ‘‘हे गुरूदेव आप की आज्ञानुसार हम पुत्रेष्टि प्रयोग सम्पन्न करने जा रहे हैं, आप कृपा करके हमें भगवान कृष्ण और भगवान राम की तरह श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करें।’’
इसके बाद क्रमशः पति और पत्नी दोनों पुत्र जीवा माला से क्रमशः निम्न मंत्र की पांच – पांच माला मंत्र जप करें और दूसरा साथ में बैठ कर मानसिक जाप करें-
पांच दिन तक इसी प्रकार प्रयोग सम्पन्न करें। रोज मिट्टी के दीपक बदलते रहे, अंतिम दिन प्रयोग पूर्ण होने पर नारियल को फोड़कर उसकी गिरी पूजा स्थान पर ही पति-पत्नी दोनों खा लें।
प्रत्येक रविवार को पुत्रजीवा माला से मंत्र जप सम्पन्न करें। ऐसा 11 रविवार तक करें। प्रत्येक रविवार को सिर्फ फल या दूध ही आहार के रूप में ग्रहण करें। ग्यारवें रविवार के बाद पुत्रदा यंत्र को सिद्ध सूत्र में पिरोकर पत्नी धारण कर ले। पुत्रदा फल को एक स्वच्छ कपड़े में बांधकर सुरक्षित जगह में रखें। इस प्रकार यह प्रयोग सम्पन्न करके फोन द्वारा या पत्र द्वारा अथवा स्वयं आकर पूज्य गुरूदेव जी से आशीर्वाद प्राप्त करें।
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