साधना का एक रहस्य यह है कि इसमें अचानक छलांग मारकर बड़ी उपलब्धि अर्जित करने की अपेक्षा यदि शीघ्र प्रकट होने वाले स्वरूप की साधना व आराधना करें, तो जीवन में शीघ्र ही समस्त सफलतायें और अनुकूल स्थितियां निर्मित होने की दशा निर्मित हो जाती है। ठीक यही बात भगवती महालक्ष्मी के स्वरूप के साथ भी है साधना के प्रथम चरण में ही भगवती महालक्ष्मी का साक्षात् दर्शन पाना या उनके द्वारा मनोवांछित वर प्राप्त कर लेना साधक के लिये संभव नहीं है, इसकी अपेक्षा यदि वह देवी के किसी विशिष्ट स्वरूप की साधना करता है, तो अपने भौतिक जीवन की कामनायें तो शीघ्रता से पूर्ण करता ही है, साथ ही साथ साधनात्मक दृष्टि से भी कुछ पग और आगे बढ़ जाता है।
समय-समय पर युग दृष्टा ऋषियों और मंत्र दृष्टा चिन्तकों ने एक ही साधना के विभिन्न रूप ढूंढे, उन्हें अपनी अनुभूति के आधार पर अलग-अलग नामों से सम्बोधित किया और यह उनके प्राणों का बल होता है कि वे मंत्रों के प्रभाव से देवी का वही स्वरूप गठित कर उन्हें उपस्थित होने के लिये विवश कर देते हैं। कनक प्रभा साधना ऐसी ही मांत्रोक्त साधना है, जहां पर प्रखर ऋषि और युग दृष्टा महर्षि याज्ञवल्क्य ने महालक्ष्मी को कनक प्रभा के रूप में उपस्थिति होने की एक विशिष्ट पद्धति ढूंढ़ निकाली।
युग पुरुष आद्य शंकराचार्य ने जिस प्रकार से एक धनहीन विप्र की दरिद्रता से व्यथित होकर भगवती महालक्ष्मी का आवाहन कनक धारा रूप में किया था और देवी से प्रार्थना की थी कि वे अपने नाम के अनुकूल अपने प्रभाव से स्वर्ण की धारा जैसी समृद्धता प्रवाहित कर दें, ठीक उसी क्रम में उससे भी अधिक प्राचीन और सरल पद्धति है कनक प्रभा साधना और तथ्य तो यह है कि इसी साधना के आधार पर कनक धारा देवी का चिंतन भगवतपाद् ने अपने प्रसिद्ध स्तोत्र में किया है। प्राचीन कनक प्रभा ही उनके द्वारा कनक धारा रूप में विख्यात हुयी।
देवी के उस स्वरूप को कनक धारा कहें अथवा कनक प्रभा का सम्बोधन दें, तात्पर्य केवल एक ही है कि घर में और संन्यासी हो तो उसके आश्रम में धन का ऐसा प्रवाह आरम्भ हो जाए जो स्वर्ण वर्षा जैसा हो क्योंकि धन की प्रचुरता से ही संभव है जीवन में प्रसन्नता का आगमन। धन केवल आवश्यकता अनुसार ही उपलब्ध होना जीवन की श्रेयता नहीं है। धन का वास्तविक आनन्द है कि धन आवश्यकता कहीं से अधिक उपलब्ध हो, जिससे वर्तमान की सभी समस्यायें सुलझे ही भावी जीवन के लिये, हमारे मन में कोई आशंका या चिंता न रहे, क्योंकि जहां कल की चिन्ता है, वहां निश्चिंतता नहीं और जहां निश्चिंतता नहीं वहां फिर कोई श्रेष्ठ धार्मिक या आध्यात्मिक चिंतन नहीं। नित्य प्रति की दरिद्रता धीरे-धीरे व्यक्ति के अन्दर घुलती हुयी उनके मन, प्राण, आत्मा तक को दरिद्रहीन और पतित बना देती है।
जीवन की इन्हीं स्थितियों को समाप्त करने की साधना है- कनक प्रभा।
भगवती महालक्ष्मी के साक्षात् उपस्थिति होने का अर्थ यही होता है कि हमारे जीवन में अनुकूलता प्रारम्भ हो, हमारे जीवन में मधुरता का आरम्भ हो। पौरुष और क्षमता का अतिरिक्त प्रभाव हो और यही लक्षण जीवन में आते हैं, किसी साधना के माध्यम से या किसी दैविक शक्ति शरीर में समाहित हो जाने से और फिर कनक प्रभा———कनक प्रभा तो साक्षात् उपस्थित हो जाने वाला स्वरूप है। अपने चैतन्य स्वरूप से साधक को आश्वस्त कर देने वाला स्वरूप है, जिससे साधक के मन में कोई द्वंद्व न रहे और निश्चिंत होकर साधना के मार्ग पर तेजी से गतिशील हो सके।
पद्म की मंद आभा के समान वस्त्र धारण किये हुये विशाल चाक्षुषी देवी जिनकी पलकें अधमंदी जिनके नयनों के छोर कर्णों को स्पर्श करते हुये प्रतीत होते हैं, ऐसी सघन केश, युक्ता, सुगन्धित केश युक्ता, पद्मगन्धा, सुमधुर गंध से समस्त वातावरण को आप्लावित करती हुई देवी कनक प्रभा अपने शरीर पर धारण किये हुये विविध स्वर्णाभूषिणों से वातावरण को जिस प्रकार शोभायमान कर रही हैं और जिनकी स्वर्णिम आभा से युक्त मुख श्री को देखते ही चित्त उनके चरणों में स्वतः नत हो जाता है, उन देवी कनक प्रभा के चरणों में मेरा मस्तक सदा ही अवनत रहे। देवी के उपरोक्त कनक प्रभा स्वरूप की ध्यान और स्तुति से स्पष्ट होता है कि वास्तव में कनक प्रभा भगवती महालक्ष्मी का ही स्वर्णिम और वरदायक स्वरूप है, ऐसे वरदायक स्वरूप की अभ्यर्थना करने की अपेक्षा किसी अन्य स्वरूप की आराधना फिर कहां तक तर्क सम्मत और बुद्धिमत्ता पूर्ण होगी। आगे इसी ध्यान में वर्णित है कि कनक प्रभा देवी के दोनों हाथों से एक वर मुद्रा एवं दूसरा अभय मुद्रा में अवस्थित है, जिससे स्पष्ट होता है कि उनका यह स्वरूप पूर्ण रूप से अनुग्रहकारी है।
कनक प्रभा देवी तो मूलतः रस सिद्ध योगियों की पारद विज्ञानियों की आराध्या रही हैं, क्योंकि इन्हीं की साधना पद्धतियों में छिपा है, स्वर्ण निर्माण का रहस्य। स्वर्ण निर्माण जहां पारद विज्ञान के माध्यम से संभव है, जहां रसायन के माध्यम से संभव है, वहीं मांत्रेक्त पद्धति से भी पूर्ण रूप से संभव है और कहते हैं इस साधना में सफलता मिलने पर देवी कनक प्रभा के इसी मंत्र में निहित वह गुप्त क्रिया भी प्राप्त हो जाती है, जिसके द्वारा केवल तांबे को ही नहीं वरन अन्य सस्ती धातुओं को भी स्वर्ण में परिवर्तित किया जा सकता है।
यह तीन दिन की साधना है और मांत्रोक्त साधना होने के कारण अपने गर्भ में, अपने आधार में, श्रद्धा, विश्वास और भक्ति से प्रबल व्यक्ति सरलता से सिद्ध कर सकता है यह साधना। साधना अवधि में ब्रह्मचर्य का पालन करें और रात्रि काल में भोजन के स्थान पर फलाहार या दूग्धाहार लें, भूमि शयन करें और तामसिक विचारों से सर्वथा दूर रहें।
आषाढ़ी नवरात्रि की अष्टमी को यह साधना प्रारम्भ करें, प्रातः काल 7 बजे स्नानादि से निवृत्त होकर पीले आसन पर पूर्व की ओर मुंह कर बैठ जायें, एक पात्र में सुपारी स्वरूप में गणपति विग्रह रख उनका पूजन केशर, अक्षत, पुष्प से करें, पश्चात् स्वस्ति पाठ करें-
ऊँ श्रीं गणपतये नमः ऋद्धि सिद्धि सहितं मम गृहे महागणपतिं आवाहनं समर्पयामि
सुमुखश्चैक दन्तश्च कपिलों गणकर्णक,
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः,
द्वादशैतानि नामानि च पटेच्छुणुयादपि।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा,
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।
फिर अपने सामने पात्र में कनक वर्षिणी कनकधारा यंत्र स्थापित करें और प्रार्थना करें कि मैं भगवती महालक्ष्मी के शीघ्र फलदायक स्वरूप कनक प्रभा की साधना में प्रवृत्त हो रहा हूं, भगवती महालक्ष्मी मुझे यथा शीघ्र सफलता प्रदान करें। फिर पुष्प पंखुडि़यों पर धन वर्षिणी पारद शंख स्थापित करें।
पारद एक ऐसी चैतन्य धातु है, जिससे निर्मित कोई भी विग्रह अपने आप में श्री युक्त होता है और इसी विशेषता से कनकप्रभा की साधना पारद शंख पर निश्चित रूप से फलदायी होती है। इस दुर्लभ पारद शंख पर अष्ट गंध से तिलक करें और एक बड़ा दीपक शुद्ध घी का जलाकर महालक्ष्मी प्रतीक स्वरूप अवस्थित पारद शंख के सम्मुख प्रार्थना करें- देवी कनक प्रभा इसी पारद की भांति बद्ध होकर अपने सहोदर तुल्य इस पारद शंख के रूप में मेरे घर में स्थायी निवास करें।
भगवती महालक्ष्मी एवं शंख का पूजन कुंकुम, अक्षत, पुष्प, पंचामृत, दुग्ध निर्मित नैवेद्य, ताम्बूल से करें। दक्षिणा रूप में इलायची एवं लौंग समर्पित करें, पश्चात् कनक प्रभा माला से निम्न मंत्र का 5 माला मंत्र जप तीन दिन तक करें।
प्रतिदिन इस साधना की समाप्ति पर कनक धारा स्तोत्र का पाठ करें, कनकधारा स्तोत्र आपको साधना पैकेट के साथ प्राप्त हो जायेगा।
साधना पूर्ण होने पर यंत्र पूजन स्थान पर स्थापित रहने दें व पारद शंख को अपनी तिजोरी अथवा जहां रूपया-पैसा रखते हों वहां स्थापित कर दें और माला किसी नदी अथवा सरोवर में विसर्जित करें।
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