हमारी हिन्दू संस्कृति एक सम्पदा, एक धर्म, एक ईश्वर, एक ग्रन्थ, एक प्रान्त में संकुचित नहीं है, अपितु हमारी संस्कृति- सभ्यता को जीवन्त रूप से जीया जा सकता है, अनुभव किया जाता है। यह एक व्यावहारिक एवं सम्प्रदाय की भावना को दर्शाने वाला समस्त जीव-जन्तुओं को एक परिवार कि भांति व सभी को पूजनीय मानने वाला धर्म है। हमारी संस्कृति में एक चूहे (मूषक) से लेकर हाथी (गज) को भी पूजा जाता है। हर पर्व के पीछे एक विशिष्ट इतिहास होता है व हमें अपना जीवन परिपूर्ण रूप से जीने के लिये एक विशिष्ट संदेश प्रदायक होता है।
इसीलिये हम हर वर्ष उन त्यौहारों को जीवन्त रूप से मनाते हैं। गुरु पूर्णिमा इन त्यौहारो का प्रारम्भ दिवस है, इसके उपरान्त श्रावण मास, रक्षा बन्धन, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दीपावली, होली आदि अनेक-अनेक पर्व आते हैं। इन पर्वों में दीवाली सर्व महत्वपूर्ण दिवस है। इस दिवस पर हम सर्व देवों का पूजन करते हैं, जो हमें जीवन में सर्वदा सहायक होते हैं। यह पंच दिवसीय पर्व धनतेरस से लेकर भैया दूज से युक्त होता है। इन पर्व के दिवसों में विभिन्न अनुष्ठान सम्पन्न किये जाते हैं- धनतेरस- कुबेर लक्ष्मी पूजन, काली चतुर्दशी- वीर वेताल साधना, दीवाली- अष्ट स्वरूपा लक्ष्मी पूजन में गणेश, आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, विद्या लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, धैर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी, राज लक्ष्मी, गोवर्धन पूजा, भैया दूज। माँ लक्ष्मी स्वयं में सांसारिक जीवन का आधार है। माँ हमें धन, यौवन, रूप, प्रभुत्व, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य, स्वास्थ्य, समृद्धि की शक्ति व आशीर्वाद् प्रदान करती हैं, परन्तु यह हम पर निर्भर करता है कि पूर्ण चैतन्य विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर उस शक्ति को आत्मसात करने की क्रिया सम्पन्न कर सकें।
सद्गुरुदेव का कोई भी साधक अपना जीवन दरिद्रता से न बिताये, दरिद्रता एक ऐसा अभिशाप है, जिससे व्यक्ति घुट-घुट कर हर क्षण मरता है, निर्धनता, अज्ञान, अन्न की कमी, असमर्थता, निसंतान, विफलता ये सभी अभिशाप व्यक्ति को हर तरह से तोड़ देते हैं- परिश्रम तो सभी करते हैं फिर भी इन अभिशापों से स्वयं को निकाल नहीं पाते, आर्थिक रूप से सफलता प्राप्त कर भी लेते हैं तो भी बाधाओं से शत्रुओं से घिरा पाते हैं। ऐसी स्थिति से हम मंत्रों के माध्यम से सही रूप से विधि-विधान रूप व सही यंत्रों द्वारा अनुष्ठान कर विजयी हो सकते हैं। एक ऐसी साधना जिससे अष्ट लक्ष्मी कि ऊर्जा शक्ति विद्यमान हो जिसे हम सम्पन्न कर अपने जीवन में धन, ज्ञान, बुद्धिमत्ता, शक्ति, वीरत्व, सौन्दर्य, विजय, प्रसिद्धि, अभिलाषा, आरोग्यता को पा सकें।
माँ अष्ट लक्ष्मी की आराधना में वह बल है, जिसे हम सम्पन्न कर अपने जीवन के कष्टों का निवारण कर सकते हैं और ऐसे संकटो को भी टाल सकते है, जो आने वाले हैं, जिसका हमे आभास व ज्ञान भी नहीं है। इन सभी के समाधान हेतु सर्व दुःख भंजन अष्ट लक्ष्मी चैतन्य सामग्री आपके माता-पिता व गोत्र के नाम से संस्पर्शित की जा रही है।
इस अद्वितीय पर्व का हम पूर्णरूपेण लाभ उठा सकें, जिसमें गुरुत्व स्वरूप शक्ति, गणपति, ब्रह्मा, विष्णु, महेश पंच देवी-देवताओं को आत्मसात करने का भाव-चिंतन है।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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