निर्णय-अनिर्णय की स्थिति में या तो व्यक्ति गलत निर्णय ले लेता है या फिर किसी नतीजे पर न पहुंचने के कारण अवसाद का शिकार हो जाता है। कई बार परिस्थितियां इतना विवश कर देती हैं कि अपनी ही बात पर विश्वास नहीं रहता और हम दूसरों की राय मंगाते है, दूसरों की राय लेना ठीक है, पर क्या दूसरे उन परिस्थितयों को बेहतर ढंग से समझ पाते हैं, जिनसे हम गुजर रहे होते हैं? इसमें छोटी-छोटी बाते महत्वपूर्ण होती हैं, यह बात केवल भुक्त-भोगी ही महसूस कर सकता है।
कहा जाता है कि औरतें दिल से सोचती हैं और पुरुष दिमाग से। ऐसा इसलिए क्योंकि औरतों का भावनात्मक पक्ष ज्यादा मजबूत होता है। कोमल हृदया होने की वजह से संवेदनाएं उन पर हावी रहती हैं और वे बार-बार स्वयं के मन को समझाती रहती हैं। ऐसा करने में उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़े तो भी वे घबराती नहीं हैं।
जब दिल की बात सुनी जाती है, तो हमेशा निर्णय जल्दबाजी में किया जाता है, क्योंकि संवेदनाएं न तो किसी का पक्ष सुनने को तैयार होती हैं, न ही परिणामों का विश्लेषण करती हैं। किन्तु दिमाग जब कार्य करता है, तो वह अच्छे बुरे दोनों पक्षों का विश्लेषण करता है, जब व्यक्ति तराजू के पलड़े की तरह चीजों को तौलकर सही दिशा की ओर कदम बढ़ाता है।
कुछ ऐसे मुद्दे होते हैं, जो भावनाओं से जुडे़ होते हैं और कुछ में केवल दिमाग लगाना ही जरूरी होता है, मान लीजिए आपको पता लगता है कि आपका साथी आपके साथ धोखा कर रहा है तो उसके साथ रहना चाहिए कि नहीं- इस द्वंद्व में दिल और दिमाग दोनों कार्य करते हैं, असल में यह एक चक्र की तरह होता है। दिल कहता है कि शायद साथी को अपनी गलती का एहसास हो जाए और वह सुधर जाए, इसलिए अलगाव की बात नहीं सोचनी चाहिए। लेकिन दिमाग कहता है कि ऐसे साथी का क्या भरोसा जो धोखा दे रहा है। हो सकता है वह फिर धोखा दे, ऐसी स्थिति में जब आपको लगे कि आपकी जिन्दगी का बहुत अहम् हिस्सा प्रभावित हो रहा है, तब दिमाग से काम लें।
अक्सर होता यह है कि हम दूसरों की वजह से सिर्फ दिल की बात सुनते हैं और तनावग्रस्त हो जाते हैं, बेहतर यह है कि एक सीमा तय करें कि कहां संवेगात्मक पक्ष को बल देना है और कहां निर्णयात्मक पक्ष को, जो दिल चाह रहा है, यदि उसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता तो आप दिल की बात सुन सकती हैं, पर जब परिस्थितयां हाथ में न रहें तो दिमाग से निर्णय लेना ही ठीक रहता है।
दिल और दिमाग की जंग में हम कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं, यह बात हर व्यक्ति के सहने की क्षमता पर भी निर्भर करती है। उसकी सोच का स्तर क्या है, वह जिन्दगी को किस रूप में आंकता है, इस पर भी निर्भर करता है, कई बार ऐसा भी होता है कि जो बात एक स्तर पर नजरअंदाज कर दी जाती है, वह विभिन्न स्थितयों में नागवार गुजरने लगती है। ऐसे में दिमाग से काम लेना चाहिए कि आखिर क्यों ऐसा हो रहा है? पहले क्या सही ढंग से सोचा नहीं गया था?
किसी का पति शराबी है तो उस स्त्री को समझना होगा कि बात हाथ से निकल चुकी है या उसे संभाला जा सकता है, दिल कहे कि अभी कोशिश कर उसकी आदत को छुड़ाया जा सकता है, तो पति को एक मौका दें, पर फिर भी बात ना बनें तो आपको अपनी जिंदगी का निर्णय लेने का अधिकार है। सोनी नौकरी करना चाहती थी, पर उसके घरवाले और पति राज इसके लिए तैयार नहीं थे, सोनी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें, पति और परिवार की बातों को वह अनदेखा भी नहीं कर सकती थी। लेकिन सोनी ने वर्षों से अपने पैरो पर खड़े होने का सपना संजोया था और उसके पास बी कॅाम की अच्छी डिग्री भी थी।
सोनी का दिल कह रहा था कि उसे जो कई ऑफर आ रहें है, उन्हें स्वीकार कर ले पर दिमाग कह रहा था कि घरवालों को कैसे समझाएं? कई दिनों के संघर्ष के बाद सोनी ने नौकरी ज्वाइन कर ली, शुरु में हर कोई नाराज हुआ, पर जैसे-जैसे सोनी सफलता की सीढि़यां चढ़ती चली गयी, वैसे-वैसे विरोध कम होते चले गए। आज सभी उसके साथ हैं, आज सोनी को इस बात की खुशी है कि उसके दिल ने जो किया वह सही था।
लेकिन ऐसा नहीं है कि हर बार हमारा दिल जो सोचे, वह सही ही हो, कई बार दिल के हाथों शिकस्त भी हाथ लगती है, अरुणा अपने पसन्द के लड़के से शादी करना चाहती थी। पर वह लड़का बेरोजगार था और नौकरी के लिए दर-बदर खाक छान रहा था, उस पर उसका मिजाज भी गरम रहता था, जबकि अरुणा एक बड़ी कम्पनी में ऊंचे पद पर कार्यरत थी, जब उसने उसी लड़के से शादी का निर्णय लिया, तब घरवालों ने अरुणा को काफी समझाया, पर अरुणा ने किसी की ना मानी। आज वह तिल-तिल कर जी रही है, दिल के हाथों लिए अपने हर निर्णय के लिए खुद को कोस रही है। पर कहते हैं ना अब पछताये होत का जब चिडि़या चुग गयी खेत, इसीलिऐ यह जरूरी नहीं है कि हर बार दिल से लिए गए निर्णय अचूक ही हों।
पर कुछ ऐसी प्रवृत्ति के लोग भी होते हैं, जो अपने दिल द्वारा लिए गए निर्णय पर असफल होने पर भी मलाल नहीं करते, उनका तो यही कहना है, आज में जियो, अब में जियो, जो टूटे और बिखरे नहीं तो वह इंसान ही कैसा? ऐसी सोच वाले लोग अपने फैसले पर चाहे सफल हों या असफल हों, उन्हें लेकर टूटते नहीं, उनका तो कुछ इस तरह खयाल है- दिल ने जो कहा वह किया, फिर लोगों से क्या गिला।
दिल और दिमाग की कशमकश सदा चलती रहती है, क्योंकि यही इंसान की जिंदगी की धुरी होती हैं, समझदारी इसी में होती है कि कब किसका इस्तेमाल करना है, इसका सही ताल-मेल रखा जाए, बेहतर होगा कि अपनी जिन्दगी में दूसरों को हस्तक्षेप न करने दें, क्योंकि आपकी परिस्थितियों को आपसे बेहतर ना कोई जान सकता है, ना कोई समझ सकता है।
एक भिक्षुक ने एकांत में ध्यान करने का फैसला किया। वे अपने आश्रम से कुछ दूर चले गये और रास्ते में आई एक शांत और निर्मल झील के मध्य अपनी नाव ले आये, नाव को वहां बांध कर उन्होंने अपनी आँखें बंद की और ध्यान करने लगे। कुछ घंटों तक ध्यान की निर्बाध साधना चली। अचानक उन्हें महसूस हुआ कि कोई अन्य नाव उनकी नाव को टक्कर मार रही है। आंखें बन्द थी, पर वे अनुभव कर रहे थे और उनका गुस्सा बढ़ रहा था। अंत में उन्होंने आँखें खोलकर नाविक को डांटने का फैसला किया कि क्यों वह उनका ध्यान भंग कर रहा है?
लेकिन जैसे ही उन्होंने आंखें खोलीं, तो देखा कि वहां पर तो एक खाली नाव है, जो शायद पानी के प्रवाह में बहती हुई इस दिशा में आ गयी है। इसी क्षण में भिक्षु को आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्हें समझ में आ गया कि गुस्सा उनके भीतर ही था, जो एक छोटा सा कारण मिलते ही तुरंत बाहर आ गया। दूसरा व्यक्ति तो महज खाली नाव है। उसके बाद से जब भी उन भिक्षु को लगता कि कोई उन्हें गुस्सा दिला रहा है, वह यही सोचते कि गुस्सा भीतर है, दूसरा व्यक्ति महज नाव है।
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