माता के स्वरूप में जो क्षमा है, जो सरलता है, जो दया है, शिशु को गोद में उठा लेने की जो उत्सुकता है, जो अपार वात्सल्य है, वह पितृ स्वरूप में एक विलक्षण गम्भीरता के भीतर छिपा होता है, उसे प्रकट करने वाली माता ही है, पिता-पुत्र के बीच मध्यस्ता कराने वाली माता ही है। माँ के चरणों में बैठकर उनके संकल्प, इच्छा के अनुरूप कोई भी पितृ चरणों का अधिकारी बन सकता है।
उन्हीं प्राण प्यारी माँ की ममता, उनके वात्सल्य की महिमा का गुणगान करने का अवसर हमें प्राप्त हो रहा है। दयामयी परमेश्वरी पथ प्रदर्शिका माता भगवती की स्तुति करने का सौभाग्य हमारे समक्ष उपस्थित हो रहा है। जिनके वात्सल्य स्पर्श से जीवन में व्याप्त कोलाहल समाप्त होना सुनिश्चित है।
जिनके प्रेम, स्नेह से सम्पूर्ण सिद्धाश्रम दैदीप्यमान है, जो सभी शिष्यों के जीवन की निर्माण दात्री है। जो सद्गुरूदेव नारायण के साधको, शिष्यों की संकल्प शक्ति की आधार स्तम्भ बनकर सदैव उनके साथ अडिग खड़ी हैं और शास्त्रों में स्पष्ट है कि शिव शक्ति एक-दूसरे से पृथक हैं ही नहीं, जो शिव है, वहीं शक्ति, जो शक्ति है, वही शिव इनमें कोई भेद नहीं है। जो भेद दृष्टित होते हैं, वे मात्र जन कल्याण के भले के लिये भिन्न-भिन्न पात्र होते हैं। अन्ततः सभी एक शक्ति के विभिन्न स्वरूप ही होते हैं।
नारायण-भगवती में कोई भिन्नता नहीं है, बल्कि माँ का हृदय तो करूणा का सागर होता है, पिता कठोर हो सकते हैं लेकिन, माँ हमेशा कोमल हृदय की होती है, वह अपनी संतान से कभी भी कठोर व्यवहार नहीं कर सकती है, उनका वरदहस्त सदैव आशीर्वाद के लिये अथवा अपनी संतान की क्षुधा को समाप्त करने हेतु ही उठता है, माँ भगवती आज भी हमारे ही निकट हैं, जितना वे सशरीर हमारे समीप थी, हमें तो सामीप्यता के लिये उन्हें आवाज देनी हैं।
आद्या शक्ति स्वरूपा माँ भगवती अपने स्वाभाविक मातृ-स्नेह अपने बालकों पर न्यौछावर करती रहती है, उनके हृदय में उतनी ही तड़प रहती है, जितनी व्याकुलता से उनके बच्चे उन्हें पुकारते हैं।
हमारी मातृ शक्ति हम सिद्धाश्रम साधक परिवार की अनमोल सम्पति है, हमारा गौरव है, सद्गुरूदेव की ओर से हमारे लिये उन्हीं की करूणा, प्रेम, वात्सल्य का स्वरूप है, उनकी ओर से हमारे लिये प्रेम उपहार है, जो वे माता भगवती के स्वरूप में हम सभी शिष्यों पर लुटाती रहती हैं। माँ शब्द में ही अतुल्य आनन्द समाहित है, वात्सल्य का अनन्त सागर है, माँ का प्रेम गंगा की धारा से भी शुद्ध, पावन पवित्र है। संतान कैसी भी हो परन्तु माँ अपने कर्त्तव्य से विमुख नहीं होती है।
उन्हीं मातृ शक्ति के जन्मोत्सव, प्रकट उत्सव पर आप सभी शिशुवत् भाव युक्त विषयों का आवाहन है, इस मातृ शक्ति दिवस पर, जो वात्सल्य की मूर्त स्वरूप है, जिनकी करूणा का आनन्दपान कर जीवन में तृप्ति और संतुष्टि अनुभव होती है, जिनके चरणों की वन्दना कर कोई भी शिष्य सद्गुरू नारायण की कृपा का पात्र बन जाता है उनकी अनन्त शक्त्यिों को स्वयं में समाहित करने की योग्यता से परिचित हो जाता है।
आद्या शक्ति स्वरूपा माँ भगवती की अनन्त करूणा है कि उन्होंने हम सभी को अपना सानिध्य, वात्सल्य प्रदान कर हमारे जीवन को अनुकूल स्थितियों से प्रकाशित किया। उनकी असीम अनुकम्पा है कि उन्होंने हम सभी शिष्यों को सतत् रूप से साधना, उच्चता, सफलता के पथ पर पथ प्रदर्शिका के रूप में हमारे साथ गतिशील रहीं। उन्होंने हमें इस योग्य निर्मित किया, जिससे निरन्तर चैतन्य व क्रियाशील रहें।
अत: इस विशिष्ट दिवस पर माता जी के प्रति अपना समर्पण भाव व्यक्त करने हेतु प्रत्येक गुरू परिवार यह संकल्प ले कि इस दिवस पर वृक्ष रोपण करें, उसकी देख-भाल करें। साथ ही अन्य व्यक्तियों को भी इस गुरू परिवार का हिस्सा बनायें और अधिक-से-अधिक मासिक पत्रिका का वितरण कर निखिलमय चेतना का विस्तार करें।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,