इस जीवन में आपके नियन्त्रण में, आपके हाथ में कुछ भी नहीं है। क्या आपने जो जन्म लिया वह आपके हाथ में था ? वो तो आपके माता पिता के कर्म थे, जो आपने जन्म लिया, क्या सोना आपके हाथ में है ? आप स्वयं से कहें कि मुझे नींद आ जाये तो क्या नींद आ जायेगी ? आप स्वयं से कहें कि मुझे भूख न लगे तो क्या यह संभव है ? आप अपनी भूख-प्यास को कुछ समय के लिए रोक सकते हो, लेकिन नियन्त्रित नहीं कर सकते हो, उसे बुला या भगा नहीं सकते हो।
मानव शरीर में सात इन्द्रियां होती हैं, लेकिन हमने पांच को ही जाना है। जबकि होती सात है, जिसमें दो निष्क्रिय अथवा शिथिल होती हैं और पांच सक्रिय होती हैं।
1- आँख- देखने के लिये
2- कान- सुनने के लिये
3- नाक- सूघंने के लिये
4- जीभ- स्वाद के लिये
5- त्वचा- महसूस करने के लिये
6- सन्तुलन- Vestibular
7- Proprioception (अपने आस-पास होने वाली किसी भी क्रिया का आभास होना, जब हम नींद या शिथिल मुद्रा में हों)
कई बार हमारी माता-बहन या परिवार का कोई भी सदस्य किसी भी अनहोनी घटना के घटित होने से पूर्व व्याकुल या परेशान हो जाता है, कारण कि उन्हें किसी अनहोनी का पूर्व आभास होने लगता है, परन्तु वे पूर्ण रूप से उसे समझ नहीं पातीं। ऐसी अनुभूतियां उन्हीं स्त्री-पुरुष को होता है, जो दैनिक रूप से अपने इष्ट देव अथवा अपने गुरु का ध्यान, पूजन करते हैं। पूजन, ध्यान, मंत्र जाप, साधना आदि कोई आडम्बर की क्रिया नहीं है। हमारे ऋषि-मुनि मूर्ख नहीं थे, जो अपने जीवन का अमूल्य समय तप-साधना में व्यर्थ करते, साधना, मंत्र, जप-तप द्वारा उन्होंने अपने जीवन को सर्वश्रेष्ठ बनाया, अपने आपको ईश्वर तुल्य स्थापित किया। ऋषि-महर्षि, संतो, योगियों के तप का फल है, जो आज सम्पूर्ण विश्व अपने जीवन का उपभोग कर पा रहा है, अन्यथा मानव सैकड़ों वर्ष पूर्व ही एक-दूसरे का भक्षण कर सृष्टि को नष्ट कर देता।
सुकर्म करने वाले कुछ विशिष्ट व्यक्ति भारत को विश्व गुरु का स्थान दिलाने के लिये प्रयत्नशील हैं और आप अन्धकार से बाहर आने का प्रयत्न ही नहीं कर रहे हैं, इस वर्ष गुरु पूर्णिमा पर्व पर मैं आप सबसे आग्रह करता हूं जीवन को प्रकाश की ओर अग्रसर करें, इस दिवस पर अपने आपको पूर्ण रूप से गुरु चिंतन, ध्यान, पूजन और उनके चिंतन में लीन करें।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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