विनम्र स्वभाव में लचीलापन होने के कारण, जहां इसमें दृढ़ता की शक्ति है, वहीं जीतने की कला भी है और शौर्य की पराकाष्ठा भी है। विनम्रता वृक्ष के नीची जड़ की मधुरता के समान है, जिसमें से समस्त दैवीय सद्गुणों की शाखायें फूटती हैं। विनम्र स्वभाव विलक्षण मानवीय मूल्य की सर्वोत्तम स्थिति है, जो मनुष्य को देवदूत बनाने की अद्भुत क्षमता से पूर्ण है। श्रेष्ठ व्यक्ति की अनिवार्यता विनम्र स्वभाव होता है।
विनम्रता ऐसा चमत्कारिक गुण है, जो व्यक्ति की न्यूनता को ढ़क देता है। महान् कवि और मेघदूत व शाकुन्तलम् जैसे कालजयी ग्रन्थों के रचयिता संत कालीदास बहुत ही कुरुप थे, लेकिन अपने अद्भुत् ज्ञान और विनम्र स्वभाव के कारण उन्होंने चक्रवती राजा विक्रमादित्य का मन जीत लिया और वे सम्राट के सबसे प्रिय और विश्वस्त सभासद् होने का गौरव प्राप्त करने में सफल हुये थे।
इसी प्रकार मिरावा भी ब्राह्य सौन्दर्य विहीन थे, किन्तु विनम्रता में उनका कोई सानी नहीं था। उनकी वार्तालाप की शैली इतनी मधुर और मुग्ध करने वाली थी कि उनसे बात करते समय उनके सौन्दर्य विहीनता का एहसास ही नहीं होता था। उनके विनम्र और सौम्य व्यवहार ने सबका मन मोह लिया था। यूनान के महान विचारक और आत्मदृष्टा सुकरात भी देखने में कुरूप थे, लेकिन उनके मन की सुन्दरता और व्यवहार में विनम्रता ने उन्हें महानता के उच्च शिखर पर पहुंचा दिया था।
विनम्र स्वभाव जिन्दादिली का नाम है और अकड़ना मुर्दे की पहचान। कहा भी जाता है, झुकता वही है, जिसमें जान है, अकड़ना तो बस मुर्दे की पहचान है। फलदार वृक्ष हमेशा झुके रहते हैं, जबकि जो केवल अकड़ना जानता है, प्रकृति उसे उखाड़ फेकती है। जब नदी में बाढ़ आती है और तेज तूफान चलता है तब किनारे खड़े बड़े-बड़े वृक्ष अपनी अकड़ के चलते ढ़ह जाते हैं, किन्तु नरम हरी घास प्रलयकारी तूफान के विकराल थपेड़े सहजता से झेल जाती है। हमारा पूरा आध्यात्मिक चिन्तन इस बात का साक्षी है कि विनम्र होकर ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
गुरु नानक देव ने कहा है-
जो झुकना जानता है, वही ऊंचाई को प्राप्त करता है। जो व्यक्ति जितना अधिक विनम्र होता है, उसके सद्गुणों में उतनी ही वृद्धि होती है। ज्ञान शिष्टता और विनयशीलता को बढ़ाने में मदद करती है- विद्या ददाति विनयम्! फल आने पर वृक्ष स्वतः झुक जाते हैं, इसी तरह सम्पत्ति, समृद्धि आने पर व्यक्ति सहज व सरल होना चाहिये।
महाकवि बिहारी जी कहते हैं कि मनुष्य और नल के जल की गति यानी स्वभाव एक समान होता है। वह जितना नीचे होकर चलता है, उतनी ही अधिक उच्चता को प्राप्त करता है- नर की अरु नल नीर की गति एकै करि जोय। जेतो नीचौ ह्नै चलै, तेतो ऊँचो हो।। विनम्रता से हम बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं, जबकि कठोरता से हमें खोने के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता। एक बार सद्गुरुदेव नारायण ने एक शिष्य को विनम्रता का महत्त्व समझाते हुये पूछा- हमारे मुंह में पहले दांत आये या जीभ। शिष्य ने उत्तर दिया ‘जीभ’ उन्होंने फिर पूछा- पहले दांत नष्ट होंगे या जीभ। ‘दांत’ शिष्य का उत्तर था। सद्गुरुदेव ने समझाते हुये कहा कि दांत जीभ के बाद आने के बावजूद पहले गिर जाता है, क्योंकि उसमें कठोरता होती है। जबकि जीभ नम्र होने कारण अन्त तक बनी रहती है।
वस्तुतः हमारे जीवन में लचीलेपन की परम आवश्यकता है, यही लचीलापन हमारे जीवन को उदार और शिष्टता युक्त बनाता है। विनम्रता दूसरों के दिलों पर राज करने की कला और आत्म विश्वास की उच्चता है। विनम्रता हमें स्वयं से परिचय कराती है, व अपना आत्म मूल्यांकन करने का अवसर प्रदान करती है, हमारे धैर्य क्षमता में अभिवृद्धि कर अनुभवों द्वारा परिपक्व बनाती है, संवेदनाओं के विस्तार का दुरूह कार्य विनम्रता द्वारा सहज और सरल हो जाता है। किसी भी व्यक्ति के साथ आत्मीयता के स्तर तक जुड़ पाने की प्रक्रिया में विनम्रता का महत्वपूर्ण योगदान है।
सीता स्वयंवर के समय भगवान राम द्वारा शिव धनुष तोड़े जाने पर क्रोधित हुये परशुराम को परास्त करने के पीछे राम की विनम्रता ही थी। जबकि लक्ष्मण के तीखे वचनों को सुनकर वे आग बबूला हो फरसा मारने को तैयार हो गये थे। भृगु ऋषि द्वारा भगवान विष्णु की छाती पर अकारण प्रहार करने के बाद श्री हरि की विनम्रता और मधुर वचनों को सुनकर ऋषि श्रेष्ठ भावविभोर होकर क्षमा याचना करते हुये अपने स्थान को लौट गये थे। यही नहीं विनम्रता के गुण के ही कारण उन्होंने भगवान् विष्णु को सर्वश्रेष्ठ देव भी घोषित किया है।
विनम्र स्वभाव एक सहज मानवीय गुण है। हम नम्रता का पाखण्ड करके उसे छिपा नहीं सकते। हमारी विनयशीलता विपरीत अवसरो पर अथवा प्रतिकूल परिस्थितियों में ही अपनी कसौटी पर खरी उतरती है। अपने प्रतिद्वन्द्वी की सफलता और अपनी विफलता पर असहज स्थिति को सहज रूप से लेने का गुण हमें विनम्र स्वभाव से ही प्राप्त होता है। यदि हम स्वयं पराजित होकर विजेता को सच्चे मन से बधाई दे रहें है, तो यह सचमुच हमारे विनम्र स्वभाव की सर्वश्रेष्ठ ऊँचाई मानी जायेगी।
विनम्रता हमें सहज और न्याय संगत होना भी सिखाती है। व्यक्ति के मान-सम्मान, पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि के साथ उसकी विनयशीलता का बढ़ना स्वस्थ मनोवृत्ति का परिचय है। हमारा प्रयास होना चाहिये कि सफलता के कारण हम दम्भी और अहंकारी ना बनें। यदि दुर्भाग्यवश ऐसा होता है, तो अहंकार सफलता को ही लील जायेगा और व्यक्ति ठूंठ बन कर रह जायेगा और ठूंठमय स्थितियां पूर्ण रूपेण अनुपयोगी होती हैं।
विनम्रता का क्षेत्र बहुत व्यापक है। कालान्तर में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यह हमारे उत्थान और उत्कर्ष के नये कीर्तिमान स्थापित करने की साधना बनती है। हमारी वाणी, हमारा आचरण, व्यवहार, रहन-सहन, वेश-भूषा, चाल-चलन, आदर-सत्कार, सफर के समय या अन्यत्र कहीं भी हमेशा नम्रता पूर्ण रहना चाहिये, क्योंकि यह हमारे व्यक्तिगत जीवन तक ही सीमित नहीं होता, अपितु अपने संस्कार व सांसारिक जीवन का मापदण्ड भी होता है। किसी भी व्यक्ति की वास्तविक सम्पदा उसकी अमीरी अथवा भौतिक साधनो की बहुलता में नहीं होती वरन् उसके चरित्र की गुणवत्ता और उच्चता में निहित होती है, जो दीर्घ काल तक उसे जीवित रखती है।
एक संत का कथन है कि लघुता से ही मनुष्य को प्रभुता प्राप्त होती है, पर प्रभुता से प्रभु दूर हो जाते हैं-
आपकी माँ
शोभा श्रीमाली
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