अरून्धत्युवाच-
धन्यास्मि कृतपुण्यास्मि यस्या मे पतिरीदृशः।
मत्समा नास्ति त्रैलोक्ये देवी वा मानुषी हि वा।। 1 ।।
अरून्धति- मैं धन्य हूँ, पुण्यवती हूँ, जिसके पति ऐसे
हैं, मेरे समान देवी या मानुष तीनों लोकों में कोई नहीं है।। 1।।
पिबन्त्यास्त्वन्मुखाम्भोजात्तृप्तिर्नास्ति कथामृतम्।
न मां क्षुधा न मां तृष्णा बाधते भगवन्मुने।। 2 ।।
भगवान! मुने! आपके मुखकमल से कथा रूपी
अमृत पीती हुई, मुझे तृप्ति नहीं हो रही है, भूख और प्यास भी
मुझे बाधित नहीं कर रही है।। 2।।
बदरीवनमाहात्म्यं वद भर्तः कृपान्वितः।
यथा प्राह महादेवो महेशानीं तपोनिधे।। 3।।
स्वामी! कृपा करके बद्री वन का माहात्म्य बता दें,
जिस प्रकार महादेव ने पार्वती को बताया था।। 3 ।।
कियन्मानं तु तत्क्षेत्रं किं फलं तत्र जायते।
केन केन तपस्तप्तं बदर्याश्रममण्डले।। 4 ।।
उस क्षेत्र की माप कितनी है? वहाँ फल क्या मिलता
है? बदरिकाश्रम-मंडल में किस-किस ने तपस्या की?।। 4 ।।
एतत्सर्वं समासेन कथयस्व प्रसादतः।
यत्र गंगा ब्रह्मरूपा संस्थिताऽघौघनाशिनी।। 5 ।।
यह सब संक्षेप में कृपया बता दें, जहाँ पाप समूह नाशिनी
ब्रह्म रूपा गंगा अवस्थित हैं।। 5।।
सूत उवाच- इति पृष्टो ह्यरून्धत्या भगवान् द्रुहिणात्मजः।
क्षणं ध्यात्वा नमस्कृत्य महेशं प्राह सुन्दरीम्।। 6।।
अरून्धती के द्वारा इस प्रकार पूछे जाने पर भगवान्
ब्रह्मपुत्र (वशिष्ठ) ने क्षण भर ध्यान किया, फिर शंकर को
नमस्कार कर पत्नी से कहना प्रारंभ किया।। 6 ।।
वशिष्ठ उवाच- शृण्वरून्धति वक्ष्यामि यथाह भगवांछिवः।
तत्ते संप्रति वक्ष्यामि सावधानावधारय।। 7 ।।
अरून्धती! सुनो, भगवान् शिव ने जैसा कहा, वह मैं
अभी तुम्हें बताऊँगा। तुम सावधान होकर ग्रहण करो।। 7 ।।
श्रुत्वा तत्पंचमाहात्म्यं पुनः पप्रच्छ पार्वती।
महादेवं महात्मानं भक्तितत्परमानसा।। 8 ।।
पूर्वोक्त पंचतीर्थों का माहात्म्य सुनकर भक्तिपरायण
मन वाली पार्वती ने महात्मा महादेव से पुनः पूछा।। 8 ।।
बदरीवन माहात्म्यं कथयामास पार्वतीम्।
तत्तेऽहं सम्प्रवक्ष्यामि पुण्यं पापविनाशनम्।। 9 ।।
महादेव ने पार्वती से कहा कि मैं पापनाशक व
पुण्यदायक बद्रीवन का महात्म्य कहूँगा।। 9 ।।
कण्वाश्रमं समारभ्य यावन्नन्दगिरिर्भवेत्।
तावत्क्षेत्रं परं पुण्यं भुक्तिमुक्तिप्रदायकम्।। 10 ।।
कण्वाश्रम से लेकर नन्दगिरि तक जितना क्षेत्र है,
वह परम परित्र और भुक्ति मुक्ति दायक है।। 10 ।।
कण्वो नाम महातेजा महर्षिर्लोकविश्रुतः।
तस्याश्रमपदे नत्वा भगवन्तं रमापतिम्।। 11 ।।
लोक में विख्यात कण्वनामक महा तेजस्वी महर्षि ने
उस आश्रम में भगवान् रमापति (विष्णु) को नमस्कार करके
उस क्षेत्र में निवास के लिये प्रार्थना की।। 11 ।।
दुरात्मानोऽपि गच्छन्ति पदं दुःख विवर्जितम्।
नन्दप्रयागके स्नात्वा सम्पूज्य च रमापतिम्।। 12 ।।
दुरात्मा लोग भी नन्द प्रयाग में स्नान तथा रमापति
का पूजन करके दुःख शून्य स्थान प्राप्त कर लेते हैं।। 12 ।।
किं किं न जायते तस्य मुक्तिस्तस्य करे स्थिता।
धन्याः कलियुगे घोरे ये नरा बदरीं गताः ।।13।।
उसे क्या-क्या नहीं मिलता है? मुक्ति तो उसके हाथ
में ही रहती है। भयंकर कलियुग में वे मनुष्य धन्य हैं, जो
बदरिकाश्रम में पहुँच जाते हैं।। 13 ।।
यत्र ब्रह्मादयो देवा हरिभक्तिरताः प्रिये।
निवसन्ति स्थले रम्ये नानातीर्थविराजिते।। 14 ।।
प्रिये! जहाँ ब्रह्मा आदि देवता हरि भक्त होकर
अनेक तीर्थों से शोभीनय स्थल में निवास करते हैं।। 14 ।।
धन्यः स एव लोकेषु यो गच्छेब्ददरीं नरः।
न तस्य पुण्यमहिमा वर्णनाय च शक्यते।। 15 ।।
वह मनुष्य धन्य है, जो बद्री धाम में जाता है। उसके
पुण्य की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है।। 15।।
मनसाऽपि च ये लोका बदरीवनमाश्रिताः।
ते वै वासफलं देवि प्राप्नुवन्ति न संशयः ।। 16 ।।
देवि! जो लोग मन से भी बद्री वन (बदरिकाश्रम)
का आश्रय ग्रहण कर लेते हैं, वे भी वहाँ निवास का फल
प्राप्त करते हैं, इसमें सन्देह नहीं।। 16।।
ये तत्र वासिनो लोका बदर्याश्रममण्डले।
विष्णुरूपधराः सर्वे भवन्ति वरवर्णिनि।। 17 ।।
जो लोग बदरिकाश्रम-मण्डल में निवास करते हैं, वे सब
विष्णु रूप धारी होते हैं।। 17 ।।
चतुर्धेदंसमाख्यातं क्षेत्रं परमपावनम्।
स्थूलं सूक्ष्मं सूक्ष्मतरं शुद्धं चेति प्रकीर्त्तितम्।। 18 ।।
यह परम पावन क्षेत्र चार प्रकार से वर्णित है-स्थूल,
सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और शुद्ध।। 18 ।।
योजनत्रयविस्तीर्णं दीर्घं द्वादशयोजनम्।
अगम्यं पापिनां तद्वै महदैश्वर्यदायकम् ।।19।।
यह क्षेत्र तीन योजन चौड़ा और बारह योजन लम्बा
है। यह पावन धाम महान ऐश्वर्य प्रदायक है।। 19 ।।
मनसाऽपि स्मरेद्यो वै विशाले बदरीति च।
तद्वासी सोऽपि विज्ञेयो मृतो मुक्तिमवाप्नुयात्।। 20 ।।
जो मन से भी बदरी विशाल का स्मरण करता है,
उसे भी वहाँ का निवासी समझना चाहिये। वह मरने पर मोक्ष
प्राप्त करता है।। 20 ।।
गन्ध मादन बदरी नर नारायणाश्रमः।
कुबेरा दिशिलारम्यो नाना तीर्थ विराजितः।। 21 ।।
गन्ध मादन, बदरी और नर नारायण का आश्रम
कुबेर आदि की शिला से रमणीय व तीर्थों से शोभित है।21।
सर्वैर्देवगणैर्युक्तो नानामुनिगणान्वितः।
चिह्नं तत्र प्रवक्ष्यामि येन ते प्रत्ययो भवेत्।। 22 ।।
वह सभी देव गणों से युक्त और नाना मुनि गणों से
सम्बलित है। वहां का एक चिह्न बताऊँगा। जिससे तुम्हें
विश्वास हो जायेगा।। 22 ।।
तप्तोदकमयी धारा वह्नितीर्थसमु७वा।
वर्त्तते तत्र सुभगे देवानामपि दुर्लभा।। 23 ।।
सुन्दरी वहाँ वह्नि तीर्थ (अग्नि तीर्थ) से उत्पन्न गरम
जल की धारा है, जो देवताओं के लिये भी दुर्लभ है।। 23 ।।
बदरीनाथनैवेद्यं यो मोहात्तु परित्यजेत्।
चाण्डालादधमो ज्ञेयः सर्वधर्मबहिष्कृतः ।।24।।
जो व्यक्ति बदरीनाथ का नैवेद्य मोह वश त्याग देता
है। उसे चाण्डाल से भी अधम तथा सभी धर्मों से बहिकृष्त
समझना चाहिये।। 24 ।।
लक्ष्मीः पचति नैवेद्यं भुक्ते नारायणः स्वयम्।
चाण्डालेनापि संस्पृष्टं न दोषाय भवेत्क्वचित्।। 25 ।।
वहाँ लक्ष्मी नैवेद्य (भोजन) पकाती हैं और स्वयं
नारायण भोजन करते हैं। वहाँ का नैवेद्य चाण्डाल से भी छू
जाने पर कहीं दोषधायक नहीं होता है।। 25।।
येन भुक्तं तु नैवेद्यं श्रीविष्णोः परमात्मनः।
सैव लोके परब्रह्मस्वरूपो नात्र संशयः।। 26 ।।
जो व्यक्ति परमात्मा विष्णु का नैवेद्य भक्षण करता
है, वह पर ब्रह्म स्वरूप हो जाता है, इसमें सन्देह नहीं।। 26 ।।
बदरीनाथमूर्त्तिं वै मनसापि स्मरेत्तु यः।।
तेन तप्तं तपस्तीव्रं दत्ता तेन धराऽखिला।। 27 ।।
जो बदरीनाथ की मूर्ति का मन से भी स्मरण करता
है, उसने मानो तीव्र तप कर लिया और सम्पूर्ण पृथ्वी दान में
दे दी अर्थात्, तीव्र तप और पृथ्वी दान का फल उसे प्राप्त
होता है।। 27 ।।
माषमात्रं तु यो दद्यात्सुवर्णं रजतं हि वा।
जन्मान्तरसहस्त्रेषु दारिद्रयं नोपजायते ।।28।।
जो वहाँ एक उड़द भर भी सोना या चाँदी दान
करता है, वह हजारों जन्मों में दरिद्र नहीं होता है।। 28 ।।
कणमात्रमपि जलं पितृनुदिश्य येन वै।
दत्तं तेन कृतं सर्वं पितृणां मुक्तिकारणम् ।।29।।
जिसने वहाँ पितरों का उद्देश्य करके एक कण भी
जल दिया, उसके पितर मुक्त होते ही हैं।। 29 ।।
लोभ मोहसमाविष्टे कलौ धर्मविवर्जिते।
नरास्त एव धन्याः स्युर्बदरीं ये गताः प्रिये।। 30 ।।
प्रिये! लोभ और मोह व अधर्म से व्याप्त कलयुग में
वे ही मनुष्य धन्य है, जो बदरीवन में गये हुये हैं।। 30 ।।
गमिष्यामि विशालां वै यो वै कथयतेनिशम्।
सोऽपि तत्फलमाप्नोति बदरीनाथदर्शनात् ।। 31 ।।
मैं बदरिकाश्रम जाऊँगा, इस प्रकार जो सतत कहता
है, वह भी बदरीनाथ के दर्शन का फल पा जाता है।। 31 ।।
बदरीवासिनो लोका विष्णुतुल्या न संशयः।
येषां दर्शनमात्रेण पापराशिः प्रणश्यति ।।32।।
बदरिकाश्रम में वास करने वाले लोग विष्णु तुल्य
होते हैं, इसमें सन्देह नहीं। उनके दर्शन मात्र से पाप राशि नष्ट
हो जाती है।। 32 ।।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन घोरे कलियुगे नरैः।
कर्त्तव्यो बदरीवासः पापिनामपि मुक्तिदः।। 33 ।।
इसलिये घोर कलियुग में मनुष्य को सब प्रकार के
प्रयत्न से बदरिकाश्रम में वास करना चाहिये, जो पापियों के
लिये भी मुक्ति दायक है।। 33 ।।
न काशी न तथा काञ्ची मथुरा न गया तथा।
प्रयागश्च तथाऽयोध्या नावन्ती कुरूजांगलम्।। 34 ।।
अन्यान्यपि च तीर्थानि यथासौ कलिनाशिनी।
बदरीतरूणा या वै मण्डिता पुण्यगास्थली।। 35 ।।
काशी, कांची, मथुरा, गया, प्रयाग, अयोध्या,
अवंती, कुरूक्षेत्र और अन्य तीर्थ भी बदरी के समान नहीं हैं।
बदरी तरूण, मंडित व पुण्यदायिनी स्थली है।। 34-35।।
यत्र साक्षात्सरिच्छरेष्ठा गंगा पापौघनाशिनी।
विष्णोश्चाप्यत्र सान्निध्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।।36।।
जहाँ नदियों में श्रेष्ठ तथा पापसमूह का नाश करने
वाली साक्षात् गंगा विराजमान हैं। यहाँ विष्णु का सान्निध्य भी
समस्त पापों का नाशक है।। 36।।
यत्र ब्रह्मा च रूद्रश्च्य विष्णुश्च््यैव सुरोत्तमाः।
गन्धर्वाप्सरसश्च््यैव किन्नरा गुह्यकास्तथा।। 37 ।।
प्रमथा यक्षरक्षांसि वसन्ति हरिमानसाः।
एतत्परात्मकं क्षेत्रं न त्याज्यं मुक्तिमिछिता।। 38 ।।
यहाँ ब्रह्मा, रूद्र, विष्णु, देवता, गन्धर्व, अप्सरा,
किन्नर, गुह्यक्, प्रमथगण, यक्ष, राक्षस-ये सब विष्णु
में चित्त लगाकर वास करते हैं। मुक्ति चाहने वाले
व्यक्ति इस श्रेष्ठ क्षेत्र का कभी त्याग न करें।। 36-38 ।।
यावत्प्राणाः शरीरेऽस्मिन् यावदिन्द्रियशुद्धता।
गात्राणि यावच्छैथिल्यं नाप्नुवन्ति महात्मभिः
बदरीगमने तावद्विलम्बो न विधेयकः।। 39 ।।
जब तक शरीर शिथिल ना हो जाये, तब तक बदरी
की यात्रा करने में विलम्ब नहीं लगाना चाहिये।। 39 ।।
चरणानां च साफल्यं कुर्याद्वदरिकागमात्।
नेत्रयोश्च्यैव साफल्यं कुर्याद्विष्णोश्य् दर्शनात्।। 40 ।।
बदरिकाश्रम में जाने से चरणों को सफल करे और
विष्णु के दर्शन से नेत्रों को सफल करे।। 40 ।।
तस्य वै जन्म सफलं तस्यैव सफलं तपः।
बदरीवनमध्यस्थो देव एव न संशयः
यस्तं नमित भक्त्या वै तस्य पापक्षयो भवेत् ।।41।।
उसका जन्म सफल है और उसी का तप भी सफल
है, जो बदरीवन के मध्य में स्थित होता है। वह देवता ही है,
इसमें सन्देह नहीं है। जो उस व्यक्ति को भक्ति से नमस्कार
करता है, उसके पापों का क्षय हो जाता है।। 41 ।।
बद्रीनाथ की पावनतम भूमि सद्गुरुदेव कैलाश जी की तपः स्थली रही है, जहां पर सद्गुरुदेव नारायण ने अपने संन्यास जीवन में अनेक साधनाओं को सिद्धहस्त कराया।
बद्रीनाथ में उनकी पूर्ण तपस्यांश शक्तियों को आज भी कई साधकों ने पूर्ण मनोयोग से अनेको दुर्लभ साधनाओं को पूर्ण शाश्वत सिद्ध किया है। ऐसा ही विशिष्ट सौभाग्य सद्गुरु निखिल की चेतना से सिद्धाश्रम शक्ति दिवस पर गुरुदेव कैलाश श्रीमाली जी के सानिध्य में 19-20-21 मई 2017 में साधक पापहारिणी देव भूमि बद्रीनाथ में आकर अपने जीवन के अनेक संतापों, न्यूनताओं व अभावों से मुक्ति प्राप्ति हेतु साधनाओं को जीवन्त स्वरूप में देह में धारण करने से निश्चिन्त रूप से जीवन की सभी विषम स्थितियों में पूर्ण परिवर्तन आ सकेगा और उससे साधक नर से नारायण बनने की ओर अग्रसर हो सकेगा।
पंजीकृत साधको के लिये हरिद्वार से बद्रीनाथ की यात्रा व्यवस्था, भोजन, विश्राम हेतु Dormitory व साधनात्मक सामग्री विधान स्वरूप में सहस्त्र चक्र कुण्डलिनी जागरण दीक्षा, कर्ण पिशाचिनी शत्रुहन्ता दीक्षा सरस्वती उद्गम स्थल व विघ्नहर्ता गणेश गुफा में जाग्रत चैतन्य स्वरूप में प्रदान की जायेगी और वैभव धन लक्ष्मी अमृतमय प्राप्ति साधना अलकनन्दा सरस्वती युक्त पंच प्रयाग में सम्पन्न करायी जायेगी।
अकाल मृत्यु, अनर्गल दोषो, कष्टकारी रोगो से निवृत्ति हेतु महामृत्युज्ंय रूद्राभिषेक, दुर्गति नाशक सौभाग्य प्रदायक निखिल शक्ति व शिव गौरी नारायण दीक्षा, हवन, अंकन आदि का न्यौछावर अलग से न्यूनतम रूप में प्रदान कर सिद्धाश्रम शक्ति से युक्त हो सकेंगे।
सर्व प्रथम पंजीकृत साधकों के लिये 17 मई को हरिद्वार में पहुंचने के बाद ठहरने, विश्राम, भोजन की व्यवस्था स्वामी नारायण मंदिर, निकट सप्तऋषि आश्रम, पावन धाम, भूपतवाला, हरिद्वार में की गयी है।
इस यात्रा का प्रबन्ध शिविर आयोजन से बहुत पहले से व्यवस्थित करना होता है। इस स्वरूप में साधकों के ठहरने, भोजन, आने-जाने के लिये बसों की व्यवस्था, टेंट, होटल, गरम बिस्तर आदि अनेक-अनेक तरह की सामग्री हरिद्वार से ही संभव हो पाती है, अतः जो भी साधक-शिष्य सद्गुरुदेव नारायण का दिव्यपात प्राप्त करना चाहें और अपने जीवन को सर्व भौतिक सुखमय बनाने के इच्छुक हों वे ही पंजीकरण करायें। इस हेतु अपना व अपने पिता का नाम जन्म तारीख, जन्म स्थान अवश्य लिखे जिससे उसकी गणना कर पूर्ण व्यक्तिगत रूप से चैतन्य मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त साधनात्मक सामग्री निर्मित हो सकेगी ।
सरकारी नियमानुसार अपना परिचय पत्र और उसकी दो फ़ोटो कापी अवश्य साथ रखें ।
सर्वप्रथम यह ध्यान रखें कि आप कितने भी श्रेष्ठ आयोजक, कार्यकर्ता या समर्पित शिष्य रहें हों परन्तु ऐसे दिव्यतम स्थान पर आप केवल साधक ही हैं, अतः प्रत्येक का पंजीकरण अनिवार्य है, धार्मिक व साधनात्मक यात्रा हेतु परिवार के सभी सदस्यों के साथ पंजीकरण कराने से सांसारिक सुखों को पूर्ण रूपेण समवेत स्वरूप में प्राप्त कर सकेंगे।
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17 मई 2017 बुधवार को हरिद्वार पहुंचना अनिवार्य हैं, पंजीकृत साधकों के लिये ही ठहरने और भोजन की व्यवस्था हरिद्वार में 17 मई सांय 04 बजे से 18 मई प्रातः 4 बजे तक ही संभव हो सकेगी।
18 मई 2017 को प्रातः 04 बजे से आराम दायक बसों से बद्रीनाथ धाम की यात्रा प्रारम्भ करना आवश्यक होगा तब ही सांय 06 बजे तक बद्रीनाथ पहुंचना संभव हो सकेगा। रूद्र प्रयाग के पास रतूड़ा स्थान पर भोजन, चाय प्रदान की जायेगी।
प्रातः 04 बजे के बाद बद्रीनाथ की यात्रा के लिये रवाना होने पर किसी भी स्थिति में उस दिन बद्रीनाथ पहुचना संभव नहीं होगा और बीच में ही साधक को स्वयं की व्यवस्था से ही ठहरना होगा और दूसरे दिन बद्रीनाथ पहुंच सकेंगे।
बहन, बेटियां, मातायें किसी भी स्थिति में अकेली नहीं आये। अस्थमा, हृदय रोगी, गठिया रोगी व अन्य बीमारी से युक्त साधक इस शिविर में भाग नहीं लें। पूरी यात्रा में सामान की और स्वयं की सुरक्षा की जिम्मेदारी साधक की स्वयं की रहेगी।
अकाल मृत्यु, दोषो, क्लिष्ट रोगो से निवृत्ति हेतु महामृत्युज्ंय रूद्राभिषेक, दुर्गति नाशक सौभाग्य प्रदायक निखिल शक्ति व शिव गौरी नारायण दीक्षा, हवन, अंकन का न्यौछावर अलग से न्यूनतम रूप में प्रदान कर सिद्धाश्रम शक्ति युक्त हो सकेंगे।
बद्रीनाथ धाम में ठहरने हेतु Dormitory में अलग-अलग पलंग की व्यवस्था की गयी है।
22 मई 2017 को प्रातः 5 बजे से हरिद्वार लौटने की व्यवस्था बसों द्वारा होगी। हरिद्वार पहुंचने पर वंहा ठहरना या अपने घर को लौटने की व्यवस्था साधक को स्वयं ही करनी होगी।
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