धूमावती देवी शत्रु का भक्षण करने वाली महाशक्ति और दुःखों की निवृति करने वाली हैं। बुरी शक्तियों से पराजित न होना और विपरीत स्थितियों को अपने अनुकूल बना देने की शक्ति इनकी साधना से प्राप्त होती है।
कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है, और उसके आगे सबको हार माननी पड़ती है, किन्तु जो समय पर हावी हो जाता है, वह उससे भी ज्यादा बलशाली कहलाता है।
शक्ति सम्नवित होकर और शक्तिशाली होना तो केवल शक्ति साधना के माध्यम से दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित किया जा सकता है।
जो भयग्रस्त, दीन हीन और अभावग्रस्त जीवन जीते है, वे कायर और बुजदिल कहलाते है, किन्तु जो बहादुर होते है, वे सब कुछ अर्जित कर जो उनके भाग्य में नहीं है, उसे भी साधना के बल पर प्राप्त करने की सामर्थ्य रखते हैं….. और यदि साधना हो किसी महाविद्या की, तो उसके भाग्य के क्या कहने, क्योंकि दस महाविद्या में से किसी एक महाविद्या को सिद्ध कर लेना भी जीवन का अप्रतिम सौभाग्य कहलाता है।
आज समाज में जरूरत से ज्यादा द्वेष, ईर्ष्या, छल, कपट, हिंसा और शत्रुता का वातावरण बन गया है, फलस्वरूप यदि व्यक्ति शांतिपूर्वक रहना चाहे, तो वह नहीं रह सकता, अतः जीवन की असुरक्षा समाप्त करने की दृष्टि से यह साधना विशेष महत्त्वपूर्ण एवं अद्वितीय है।
धूमावती दारूण विद्या है, सृष्टि में जितने भी दुःख है, व्याधियां है, बाधायें है, इनके शमन हेतु इनकी साधना श्रेष्ठतम मानी जाती है। जो व्यक्ति या साधक इस महाशक्ति की आराधना उपासना करता है, ये उस साधक पर अति प्रसन्न हो उसके शत्रुओं का भक्षण तो करती ही है, साथ ही उसके जीवन में धन, धान्य, समृद्धि की कमी नहीं होने देती, इसीलिये इन्हें दुःहारिणी के नाम से भी पूजित किया जाता है। अतः लक्ष्मी प्राप्ति के लिये भी साधक को इस शक्ति की आराधना करते रहनी चाहिये।
तंत्र साधनाओं का क्षेत्र अपने में बड़ा व्यापक है, जिसकी थाह पाना सम्भव नहीं है। यह एक ऐसा विज्ञान है, जिसमें प्रामाणिक विधि-विधान एवं योग्य मार्गदर्शन द्वारा साधना सम्पन्न करने पर निश्चित ही सफलता प्राप्त होती है, जिससे व्यक्ति अपने कल्याण के साथ-साथ जन-कल्याण करने में भी सक्षम हो पाता है। प्राचीन समय में यह विज्ञान प्रगति के ऊँचे शिखर पर रहा है और तंत्र का प्रयोग हमारे पूर्वजों ने पूर्णता के साथ सम्पन्न किया और उनका जीवन सभी दृष्टियों से ज्यादा सुखमय, आनन्ददायक और तनावरहित है।
साधना के क्षेत्र में 10 महाविद्याओं में धूमावती का स्थान सर्वोपरि माना जाता है।
महाविद्याओं में धूमावती महाविद्या साधना अपने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस साधना के बारे में दो बाते विशेष रूप से है, प्रथम तो यह दुर्गा की विशेष कलह निवारणी शक्ति है, दूसरी यह कि यह पार्वती का विशाल एवं रक्ष स्वरूप है, जो क्षुधा से विकसित कृष्ण वर्णीय रूप है, जो अपने भक्तों को अभय देने वाली तथा उनके शत्रुओं के लिये साक्षात् काल स्वरूप हैं।
जहां धूमावती साधना सम्पन्न होती है, वहां इसके प्रभाव से शत्रु नाश एवं बाधा निवारण भी होता है। धूमावती साधना मूल रूप से तांत्रिक साधना है। इस साधना के सिद्ध होने पर भूत-प्रेत, पिशाच व अन्य तंत्र बाधा का साधक व उसके परिवार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, अपितु उसकी प्रबल से प्रबल बाधाओं का भी निराकरण होने लग जाता है। धूमावती साधना का स्वरूप क्षुधा अर्थात् भूख से पीड़ित स्वरूप है और उन्हें अपने भक्षण के लिये कुछ न कुछ अवश्य चाहिये। जब कोई साधक भगवती धूमावती की साधना सम्पन्न करता है,तो देवी प्रसन्न होकर साधक के शत्रुओं का भक्षण कर लेती है और साधक को अभय प्रदान करती है।
यह प्रयोग किसी भी माह की अमावस्या को या दिनांक 03.06.2025 को रात्रि 10 बजे से स्नान आदि से निवृत होने के उपरांत प्रारम्भ करना चाहिये। प्रयोग अपने घर पर एकांत कक्ष में या नदी के किनारे किया जा सकता है। इसमें निम्न साधना उपकरण की आवश्यकता होती है-
साधक रात्रि 10 बजे के पश्चात् दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर काले वस्त्र धारण कर काले आसन पर बैठ जायें। अपने सामने एक लकड़ी की चौकी पर काला कपड़ा बिछा दें। उस पर किसी स्टील की थाली में ‘भगवती धूमावती यंत्र’ स्थापित करें, उसके पीछे भगवती ‘धूमावती चित्र’ स्थापित करें। बायीं ओर किसी पात्र में वज्र दण्ड स्थापित करें और सामने ‘धूमावती माला’ को स्थापित करें।
सर्वप्रथम पवित्रीकरण करके सरसों के दाने बाएं हाथ में लेकर दाहिने हाथ से चारों दिशाओं में निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए बिखेर दें-
इसके पश्चात् गणेश एवं गुरू चित्र स्थापित कर कुंकुंम, अक्षत, पुष्प, धूप तथा दीप से उनका संक्षिप्त पूजन करें। इसके पश्चात् ‘धूमावती यंत्र’ को जल से स्नान कराकर स्वच्छ कपडे़ से पोंछ लें। यंत्र पर काजल का टीका लगाये। अगरबत्ती एवं तेल का दीपक प्रज्जवलित करें। यंत्र-चित्र के सम्मुख नैवेद्य हेतु फल अर्पित करें। इसके पश्चात् गुरू मंत्र की 4 माला जप कर धूमावती माला’ से निम्न मंत्र की 21 माला जप करें-
मंत्र जप के पश्चात् उस रात्रि को सोएं नहीं और शेष समय मानसिक जप तथा चिन्तन में बैठकर बिता दें। अगले दिन प्रातः उक्त मंत्र की एक माला मंत्र जप सम्पन्न करें। यंत्र को नदी में विसर्जित कर दें और नित्य एक माला मंत्र जप सवा माह तक करते रहें। धूमावती चित्र व गुरू, गणेश चित्र पूजा स्थान में स्थापित कर दें, नित्य अगरबत्ती, दीप दिखाते रहे। 3 माह के उपरान्त ‘वज्र दण्ड’ को तथा ‘धूमावती माला’ को नदी में विसर्जित कर दें।
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