सती के वियोग से अत्यंत दुःखी होकर भगवान शंकर ने ब्रह्मा तथा विष्णु से पुनः सती प्राप्ति का उपाय पूछा। भगवान विष्णु तथा ब्रह्मा जी के बहुत समझाने पर उन्होंने कहा कि सती की सर्वव्यापकता तथा नित्यता का ज्ञान होने पर भी मैं उनके पत्नीत्व का अभाव नहीं सह सकता। फिर तीनों जनों ने यही तपस्या आरंभ की। भगवती ने प्रकट होकर शंकर को वर दिया कि मैं गंगा तथा पार्वती के रूप में हिमवान के घर अवतरित हो कर दोनों रूपों से आपको ही वरण करूंगी और वैसा ही हुआ। भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा जी को भी यथेच्छ वर की प्राप्ति हुई। तब से इसका महात्म्य विलक्षण समझा जाता है, ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में यह पवित्र स्थान आज भी है, जहां शंकर भगवान ने तपस्या की थी और भगवती सती को प्राप्त करने के लिये युग-युग के लिये समाधिस्थ हो गये थे। जिन्हें समाधि से जगाने के लिये देवताओं के द्वारा प्रेरित हो कर कामदेव ने उसी जगह पर भगवान शिव जी का ध्यान भग्न किया था और शिव जी के क्रोध से भस्म होकर अनंग हो गये थे। यह स्थान उमानंद भैरव के नाम से अभी भी प्रसिद्ध है, जो कि कामाक्षा क्षेत्र के रक्षक माने जाते हैं। कामाक्षा दर्शन से पहले उमानंद भैरव जी का दर्शन करना महत्वपूर्ण माना जाता है।
यहां भगवती साक्षात स्थित हैं। इस महापीठ के लाल जल में स्नान करके ब्रह्म हत्यारा भी भव बन्धन से मुक्त होता है। भगवती सती जी का गुह्य प्रदेश (योनि) यहां कामरूप में गिरी थी। जो कि कामाख्या नाम से प्रसिद्ध हुआ और 52 शक्ति पीठों में से सबसे सर्वोत्तम माना गया। कामाख्या देवी का मन्दिर गुवाहाटी शहर आसाम में नील पर्वत पर स्थित है। तंत्र शास्त्र के अनुसार करतोया नदी और ब्रह्मपुत्र नदी के बीच त्रिकोणाकार क्षेत्र को कामरूप प्रदेश माना जाता है, जो कि श्रेष्ठ शक्तिपीठ है। भैरवाचारी साधक, अघोर साधक, साबर मंत्र के साधक तथा वामाचारी साधकों के लिये यह अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध पीठ है।
पौष मास में होने वाले अम्बुवाची पर्व के दौरान मां भगवती रजस्वला होती हैं और उनका दर्शन निषेध हो जाता है। इसी समय में पूरे विश्व के सभी प्रांतों से साधक, संन्यासी, अघोरी, भक्त, श्रद्धालु साधना तथा पूजन हेतु आते हैं। तीन दिनों के उपरांत जगदम्बा कामाख्या शक्ति पीठ का विशेष पूजन होता है। पौराणिक मत से प्राक्ज्योतिषपुर (गुवाहाटी) के राजा नरकासुर अपने घमण्ड में चूर हो कर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के रूप में पाने का दुःसाहस कर बैठा।
जब वह कामाख्या देवी के पास गया तो महामाया कामाख्या देवी ने उससे कहा कि इस रात में नील पर्वत पर चारो तरफ पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो तो मैं तुम्हारी इच्छा अनुसार पत्नी बन जाऊंगी। गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिया और विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था महामाया ने एक मायावी मुर्गे के द्वारा रात्रि समाप्ति की सूचना दी।
यह स्थान आज भी कुक्टाचकि के नाम से विख्यात है। बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर का वध किया। नरकासुर के मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बना। भगदत्त का वंश लुप्त हो जाने से कामरूप राज्य छोटे छोटे टुकड़ों बंट गया और सामंत राजा कामरूप पर शासन करने लगा।
सती स्वरूपिणी आद्याशक्ति महाभैरवी कामाख्या तीर्थ भी माना जाता है। इसीलिये इस शक्ति पीठ में कौमारी पूजा अनुष्ठान का भी अत्यंत महत्व है। इसी जगह आद्या शक्ति के अम्बुवाची पर्व का महत्व दिया गया है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की दिव्य अलौकिक शक्तियों का तथा तंत्र मंत्र में पारंगत साधक अपनी-अपनी मंत्र शक्तियों को पुरश्चरण अनुष्ठान कर साधनाओ में पूर्णता प्राप्त करते हैं। वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ स्थल है। इस पर्व में मां भगवती के रजस्वला होने से पूर्व गर्भ गृह स्थित महामुद्रा पर सफेद वस्त्र चढ़ाये जाते हैं, जो कि रक्तवर्ण हो जाते हैं। मंदिर के पुजारियों द्वारा ये वस्त्र प्रसाद के रूप में श्रद्धालु भक्तों में विशेष रूप से वितरित किये जाते हैं।
पौष शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि पर सद्गुरु सानिध्य में माता पार्वती स्वरूपा गौरी लक्ष्मी कामरूप दैवीय गर्भ गृह के दर्शन युक्त शक्ति साधना, पूजा, मंत्र जाप की क्रिया का प्रभाव द्वाद्वश ज्योर्तिंलिंग से भी सर्वश्रेष्ठ है। नववर्ष के पूर्व बेला पर ऐसी दिव्यतम साधनाओं व दीक्षाओं से जीवन में दुर्गति, दुःख, विषाद, रोग, पीड़ा, शत्रु बाधा, दुर्भाग्य, धन हीनता समाप्त होती ही है। आने वाला नूतन वर्ष हर स्वरूप में कामदेव अनंग सौभाग्य सुहाग संतान वृद्धि व सहस्त्र लक्ष्मियों से युक्त हो सकेगा। ऐसे दिव्य अलौकिक तीर्थ पर दर्शन, पूजा करने से जीवन की विषमतायें समाप्त होती हैं।
कामाख्या देवी वरदायिनी, महामाया नित्य स्वरूपा, आनन्ददात्री देवी शक्ति हैं, गुप्त तंत्र में लिखा है कि- कामाख्या ही सर्वविद्या स्वरूपिणी, सर्व सिद्धि प्रदात्री शक्ति हैं। जीवन में सर्व सुख, आनन्द व सिद्धि प्रदान करती हैं। कामाख्या शक्ति जीवन की रस साधना है, शरीर साधना है, जीवन को पूर्णता से जीने की साधना है, जिससे साधक सांसारिक जीवन का पूर्ण भोग व आनन्द की प्राप्ति करता ही है। भौतिक कामनाओं इच्छाओं की पूर्ति पूर्ण रूप से सहज संभव हो पाती है। कामाख्या शक्ति पीठ काम रूपिणी महाशक्ति, जीवन निर्माण शक्ति पीठ है। शक्ति का शुद्ध भौतिक सांसारिक स्वरूप कामाख्या ही है। कामाख्या शक्ति सांसारिक गृहस्थ सुख की आधार शक्ति है, कामरूप शक्ति की क्रियात्मक चेतना साधक के वंश वृद्धि, सुसंस्कारवान संतान प्रदायक शक्ति है।
कामाख्या शक्ति सौभाग्य वृद्धि साधना महोत्सव 24-25 दिसम्बर को कामाख्या शक्ति पीठ धाम, गुवाहाटी में सम्पन्न होगा। सद्गुरु सानिध्य में कामाख्या मंदिर प्रांगण में साधक सांसारिक जीवन के सभी रंग सौन्दर्य, सम्मोहन, वशीकरण, अक्षय धन लक्ष्मी, जीवन निर्माण ऊर्जा से अपने लक्ष्यों को तीव्रता से प्राप्त कर सकेगा और धन-वैभव-यश-लक्ष्मी, काम शक्ति, शत्रु स्तंभन, दीर्घायु जीवन, आरोग्य शक्ति से आपूरित होकर सफलता और श्रेष्ठता की दीक्षा, साधना से विभूषित हो सकेंगे। जिससे आने वाला नूतन वर्ष हर स्वरूप में श्रेष्ठ गृहस्थ सुखों से युक्त होगा, शक्ति साधना से पुत्र-पौत्र, धन-धान्य की वृद्धि हो सकेगी।
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