इस संस्कार को सम्पन्न करने हेतु किसी शुभ दिन व मुहुर्त पर माता या घर के सम्मानीय जन बच्चे को गोद में लेकर बैठते है, इष्ट देव व अन्य देवी-देवताओं की पूजा पश्चात् बच्चे के पिता निम्न संकल्प लेते हैं-
अधेत्यादि— ममास्य पुत्रस्य (कन्याया) अमुक
कुमारस्रू बैजिक गार्भिक दुरित प्रशमन पूर्वकालं
पुष्कलता सिद्धये अन्नप्रशन्नमंह करिष्ये।
इसके पश्चात् पिता व घर के सभी सदस्य बहुत ही अल्प मात्र में बच्चे को चाँदी की श्लाका या चम्मच में निम्न मंत्र जप के साथ खीर चटाते है।
शिवों ते स्तां ब्रीहियवावबतासावदोमधौ।
एतौ यक्ष्मं वि वाधेते एतौ मुञ्चतो अंहसः।।
अर्थात् हे बालक यह भोजन तुम्हारे लिये बलदायक तथा पुष्टिकारक हो। क्योंकि यह यक्ष्मा-नाशक है तथा देवान्न होने से पापनाशक हैं। यह प्राशन एक प्रतीक है कि अब बच्चे को थोड़ा-थोड़ा करके सभी प्रकार का घर पर बना भोजन थोड़ा-थोड़ा खिलाया जा सकता है। उल्लास, प्रसन्नता की दृष्टि से परिवार जन इस संस्कार को खूब धूमधाम से मनाते हैं। शास्त्रें में भी वर्णित है कि इस दिन बच्चे की छोटी सी परीक्षा भी ले ली जाती है।
अन्नप्राशन संस्कार सम्पन्न करते समय बच्चे के समक्ष पुस्तक, सोने की अंगुठी, कलम, कोई छोटा सा अस्त्र रख दिये जाते है और ऐसी मान्यता है कि जो भी वस्तु वह बच्चे सर्वप्रथम उठाता है आगे चलकर वह उसका भविष्य बता देता है और वह उसी क्षेत्र में दक्ष होता है। यह क्रिया सम्पन्न करने के पश्चात् घर के सभी जन बच्चे को आशीर्वाद देते हैं।
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