यह परमात्मा की वह शक्ति है, जिस शक्ति ने यह सृष्टि रची, वही शक्ति इसे धारण करती है, वही इन्हें समेट भी लेती है। परमात्मा और हमारे बीच वही शक्ति है। सारा जगत् यह स्वीकार करता है कि कोई महाशक्ति इस सम्पूर्ण जगत् को चला रही है, किसी ऐसे आदि शक्ति का वरद्हस्त इस सम्पूर्ण सृष्टि पर है, जो सभी क्रियाओं की जननी है, वही मातृत्व शक्ति है।
आद्या शक्ति माँ सम्पूर्ण संसार में सबसे अधिक पूज्य है, उनकी आराधना सर्वोत्तम मानी गयी है। भौतिक रूप में प्रकृति शरीर धारिणी हमारी गुरु माता भगवती उसी परात्पर शक्ति माता की स्वरूप हैं। जिनके वात्सल्य में अनंत शिशुवत् शिष्य-शिष्यायें शिक्षित-दीक्षित होकर पूर्णता प्राप्त कर रहें हैं। यह हमारी गुरु माता के मातृत्व भाव का व्यापक स्वरूप है, जिसे तीक्ष्ण से तीक्ष्ण बुद्धि द्वारा नहीं अपितु निर्विकार अबोध भाव से ग्रहण किया जा सकता है, यह भरोसा ही शिष्य के कल्याण के लिये पर्याप्त है।
कहा जाता है कि ईश्वर न स्त्री हैं, न पुरूष, न ही कोई जन्तु तात्पर्य वह सब कुछ है और सबसे निराला भी। मानव उन्हें पितृ रूप में भी भज सकता है, मातृ रूप में भी भज सकता है। श्रीमद्भगवद् गीता में वर्णन है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन से दुर्गा स्तुति करायी थी, आद्या शक्ति की स्तुति करते हुये अर्जुन कृष्ण को दुर्गा स्वरूप में देख कर कृष्णे कहकर पुकारते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से मातृ शक्ति दुर्गा की स्तुति कराकर जगत को सदा के लिये यह सन्देश दिया कि यदि तुम मुझे देखना चाहते हो, मुझे जानना चाहते हो, तो सर्वप्रथम माता को देखो, माता को जानो, माता ही तुम्हें हमारे पास पहुंचायेंगी। इसलिये माता के चरणों में ही प्रथम वन्दना करनी चाहिये।
माता के स्वरूप में जो क्षमा है, जो सरलता है, जो दया है, शिशु को गोद में उठा लेने की जो उत्सुकता है, जो अपार वात्सल्य है, वह पितृ स्वरूप में एक विलक्षण गम्भीरता के भीतर छिपा होता है, उसे प्रकट करने वाली माता ही है, पिता-पुत्र के बीच मध्यस्ता कराने वाली माता ही है। माँ के चरणो में बैठकर उनके संकल्प, इच्छा के अनुरूप कोई भी पितृ चरणों का अधिकारी बन सकता है।
उन्हीं प्राण प्यारी माँ की ममता, उनके वात्सल्य की महिमा का गुणगान करने का अवसर हमें प्राप्त हो रहा है। दयामयी परमेश्वरी पथ प्रदर्शिका माता भगवती की स्तुति करने का सौभाग्य हमारे समक्ष उपस्थित हो रहा है। जिनके वात्सल्य स्पर्श से जीवन में व्याप्त कोलाहल समाप्त होना सुनिश्चित है।
जिनके प्रेम, स्नेह से सम्पूर्ण सिद्धाश्रम दैदीप्यमान है, जो सभी शिष्यों के जीवन की निर्माण दात्री है। जो सद्गुरुदेव नारायण के साधको, शिष्यों की संकल्प शक्ति की आधार स्तम्भ बनकर सदैव उनके साथ अडिग खड़ी हैं और शास्त्रों में स्पष्ट है कि शिव- शक्ति एक-दूसरे से पृथक हैं ही नहीं, जो शिव हैं, वहीं शक्ति, जो शक्ति है, वही शिव इनमें कोई भेद नहीं है। जो भेद दृष्टित होते हैं, वे मात्र जन कल्याण के भले के लिये भिन्न-भिन्न पात्र होते हैं। अन्ततः सभी एक शक्ति के विभिन्न स्वरूप ही होते हैं।
नारायण-भगवती में कोई भिन्नता नहीं है, बल्कि माँ का हृदय तो करूणा का सागर होता है, पिता कठोर हो सकते हैं, लेकिन माँ हमेशा कोमल हृदय की होती है, वह अपनी संतान से कभी भी कठोर व्यवहार नहीं कर सकती है, उनका वरदहस्त सदैव आशीर्वाद् के लिये अथवा अपनी संतान की क्षुधा को समाप्त करने हेतु ही उठता है, माँ भगवती आज भी हमारे उतनी ही निकट हैं, जितना वे सशरीर हमारे समीप थी, हमें तो सामीप्यता के लिये उन्हें आवाज देनी है।
आद्या शक्ति स्वरूपा माँ भगवती अपने स्वाभाविक मातृ-स्नेह अपने बालकों पर न्यौछावर करती रहती हैं, उनके हृदय में उतनी ही तड़प रहती है, जितनी व्याकुलता से उनके बच्चे उन्हें पुकारते हैं। हमारी मातृ शक्ति हम सिद्धाश्रम साधक परिवार की अनमोल सम्पत्ति है, हमारा गौरव है, सद्गुरुदेव की ओर से हमारे लिये उन्हीं की करूणा, प्रेम, वात्सल्य का स्वरूप है, उनकी ओर से हमारे लिये प्रेम उपहार है, जो वे माता भगवती के स्वरूप में हम सभी शिष्यों पर लुटाती रहती हैं। माँ शब्द में ही अतुल्य आनन्द समाहित है, वात्सल्य का अनन्त सागर है, माँ का प्रेम गंगा की धारा से भी शुद्ध, पावन पवित्र है। संतान कैसी भी हो परन्तु माँ अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होती है।
उन्हीं मातृ शक्ति के जन्मोत्सव, प्रकट उत्सव पर आप सभी शिशुवत् भाव युक्त शिष्यों का आवाहन है, इस मातृ शक्ति दिवस पर, जो वात्सल्य की मूर्त स्वरूपा है, जिनकी करूणा का आनन्दपान कर जीवन में तृप्ति और संतुष्टि अनुभव होती है, जिनके चरणो की वन्दना कर कोई भी शिष्य सद्गुरु नारायण की कृपा का पात्र बन जाता है। उनकी अनन्त शक्तियों को स्वयं में समाहित करने की योग्यता से परिचित हो जाता है।
आद्या शक्ति स्वरूपा माँ भगवती की अनन्त करूणा है कि उन्होंने हम सभी को अपना सानिध्य, वात्सल्य प्रदान कर हमारे जीवन को अनुकूल स्थितियों से प्रकाशित किया। उनकी असीम अनुकम्पा है कि उन्होंने हम सभी शिष्यों को सतत् रूप से साधना, उच्चता, सफलता के पथ पर पथप्रदर्शिका के रूप में हमारे साथ गतिशील रहीं। उन्होंने हमें इस योग्य निर्मित किया, जिससे निरन्तर चैतन्य व क्रियाशील रहें।
उन्हीं माँ आद्या शक्ति स्वरूपा भगवती का जन्मोत्सव प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान का केन्द्र बिहार प्रदेश की तपोभूमि पाटली पुत्र पटना में सम्पन्न होगा, इस दिव्य महोत्सव में सम्मिलित होकर आप सभी साधक, शिष्य सिद्धाश्रम शक्ति स्वरूप में अवस्थित भगवती माता जी के अनन्त करूणा, वात्सल की चेतना आत्मसात कर जीवनी शक्ति से आप्लावित हो सकेंगे। यह जन्मोत्सव मातृ ऋण के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भाव है, उनकी स्तुति, चिंतन, ध्यान, भजन कर अनवरत् रूप से बहती माँ के वात्सल्य शक्ति से सराबोर होने का चिंतन है। सच्चिदानन्द नारायण भगवती की चेतना को साक्षीभूत स्वरूप में आत्मसात कर जीवन को अभ्युदय, यशस्वी बनाने का मार्ग है। आपका हार्दिक अभिनंदन है—!!
मेरे आंखो में जो तुम्हारे लिये स्नेह है, प्रेम है, उसे तुम कभी समझ सको, मेरे हृदय में जो तुम्हारे लिये अपनत्व है, उसे तुम कभी अनुभव करने का प्रयास करो, तो तुम आभास कर पाओगे मेरे हृदय की वेदना को, मेरे आन्तरिक मन की पीड़ा को, हो सकता है मेरा व्यवहार तुम्हें अनुचित लगता हो, ऐसा हो सकता है, कि मैं तुम्हारे आडम्बर युक्त क्रियाओं में फि़ट ना हो पाता हूं, लेकिन तुम यह समझ लो कि मेरा उद्देश्य स्पष्ट है, मेरे विचार दृढ़ हैं। सद्गुरुदेव नारायण माता भगवती द्वारा निर्धारित, उनकी इच्छा अनुरुप तुम्हारे लक्ष्य तक तुम्हे पहुंचाने में मेरी ओर से कोई कसर नहीं रहेगी। इसके लिये मुझे संसार की चाहे जितनी आलोचना सहनी पड़े, कितने भी लोग मुझ पर ऊंगलियां उठायें मेरे जीवन में चाहे जितने तफ़ूान आयें, कितने भी संकट के बादल मंडरायें, मैं आपके जीवन पर लेश मात्र आंच नहीं आने दूगां।
आपका गुरुदेव
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