जीवन में सभी कुछ होना जरूरी है, क्योंकि धन, वैभव, सुख-सम्पन्नता, ऐश्वर्य, यश, सम्मान जब तक जीवन में न हो, तब तक मनुष्य पूर्ण नहीं कहलाता और इसके लिये वह हर क्षण प्रयासरत भी रहता है, किन्तु आधे से अधिक जीवन बीत जाने के बाद भी वह सब कुछ प्राप्त कर लेने में असमर्थ ही रहता है, इसी कारणवश उसका जीवन अपूर्ण ही कहलाता है, परन्तु इसे पूर्णता भी दी जा सकती है, यदि वह अपना कुछ समय निकाल कर इस साधना को सम्पन्न कर ले तो।
वैसे तो हर साधना अपने आप में विशिष्ट होती है, किन्तु हर साधना का अपना-अपना अलग ही महत्त्व होता है, तारा साधना व्यक्ति को सम्पूर्ण भोग व ऐश्वर्य प्रदान करती है, इसे सम्पन्न कर साधक थोड़े समय में ही वह सब कुछ प्राप्त कर सकता है, जो उसके भौतिक जीवन की आवश्यकता होती है।
‘‘तारा’’ दस महाविद्याओं में से एक महाविद्या है, और अपने-आप में सर्वश्रेष्ठ भी। किसी भी साधक को तारा साधना सिद्ध कर ही लेनी चाहिये, क्योंकि सिद्ध हो जाने पर यह उस साधक को धन का अतुलनीय भण्डार प्रदान करती है, तेजस्विता प्रदान करती है, यश प्रदान करती है, वाक् शक्ति प्रदान करती है और ऐसा व्यक्तित्व प्रदान करती है, जिससे कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता, इसीलिये हमारे पूर्वजों, ऋषियों, मुनियों आदि ने भी इस साधना को सम्पन्न किया, जिनमें वशिष्ठ, विश्वामित्र, रावण, गुरू, गोरखनाथ आदि के नाम उल्लेखनीय है, उन्होंने अपने-अपने तरीकों से इस महाविद्या को सिद्ध कर अपने जीवन को पूर्णता प्रदान की।
‘‘तारा साधना’’ भौतिक और आध्यात्मिक दोनों पक्षों को पूर्णता देने वाली सर्वश्रेष्ठ साधना है, वैसे तो इस विद्या की सिद्धि से कुछ भी अप्राप्य नहीं रहता। धन-सम्पदा के साथ ही वाणी में ओज और प्रभाव व्याप्त हो जाता है, और व्यक्तित्व आकर्षक बन जाता है।
तारा साधना के बारे में पहले भी बहुत कुछ कहा जा चुका है, जिसका लाभ साधकों को मिला भी है। ‘‘तारा साधना’’ दस महाविद्याओं में प्रमुख होने के कारण सिद्ध हो जाने पर शीघ्र फल प्रदान करती है, और इसे सिद्ध करने की नवीन पद्धतियां साधकों को ज्ञात हो सकें, इसीलिऐ इस साधना को एक बार फिर नए ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है।
यह साधना उन साधकों के लिये श्रेयस्कर है, जो अत्यन्त दरिद्री हो, क्योंकि तारा धन प्रदायक देवी है, जो अपने साधक को स्वर्ण प्रदान करके उसके जीवन में धन के अभाव को हमेशा-हमेशा के लिये समाप्त कर देती है। कुबेर ने भी इस साधना को सम्पन्न किया है, जिससे वह अतुलनीय धन-भण्डार प्राप्त कर सके। शंकराचार्य ने भी इस साधना को जीवन का प्रमुख आधार बताया है। ‘‘संकेत चन्द्रोदय’’ में लिखा है कि यह हृल्लेखा, भुवनेश्वरी, भुवना देवी, ईश्वरी, ह्रीं, महामाया, जीवन मध्यमा, जगत्-त्रय-धारण कर्त्री और परापरेशी है। ‘‘एक वीरा कल्प’’ में लिखा है कि यह विद्या पंचभूत प्रकाशिनी है-
जहां यह साधना साधक को सम्पूर्ण ऐश्वर्य, सौभाग्य प्रदान करने में सहायक है, वहीं ज्ञान, वाणी एवं वाक् सिद्धि में भी यह साधक को पूर्ण सफलता प्रदान करती है।
तारा साधना अत्यंत ही प्राचीन विद्या है, जिसे हमारे पूर्वजों ने तो सिद्ध किया ही है, परन्तु आज भी हमारे साधकों ने इस साधना को सिद्ध कर यह प्रमाणित कर दिया है, कि तारा महाविद्या दस महाविद्याओं में से सर्वश्रेष्ठ एवं शीघ्र फल प्रदान करने वाली देवी है, जिसे सिद्ध कर साधकों को विशेष लाभ प्राप्त हुए है, क्योंकि तारा साधक को भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करने में सहायक है, इसलिये प्रत्येक साधक को चाहिये कि वह इस साधना को गुरू गृह या अपने घर में ही बैठकर अवश्य सम्पन्न करे, क्योंकि यह साधक के लिये अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण साधना है।
06 अप्रैल 2025 को तारा साधना सम्पन्न करने का विशेष दिवस है, यदि साधक कारणवश इस दिन इस साधना को सम्पन्न नहीं कर पाता, तो यह किसी भी रविवार को अमृत काल में सम्पन्न की जा सकती है। साधक दिन या रात्रि में जब भी सम्भव हो सके, इस साधना को सम्पन्न कर सकता है। इस साधना को स्त्री या पुरूष कोई भी सम्पन्न कर सकता है। यह एक दिवसीय साधना है।
साधक को चाहिये कि वह स्नान आदि से निवृत्त होकर उत्तर की ओर मुंह करके शुद्ध आसन पर बैठ जाये। साधक साधना काल में, इस साधना में पीले या गुलाबी किसी भी प्रकार के वस्त्र धारण कर सकता है, तथा उसी रंग का वस्त्र लेकर बाजोट पर बिछा दे, और उस पर गुरू चित्र या गुरू मंत्र के साथ ‘‘भगवती तारा यंत्र’’ को स्थापित कर दे, इसके पश्चात् चावलों की ढेरी पर एक घी या तेल का दीपक प्रज्वलित कर दे, और साथ ही ‘‘महाशंख’’ भी रख दे।
फिर इन वस्तुओं का कुंकुम, अक्षत, पुष्प आदि से पूजन करे, और गुरूदेव से मन ही मन यह प्रार्थना करे, कि मुझे इस साधना में सफलता प्राप्त हो, ऐसा ही आप मुझे आशीर्वाद प्रदान करें, इसके पश्चात् तारा देवी का श्रद्धापूर्वक ध्यान करे, और तीन बार ‘‘ ऊँ तारायै नमः’’ मंत्र बोलकर आचमन लेते हुए जल को ग्रहण करे, फिर हाथ धो ले, इसके पश्चात् निम्न मंत्रों से निर्दिष्ट स्थानों को स्पर्श करे- ऊँ वैरोचनाय नमः-वदने। ऊँ शंखाय नमः- दक्ष-नासायं। ऊँ पाण्डवाय नमः- वाम-नासायं। ऊँ पद्म नाभाय नमः- दक्ष नेत्रे। ऊँ अमिताभाय नमः- वाम नेत्रे। ऊँ नामकाय नमः- दक्ष कर्णे। ऊँ मामकाय नमः- वाम कर्णे। ऊँ तावकाय नमः-नाभौ। ऊँ पद्मान्तकाय नमः-वक्षे। ऊँ यमान्तकाय नमः-शिरसि। ऊँ विघ्नान्तकाय नमः-दक्ष स्कन्धे। ऊँ नरान्तकाय नमः- वाम स्कन्धे।
इस प्रकार आचमन करने से साधक के समस्त पापों का नाश हो जाता है। इसके पश्चात् साधक ‘‘कमलगट्ठे की माला’’ से निम्न मंत्र का 21 माला मंत्र जप सम्पन्न करे-
साधना काल में दीपक जलते रहना चाहिये। मंत्र जप सम्पन्न करने के पश्चात् गुरू आरती कर भोग वितरित करें, तथा तारा यंत्र, माला और शंख को किसी कुंए, नदी या तालाब में विसर्जित कर दें, ये यंत्र, माला और शंख, मंत्र-सिद्ध एवं प्राण-प्रतिष्ठित होने चाहिये।
इस साधना को सिद्ध करने के पश्चात् भगवती तारा अपने भक्त को तारूण्य स्वरूप में दर्शन देती है और जिस इच्छा हेतु वह साधना को सम्पन्न करता है, उसमें पूर्णता प्रदान करती है।
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