दुनिया में कोई भी अशान्ति की आशा नहीं करता, पर वह कार्य अशान्ति के करेगा, बीज दुख के बोयेगा, ऐसे जालें बुनने लग जाता है, जिसके कारण उसकी शान्ति छिन जाती है। आज के समय में सबसे ज्यादा परेशान मनुष्य है और केवल अशान्ति के कारण, मानसिक उद्वेग के कारण, व्याकुलता के कारण। इसलिये दुनिया में नींद ना आने के सबसे अधिक मरीज पाये जाते हैं, जितने भी विकसित देश हैं, वहां पर यह रोग अपने चरम पर है। भयभीत रहना, डरते रहना, रोने का मन करे या गुस्सा ज्यादा आये, अकेले रहने में अच्छा लगता हो और किसी की कोई बात अच्छी न लगती हो तो समझ लेना चाहिये कि कहीं न कहीं हम डिप्रेशन के शिकार होने लग गये हैं। कुछ लोग ऐसे भी सड़क पर चले जा रहें है, अकेले चले जा रहे है, लेकिन कुछ बोलते हुये जा रहें है या उनका ध्यान कहीं और है, महिलाओ को देखा होगा, कपड़े धोते समय वे कपड़े धोती जा रहीं हैं, पर बोलती जा रहीं हैं। गुस्सा कर रहीं हैं कभी सास के ऊपर, कभी बच्चे के ऊपर, इससे पता लगता है कि उनके अन्दर बहुत तनाव भरा हुआ है। बहुत लोगों को आदत हो जाती है, चीजें रखकर भूलने लगते हैं और समस्या इतनी बढ़ने लगती है कि कई बार तो अपने बच्चो के ही नाम भूल जाता है। रिश्तेदारों का नाम भूल जायेगा, यह भीषण तनाव ग्रस्त होने की स्थिति है।
तनाव जब आने लग जाता है तो व्यक्ति का ब्लडप्रेशर बढ़ने लग जाता है, जिनका लो ब्लडप्रेशर रहता है, तो उनका और लो रहने लगता है। शुगर का पूरा प्रकोप शरीर में फैलता है, तो याददाश्त कम होती है। याददाश्त कम होती है तो आंखो की रोशनी भी कम होने लग जायेगी, पाचन शक्ति बिगड़ जायेगी, बड़ी विचित्र स्थिति होती है।
मस्तिष्क कितना दबाव सह सकता है और एक समय ऐसा आ जाता है कि आदमी के हंसने का स्रोत सूख जाता है। हंसने की बातें सुनाई तो देती हैं, पर आदमी हंस नहीं पाता। यह सूचक है कि तनाव इस सीमा तक पहुंच गया है कि हमारे हंसी के सरोवर को सूखा दिया। मनोरंजन के साधन होंगे पर मनोरंजन हो नहीं पायेगा और आदमी को मार-धाड़ के दृश्य ज्यादा पसन्द आने लग जाते हैं, क्योंकि वह अपना तनाव कहीं निकालना चाहता है।
आज की इस व्यस्त जीवन-शैली के दौर में आदमी के अन्दर बहुत ज्यादा तनाव बढ़ा है। आदमी की समस्यायें बढ़ी हैं और इसी के कारण उसकी सहनशीलता भी घट गयी है, आदमी के अन्दर क्रोध इतना भरा हुआ है कि वह देखने में तो शान्त है, लेकिन अगर किसी से कोई बात हो जाती है, तो ज्वालामुखी की तरह फट जाता है। आदमी के अन्दर बहुत दबाव और तनाव है, घुटन है, जीने का कोई उपयुक्त अर्थ नजर नहीं आता, श्वास जरूर लेता है, लेकिन कहीं ना कहीं खोखलापन है। अधिकांश लोग उस तनाव से ग्रस्त हैं, जो आज के समय की महामारी है।
मनोविज्ञान के आधार पर सोचें तो हमारे मस्तिष्क में चार चीजें महत्वपूर्ण हैं-मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार (अहं तत्व)। इन्हें अन्तः करण भी कहा जाता है। जहां हम तिलक लगाते हैं, जिसे आज्ञा चक्र भी कहा जाता है, उसके ठीक पीछे मन की शक्ति है। बहुत छोटे से प्रकाश के एक कण की तरह से यह कार्य करता है, जीवात्मा के सम्पर्क में आने के पश्चात् प्राणों का संयोग हो जाता है, तब यह मन चेतन की तरह कार्य करता है। चेतना वह चीज है, जिसके कारण आपके अन्दर होश रहता है और आपका शरीर कार्य करता है। चेतना आपकी आत्मा का प्रकाश है, जो शरीर में फैला हुआ है। ये जो आंखे अपने-आप खुलती और झपकती हैं, श्वासों का लेना और छोड़ना, यह जो आपके शरीर में खून का दौरा चल रहा है, धड़कने चल रही हैं, ऊष्मा है शरीर में, वह चेतना के कारण है, आत्मा के कारण है।
चेतन तत्व इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख-दुख, ज्ञान ये सब प्रकट करता है। हमारा मन चेतना से जुड़ा हुआ है और जिस चीज पर हमारा मन एकाग्र होगा, हमें वही दिखेगा, हम जिधर भी देखेंगे, मन की एकाग्रता में जो है, मन जहां जुड़ा है, वही दिखेगा। आंखे कहीं और देख रही हैं और मन कहीं और तो दिखाई आपको वही देगा, जो मन देख रहा है। आप कुछ बोल रहें हैं और मन वहां नहीं है, तो आप कुछ का कुछ बोल जायेंगे, ऐसे में शारीरिक रूप से क्रिया होगी, पर जुड़ाव नहीं होगा।
मन के साथ उपचेतन मन भी है, अवचेतन मन भी है, महाचेतन मन भी है। मन है, मन के पीछे बुद्धि है। मन का काम है संकल्प-विकल्प करना, अच्छा-बुरा सोचते रहना। मन का काम बिल्कुल ऐसा है, कि जैसे एक चौराहा है, वहां दो रास्ते हैं, एक सद्मार्ग, दूसरा अनुचित मार्ग, यह मन वहां पर लाइट (प्रकाश) दोनो मार्गो पर एक साथ डालता है, मन ऐसा वकील है, जो अपराधी की तरफ से भी लड़ रहा होता है और जो अपराधी नहीं है, उसकी ओर से भी लड़ रहा होता है। मन अच्छा भी बतायेगा, बुरा भी बतायेगा। इसका काम इतना ही है, लेकिन इसके पीछे है बुद्धि, जो जज का कार्य करती है-
धरणावती बुद्धि निश्चयात्मिका बुद्धि
बुद्धि डिसीजन लेगी, निणर्य करेगी, यही बुद्धि का कार्य है, इसके भी पीछे चित्त का सरोवर है, जिसमें हमारी सारी यादें केन्द्रित होती हैं और चित्त के अन्दर हर्ष और शोक की लहर हर समय उठती रहती है। खुशी की लहर आयेगी, गर्मी की लहर आयेगी, अच्छे की लहर आयेगी, बुरे की लहर आयेगी। आनन्द में होंगे, फिर दुख में आयेंगे, उत्साह और निराशा में भी आयेगे, तो कभी जीतने का अहंकार जागेगा और फिर हारने के कारण भी उपस्थित हो जायेंगे। यह सरोवर हर समय लहरों पर लहरें पैदा करता रहता है। इसलिये जरूरी नहीं कि व्यक्ति हर समय खुश ही रहे। इसके साथ एक और चीज है, वह है अहं तत्व। अहं तत्व अपनी मैं को बनायें रखता है। यह सही मात्रा में हो तो हिम्मत दिलाता है, अन्यथा व्यक्ति के विनाश का कारण बन जाता है। यह भी आपकी एक शक्ति है, ये चार चीजे आपके मस्तिष्क में कार्य करती हैं, इन सबके पीछे बैठी है चेतना, आपका होश, आपकी आत्मा, इसी के कारण ही ये सब कार्य करते हैं।
आत्मा की सबसे अच्छी मन्त्री मन है, ये सीधा जुड़ा हुआ है, रात-दिन सन्देश दे रहा है, ले रहा है। कान, आंख, नाक, त्वचा, जीभ सब उसकी खिड़कियां हैं, यहां से बहुत सी चीजे अन्दर प्रवेश करती हैं। कानो से शब्द प्रवेश कर रहें है, आंखो से रूप प्रवेश कर रहा है, खिड़की के पीछे से झांकने वाला मन सब अन्दर पहुंचा रहा है। कई बार मन कहीं और होता है, सामने से ढ़ोल बजाती हुयी बारात निकल जाये पर आदमी को पता ही नहीं लगेगा कि कोई बारात भी गयी है। इतना ढ़ोल बजता रहा, इतना शोर होता रहा कोई पता ही नहीं लगा, क्योंकि मन बाहर नहीं है। जब आप सो जाते हैं, तो सबसे पहले मन खो जाता है। मन खो जायेगा तो फिर निद्रा आयेगी। जो चेतना शक्ति है, वह उस समय लुप्त हो जाती है और जब आप स्वप्न की अवस्था में होते हैं, तो मन सोयेगा लेकिन अवचेतन मन जाग्रत रहता है, वह चित्त के साथ जुड़कर कार्य करेगा।
यह आश्चर्यजनक है कि जब सोते हैं, तो चौदह से लेकर चालीस बार आदमी करवटें बदलता है। अवचेतन मन के अन्दर जो चीजें छिपी हुयी होती हैं, उसके हिसाब से बहुत बार आदमी सोते-सोते अपनी भाव मुद्रायें बदल रहा होता है। सोते हुये आदमियो के चित्र लिये गये हैं, कितनी बार वह गुस्से की शक्ल बनाता है, कितनी बार चिड़-चिड़ाहट की शक्ल बनाता है, कितनी बार उसका चेहरा हंसता हुआ नजर आता है और अगर इसे देखना हो तो छोटे से बच्चे को सोते हुये देख लो। कभी सहमेगा, कभी हंसेगा, कभी गुस्सा दिखायेगा, क्योंकि अन्दर मन कार्य कर रहा है, चित्त के ऊपर पड़े पूर्व जन्म के संस्कार प्रभाव दिखा रहे होते हैं, न जाने हमारे अन्दर कितना कुछ भरा हुआ है।
अस्सी करोड़ छोटी-छोटी तन्त्रिकायें हैं, जिन पर हमारी याददाश्त अंकित होती है। वह याददाश्त अपना कार्य करती रहती हैं। याद मिटेगी लेकिन वह बीज नहीं मिटता जब तक कि उनका फल नहीं मिलता। कोई भी कर्म आप करेंगे उस कर्म का प्रभाव यह होता है कि उसका बीज आपके अन्दर अंकित हो जाता है।
आपको याद भी नहीं है, पर आपके मस्तिष्क में सब भरा हुआ है, आप अपने अन्दर इतना सब कुछ भरे हुये हैं, कि आखिरी घड़ी में आपकी जब गवाही होगी कि कितना अच्छा किया, कितना बुरा? उस समय आप अच्छाई को याद रखोगे, बुरे को भूल जाओगे, पर आपका चित्त गवाही देगा। चित्रगुप्त ही चित्त हैं, वह गवाही देने के लिये पहुंचेगे। पूरा बही खाता लाकर सामने रखेंगे कि यह आदमी ये सब कुछ कर चुका है, गवाही भी हम ही देंगे, अपने वकील भी हम होंगे, अपराधी भी हम होंगे, जज भी हम होंगे। परमात्मा ऐसी अनोखी सत्ता है कि वह दूर बैठकर हमसे ही हमारा निर्णय करायेगी। हमें, हमसे ही गवाही दिलाकर खुद ही हमको पुलिस बनायेगी और कटघरे में लाकर खड़ा कर देगी।
खोजों के आधार पर यह माना गया है कि जब आदमी निद्रा में होता है तो उसके मस्तिष्क से कुछ आवृत्तियां विद्युत तंरग बनकर कार्य करती हैं। क्योंकि जाग्रत अवस्था में कार्य करते हुये जो फ्रीक्वेंसी हमारे भीतर से प्रकट होती है, उसे 14 से 21 हर्ट्ज तक माना गया है। इन तरंगो का नाम बीटा है, सांसारिक कार्य करते समय ये तरंगे मस्तिष्क के अन्दर से छूटती हैं, इस पूरे शरीर में नस-नाडि़या, तरंगे अन्दर से कार्य करती हैं।
शरीर का सबसे ऊपर वाला भाग, जिसे हम सहस्त्रार चक्र कहते हैं, यहां किरणो का फव्वारा प्रकट होता है, यहीं पर रिसीवर लगा हुआ है, ट्रांस मीटर लगा हुआ है, यहीं से बहुत सारी चीजें रिसीव भी कर रहें हैं, यहीं से बहुत सारी चीजें छोड़ भी रहें हैं। बाहरी परिस्थितियां और घटनायें जब हमारे मस्तिष्क में दबाव उत्पन्न करती हैं, मानसिक दबाव उत्पन्न करती हैं, हमारी उनके प्रति जो प्रतिक्रियायें उत्पन्न होती हैं, उनसे जो मानसिक दबाव बनता है, उसे ही तनाव कहा जाता है।
मस्तिष्क ऐसा है कि वह बहुत ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकता। कितना कोई सहन कर सकता है, उसकी भी एक सीमा है। आज का व्यक्ति कम समय में सबसे आगे पहुंचने की लालसा रखता है, पांच साल में पच्चीस साल का काम करके सबसे आगे पहुंचने की मनसा रखता है। यह बच्चो में जो आज से ही भावनाये शुरु हो गयीं, पांच सालो में पच्चीस सालो का काम करना चाहता हूं, मैं कहता हूं कि अगर करना चाहते हो, करो लेकिन उसके लिये उतनी तैयारी होनी चाहिये। जो आदमी ऐसी तैयारी करना चाहता है, उसे सबसे पहले 6 घण्टे की गहरी नींद लेनी चाहिये, सुबह उठकर खुली हवा में जाये, व्यायाम करे, पसीना निकाले और दिन में कम से कम पांच बार खुलकर हंसे, ज्यादा से ज्यादा पानी पियें, अनुभवी लोगो का अनुभव प्राप्त करके योजनायें बनायें और उसके माध्यम से किसी का सही मार्ग निर्देशन लेकर आगे बढ़े तो पांच साल में पच्चीस सालों का काम किया जा सकता है, पर करते उल्टा है, देर से सोना, देर तक सोना, खाने-पीने का ध्यान नहीं, व्यायाम करेंगे नहीं, सारे कार्य हड़बडाहट में होंगे और तनाव में हर समय डूबे रहेंगे। आखिरी समय तक काम करते नहीं, और देखेगे काम सिर पर आ गया तो, फिर भागना शुरु। समय पर काम करने की कोशिश कीजिये और फिर न हो पाये तो दुखी मत होना, आज नहीं कल देख लेगें, करेंगे, जरूर जितना समय के साथ हो सकता है करेंगे। आलस्य करना और काम-टालू स्वभाव बना लेना, आज के काम को कल पर टालना, कल के काम को परसों पर, इससे एक दिन वह काम बढ़ता-बढ़ता ढ़ेर लग जाता है, उस दिन आप पूरा काम निपटाना भी चाहोगे तो पूरा निपटाया नहीं जायेगा, तो इससे तनाव ही पैदा होगा।
कछुआ बहुत धीरे-धीरे चलने वाला जीव था, खरगोश बहुत तेजी से चलता था, तेज भागता था, लेकिन तेजी से भागकर आगे पहुंच गया और फिर पेड़ के नीचे जाकर आराम से तानकर सो गया, जैसे कोई चादर तानकर सो गया हो। कछुआ जो लगातार चलने वाला था, वह अपनी एक गति से चलते-चलते जीत गया, क्योंकि वह न तेज दौड़ा और ना कम दोड़ा, आराम से चलता चला गया। ऐसी ही जीवन में जो रेगुलर चल रहें हैं, नियमित चल रहें हैं, ठीक-ठीक काम करते चल रहे हैं, वे लोग अपनी मंजिल तक सफलता पूर्व पहुंचेगे और सुखी होंगे। इसलिये नियमित अपने आपको चलाइये, नियमित का तात्पर्य है, पूरी व्यवस्था बनाकर अपने आपको कार्यक्षेत्र में चलाना, नहीं तो समस्यायें अपना कार्य कर जायेगी, तनाव बढ़ता चला जायेगा। एक बात और ध्यान रखना, कार्यक्षेत्र में सहकर्मी का दबाव साथ में हो, किसी की राजनीति सामने हो और आप राजनीति नहीं कर पा रहे हैं या आपने राजनीति की और आज के समय में कोई भी व्यक्ति कुछ ना कुछ छल-कपट करके व्यक्ति को बांध लेता है, उस समय आदमी का मन बड़ा दुखी होता है। बहुत बार ऐसा हो जाता है, उसके कारण भी दबाव से आदमी तनाव में रहता है। वास्तव में यदि राजनीतिक व्यवहार करते जाओगे तो अशान्ति बढ़ेगी। एक आदमी सीधे-सादे ढंग से चलता जाये, अपना कार्य जारी रखें, अपना कार्य पूरा रखे, किसी के साथ फालतू बात न करे तो वह बहुत सारे तनाव से बच सकता है। गड़बड़ वहीं शुरु होती है, जब किसी की निन्दा चुगली में शामिल होंगे, किसी की आलोचना करेंगे।
जैसे नन्ही घास होती है कि छोटे बनकर रह लो, तेज हवा आ रही है झुककर स्वागत कर लो। मौसम ठीक है, परिस्थितियों अनुकूल हैं, सिर को उठाकर खड़े हो जाओ। अपनी मुस्कुराहट में कमी नहीं आने दो और अपने हरे-भरे रहने में कमी मत आने दो। इसलिये बहुत दबाव अपने अन्दर मत लाना। क्योंकि आपके अन्दर रहने वाला तनाव, जितना अधिक आपके अन्दर आता जायेगा, वह अपना काम जरूर करेगा और आपको पता भी नहीं चलेगा कि आपके शरीर के अन्दर कौन-कौन सी समस्यायें पैदा हो गयी है। संकट कालीन अवस्था में जिस तरह से सतर्क हो जाते हैं, ऐसी स्थिति आपके अन्दर, उस समय लागू होती है, जब आप किसी दबाव में, तनाव में होते हैं। उस समय जो पिट्यूटरी ग्लैंड है, जिसे पीयूष ग्रन्थि कहते हैं, उससे एक हार्मोन शरीर के अन्दर काम करने लगता है, जिसको आज के लोग ए सी टी एच हार्मोंस का नाम देते हैं। ये शरीर में आयेगा और अपना काम शुरु कर देगा। अधिवृक्क ग्रन्थि से कोर्टिसोल नाम का हार्मोंस निकलेगा, ब्लड शुगर को उत्पन्न करने लग जायेगा, जो हमारी रक्त नलिकायें हैं, जिनसे खून का प्रवाह शुरु में तेजी से काम करता है, उनके अन्दर ऐंठन आने लग जाती है, रक्त का प्रवाह तेज होने लग जाता है। अकड़ाहट शरीर के अन्दर आने लग जाती है, जो हमारी लार ग्रन्थि है, जिससे लार शरीर में आता है, वह सूख जाती है, उस समय मुंह सूखा रहता है। जो हमारे शरीर के अन्दर डाइजेशन के लिये स्त्राव निकलता है, वह विकृत होने लग जाता है, उससे ऐसिडिटी बढ़ने लग जायेगी, व्यक्ति पर ज्यादा तनाव का प्रभाव होगा, तो हार्ट के ऊपर असर आयेगा, बहुत ज्यादा तनाव पैदा हो गया, तो पक्षाघात हो सकता है। आधा शरीर झूल जायेगा, तात्पर्य आधे शरीर के अन्दर, पैरालाइसिस की स्थिति हो जाती है।
मस्तिष्क के दो भाग हैं, दाहिना भाग बाएं भाग को संचालित करता है, मस्तिष्क का बायां भाग शरीर के दाएं भाग को संचालित करता है। एक तरफ अटैक हुआ तो समझ लीजिये कि उसका प्रभाव आधे शरीर पर होगा, ब्रेन हेमरेज वाली स्थिति भी उसी समय होती है, बहुत दबाव और तनाव सहन करते-करते व्यक्ति उस स्थिति में पहुंच जाता है कि मस्तिष्क की नस फट जाती है। अभी तक जो विचार विमर्श हुआ, उसमें यह माना गया कि चेतना का विकास आवश्यक है, चेतना का विकास जितने विस्तृत रूप में होगा, मनुष्य के भीतर उतनी ही जीवट शक्ति का प्रादुर्भाव होगा और वह बड़े से बड़े कार्य, विकराल संघर्ष में घबरायेगा नहीं, लेकिन उसे इसके लिये अपनी चेतना का विकास करना होगा। चेतना का विकास जितनी तेजी से होगा, उतना ही चमत्कार जीवन में घटित होने लग जायेंगे। फिर आप बड़े संकट मोल लीजिये, आपको संकट, संकट जैसा नहीं लगेगा, दुनिया के महान पुरूषों ने बड़े से बड़े कार्य किये, लेकिन वे तनावग्रस्त नहीं हुये। यह मार्ग जो आपको सफलता की उच्च स्थिति पर पहुंचा सकता है, उसका अनुसरण करने में कोई अहित नहीं है।
जीवन के दुर्गम पथ में जीत उसी की होती है, जो धैर्य के साथ आगे बढ़ता है, रत्ती भर धैर्य भी सेर भर सूझ-बूझ के बराबर है। आप जिस समस्या को दूर नहीं कर सकते, उसे धैर्य के माध्यम से हल्का कर सकते हैं। यदि पहली डुबकी में रत्न ना मिले तो अपने को रत्नहीन मत समझ लेना, धैर्य पूर्वक प्रयास करते रहो। उस कड़ी मेहनत का कोई फायदा नहीं, जिसमें धैर्य ना हो, जो भी उच्च सफलता प्राप्त किये, उनमें अपार धैर्य था, यदि एडीसन धैर्य नहीं रखते तो, वे दस हजार बार असफल होने के बाद भी सफलता प्राप्त नहीं करते।
ध्यान रखें जीवन में धैर्य-संयम की बड़ी अधिक महत्ता है, धैर्य शक्ति को अपने जीवन में सशक्त बनायें, साथ ही कर्म की निरन्तरता नियमित रूप से बनायें रखें। इस तपस्या के माध्यम से आप में जो योग्यता विकसित होगी, उसकी अनुभूति कुछ समय पश्चात् आप स्वयं अनुभव कर सकेंगे। धैर्य और संयम में व्यक्ति स्वयं पर अतिरिक्त दबाव नहीं महसूस करता, जिससे उसका मस्तिष्क शांत भाव से समस्या को सुलझाने का प्रयत्न करता है और अंततः वह बिना तनाव के अपनी समस्या सुलझाने में सफल होता है। तनाव अधिक रहने पर मस्तिष्क पूर्ण रूप से कार्य नहीं कर पाता, जिसके कारण कार्य क्षमता के साथ-साथ कार्य का परिणाम भी प्रभावित होता है।
जीवन में कोई भी कार्य हड़बड़ाहट में ना करें, जल्दबाजी जोखिम से भरी होती है, जिसके कारण क्षति की संभावना बढ़ जाती है। इसलिये अपने जीवन में संयम, धैर्य को महत्व दें और जब बात एक साधक की हो तो उसके जीवन में धैर्य का बहुत बड़ा योगदान होता है, धैर्य की तपस्या सफलता का महत्पूर्ण अंग है, जिसे धारण कर आप अजेय सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
इन सब बातो का इतना ही तात्पर्य है कि आप स्वयं में धैर्य और संयम का विकास करें, जिससे आपका मस्तिष्क दबाव रहित होकर, सन्मार्ग पर क्रियारत रहे और आप अपनी इच्छा अनुसार अपने जीवन को अग्रसर करने में सफल हो, सद्गुरुदेव नारायण माँ भगवती आपका कल्याण करें—–!!
सद्गुरुदेव कैलाश चन्द्र
श्रीमाली जी
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