परन्तु अधिक मास हर तीसरे वर्ष आ जाता है। हिन्दी पंचाग के 12 महीनों में 354 दिन होते हैं, जबकि 365 दिन में पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर लगाती है, जो एक वर्ष होता है, हिन्दी कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष में 11 दिन जो अधिक होते हैं, इसी से तीन वर्ष में एक अधिक मास बनता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जिस मास में सूर्य संक्राति नहीं होता है, वह मास अधिक बन जाता है।
महर्षि हिमाद्रि के अनुसार अधिक मास में वह क्षमता होती है कि मनुष्य उस समय पूजा, साधना, तपस्या इत्यादि सम्पन्न कर अपने पूर्व जन्म कृत दोषों का निवारण कर सकता है तथा दान, त्याग तप इत्यादि द्वारा जीवन में शारीरिक एवं मानसिक शुद्धता ला सकता है।
देवी भागवत के अनुसार अधिक मास में विशिष्ट पूजा, धार्मिक कार्य, साधना इत्यादि करने से विशेष फल प्राप्त होता ही है। देवी भागवत में तो यहां तक लिखा है कि जैसे एक अणु जितना बीज विशाल वृक्ष को बना सकता है उसी प्रकार अधिक मास में किये गए पूजा साधना का सहड्ड फल प्राप्त होता है।
इस माह में शुभ अथवा मांगलिक कार्य सम्पादित करना वर्जित है, परन्तु यह भी स्पष्ट किया गया है कि पुरुषोत्तम मास में दान, धर्म, तीर्थ यात्र, उपासना, साधना, मंत्र जप इत्यादि के लिये उत्तम है। यह माह भगवान विष्णु और भगवती लक्ष्मी को समर्पित है, पुरुषोत्तम कल्प में नारायण लक्ष्मी की साधना करने पर सर्वोत्तम लाभ प्राप्त होता है।
पुरुषोत्तमेति मासस्य नामाप्यस्ति सहेतुकम्।
तस्य स्वामी कृपासिन्धुः पुरुषोत्तम उच्यते।।
भगवान पुरुषोत्तम इसे अपना नाम देकर इसके अधिपति बन गये। इसीलिये यह अत्यन्त महत्वपूर्ण माह है, पुरुषोत्तम मास में साधनात्मक क्रियायें करने से मनुष्य का मन पवित्र होकर ईश्वरीय आराधना में उच्चता प्राप्त करता है और उसके जीवन में पुरूषोत्तममय शक्ति की अभिवृद्धि होती है। यह मास अन्य सब मासों का अधिपति है। यह जगत पूज्य है तथा इस माह में साधना, पूजा करने पर सभी प्रकार के दुःख, दारिद्रय और पाप का नाश होता है।
येनाहमर्चितो भक्त्या मासे{स्मिन् पुरुषोत्तमे।
धन पुत्र सुखं लब्ध्वा पश्चाद् गो लोक वासभाक्।।
इस माह में विधि-विधान सहित भगवान पुरुषोत्तम की पूजा, आराधना करने से भगवान नारायण प्रसन्न होते हैं और पूर्ण समर्पण भाव से पूजा, साधना करने वाले को सभी प्रकार के धन, सुख- सौभाग्य, संतान सुख आदि प्रदान करते हैं, ऐसा व्यक्ति सभी सुखों को भोग कर मृत्यु के पश्चात् दिव्य गो लोक में निवास करता है।
इसीलिये कहा गया है-
मंगलं मंगलार्चनं सर्वमंगलमंगलम।
परमानन्दराज्यं च सम्यमक्षरमव्ययम्।।
जो मंगल रूप हैं, जिनका पूजन मंगलमय है, जो सभी मंगलो का मंगल करने वाले हैं तथा जो परमानन्द के स्वामी हैं, ऐसे सत्य, अक्षर और अव्यय पुरुषोत्तम भगवान वासुदेव का ध्यान करना चाहिये।
भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते है-
यो मामेवमसम्मूढ़ो जानाति पुरुषोत्तमम् ।
स सर्ववि७जति मां सर्वभावेन भारत ।।
(गीता 15/19)
हे भारत! जो तत्वदर्शी ज्ञानी पुरुष मुझे पुरुषोत्तम जानता है, मानता है, वह सभी विधियों से, सभी प्रकार से निरन्तर मुझ पुरुषोत्तम को ही भजता है।
हिन्दू संस्कृति में एकादशी का बहुत महत्व होता है, हिन्दू कैलेंडर में प्रति वर्ष 24 एकाद्वशी होते हैं, लेकिन पुरुषोत्तम मास के एकाद्वशी में वृद्धि हो जाती है। जिन्हें परमा एवं पदमिनी कहते हैं, इसे पुरुषोत्तम कमला एकाद्वशी भी कहा जाता है। इन दोनो का बड़ा महत्व होता है, इस दिवस पर निर्जला व्रत रख पूजन, ध्यान आदि सम्पन्न किया जाता है। कहते हैं पुरुषोत्तम एकाद्वशी पर लक्ष्मी नारायण की साधना करने में जीवन धन की उपलब्धता में वृद्धि होती है और साधक की मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है। साधक को इन दोनों एकाद्वशी का पूर्ण साधनात्मक लाभ प्राप्त करना चाहिये।
19 वर्ष मे एक बार अधिक मास आषाढ़ में आता है, उसे कोकिला अधिक मास कहते हैं। इस काल में कोकिला व्रत का प्रचलन है। इसका सर्वाधिक पालन कुमारी कन्या सुसंस्कारित श्रेष्ठ वर प्राप्ति के लिये करतीं हैं।
चन्द्र वर्ष के अनुसार प्रत्येक वर्ष में 12 महीने होते हैं तथा प्रत्येक महीना एक देव को समर्पित है लेकिन चंद्र वर्ष और सूर्य वर्ष की आपस में गति के संयोजन न होने के कारण से ऋषि मुनियों ने गणना की और एक अधिक मास का निर्माण किया। प्रत्येक महीने के एक अधिपति ब्रह्मा ने निश्चित कर लिये लेकिन अधिक मास को कोई देव वरण करने हेतु तैयार नहीं हुये, क्योंकि यह हर तीन वर्ष में एक बार आता है। इस पर अधिक मास पुरुष रूप में दुःखी एवं सन्तप्त होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचा और कहा कि मुझे किसी भी देवता से संयुत्तफ़ नहीं किया गया है और मलमास, मलिमुच्छा के नाम से सम्बोधित किया जाता है।
इन सब स्थितियों से मैं अत्यन्त दुःखी और संतप्त हूं तथा आपकी शरण में आया हूं। आप ही जगत के पालन कर्त्ता और सृष्टि के संचालन कर्त्ता हैं। आपसे निवेदन है कि मेरे लिये उचित व्यवस्था करें।
इस स्थिति को देख कर भगवान विष्णु ने करूणा स्वरूप में कहा कि आज से अधिक मास का अधिपति मैं हूं और यह मास पुरुषोत्तम मास कहा जायेगा। इस मास की विशेषता अन्य सभी महीनों से अधिक होगी तथा इस मास में धार्मिक उच्च कार्य सम्पन्न करने पर विशेष सिद्धि व सफलता प्राप्त होगी। पुरुषोत्तम मास के सम्बन्ध में तो एक पूरा ग्रंथ ही लिखा गया है जिसे पुरुषोत्तम ग्रंथ कहा जाता है, जिसमें इस माह की विशेष व्याख्या तथा धार्मिक, आध्यात्मिक महत्व का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है।
भविष्योत्तर पुराण में यह विवेचन आया है कि पुरूषोत्तम मास में उपवास अथवा व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन प्रारम्भ करना चाहिए और कृष्ण पक्ष के अन्तिम दिन इसे पूर्ण करना चाहिए।
पुराणों में तो अधिक मास के बारे में अत्यधिक विस्तार से विवेचन आया है। पुराणों में लिखा है कि अधिक मास में पूजा करने से मंत्र जप करने से, इच्छा रहित शुद्ध भाव से क्रिया करने से, श्रेष्ठ ग्रंथों श्रीमद्भागवत, रामायण, गीता का पठन व श्रवण करने से सुफल प्राप्ति अवश्य होती है।
अधिक मास विष्णु एवं लक्ष्मी की पूजा का मास है। इस मास में ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर शिव गौरी, राधा कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण की षोड़शोपचार पूजा सम्पन्न करनी चाहिए। किसी मंदिर अथवा स्वयं के पूजा स्थान में बैठकर गणपति और गुरु पूजन के साथ विभिन्न देवताओं की पूजा साधना अवश्य सम्पन्न करनी चाहिए। अधिक मास में सात्विक शाकाहारी भोजन, दूध, फल, नारियल इत्यादि का सेवन करना चाहिए।
भविष्योत्तर पुराण में लिखा है कि भगवान श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं कि अधिक मास में केवल भगवत् साधना करने के उद्देश्य से की गई साधनाओं से लौकिक एवं पारलौकिक दोनों ही फल प्राप्त होते हैं। मनुष्य अपने जीवन में लौकिक दृष्टि से विशेष सफलता प्राप्त करता है तथा अपघात, दुर्घटना, आकस्मिक मृत्यु, दुःख, चिंता, दुर्भाग्य, व्याधियां, अकारण समस्या, पारिवारिक कलह, बेरोजगारी, दरिद्रता का निवारण होता है।
मनुष्य जीवन का लक्ष्य पुरुषोत्तम शक्ति से युक्त होना है, जीवन को पालन-वर्धन शक्ति से आपूरित करना है। मनुष्य जीवन में पालन-वर्धन की चेतना आने से वह अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण भली-भांति कर पाता है, अपनी मनोकामनाओं को मूर्ति रूप दे पाता है। यदि मनुष्य जीवन सार्थक करना है, तो अपनी देह की पुरुषोत्तम चेतना को जाग्रत करना ही पड़ेगा। पुरुषोत्तम तत्व जीवन्त कर साधक चारो पुरूषार्थ धन, अर्थ, काम, मोक्ष को प्राप्त करने की ओर तेजी से अग्रसर होता है और वह नर से नारायण की यात्रा में सफ़लता प्राप्त करता है।
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