सृष्टि का मूल आधार ब्रह्म और माया को ही माना गया है अर्थात् ज्ञान और अज्ञान के आधार पर ही सारी सृष्टि का क्रम चलता रहता है। यही इस बात को स्पष्ट करता है कि सारा जीवन गुरु-शिष्य की अवधारण से ही चलता है। शेष सभी सम्बन्ध मानव निर्मित अथवा काल्पनिक कहे गये हैं। जिस घर में आपने जन्म लिया वहां जन्म लेते ही आपके हजारों सम्बन्ध बन जाते हैं। जीवन क्रम में आगे चलकर मित्रता, शत्रुता रूपी सम्बन्ध बनते रहते हैं।
शक्ति रूप की तात्त्विकता पर प्रकाश डालते हुये देवी भागवत में स्वयं भगवती कहती हैं- एक मात्र सत् ही ब्रह्मा है। ब्रह्मा में तथा उसमें कोई भेद नहीं है, जो भेद दिखलाई देता है, वह सृष्टि-काल में सृजन के लिये होता है। सृष्टि का अन्त होने पर मैं पुरुष-स्त्री स्वरूप में नहीं रहती। मुझमें समस्त भेद सृष्टि कार्य के अवसर पर ही उत्पन्न होते हैं।
ऐसा प्रतीत होता है, कि सृष्टि कार्यों के लिये ही देवी के विविध रूपों का अवतरण हुआ। श्री महामाया स्वयं कहती हैं- मैं ही बुद्धि हूं, श्री, धृति, कीर्ति, मति, श्रद्धा, मेघा, पिपासा, निद्रा, तन्द्रा, जरा-अजरा, विद्या-अविद्या, स्पृहा शक्ति और अशक्ति भी मैं ही हूं। संसार में ऐसा कुछ भी नहीं, जिसमें मेरी सत्ता न हो, जो कुछ भी लक्षित होता है, सब मेरे ही रूप हैं। मैं ही समस्त देवताओं के रूप में विभिन्न नामों में स्थित हूं, और उनकी शक्ति रूप से पराक्रम करती हूं, इस प्रकार मैं ही गौरी, ब्राह्मी, रौद्री, वाराही, वैष्णवी, शिखा, वारूणी, कावेरी, नरसिंही और वासवी नाम की शक्ति हूं। जल में जो शीतलता है, वह मैं हूं। संसार के सम्पूर्ण जीवों में स्पन्दन क्रिया मेरी ही शक्ति से होती है।
पुराणों में जिस प्रकार जिन भिन्न-भिन्न देवी- देवताओं का वर्णन किया गया है, वे सब एक ही शक्ति के रूप हैं। यह कहा गया है, कि पृथ्वी जब शक्ति सम्पन्न होती है, तभी वह स्थिर होकर समस्त भार को धारण करती है, अन्यथा एक परमाणु भी वह धारण नहीं कर सकती। भगवान शेष, कूर्म, क्षेत्रपाल, दिक्पाल सभी एक शक्ति से ही प्रेरित होकर अपना कार्य करते है। वह शक्ति सम्पूर्ण संसार के जल को पी सकती है, अग्नि को नष्ट कर सकती है और समीकरण की गति को अवरूद्ध कर सकती है।
महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के तीनों स्वरूप को ही महामाया शक्ति ही है। कहीं पर इन्हें जगदम्बा, तो कहीं पर आद्या शक्ति कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार शक्ति के नाम और वर्ण में भेद हो सकते हैं, पर प्रत्येक शक्ति जीवन में कर्मेन्द्रियों, ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से संहार और सृजन की चेतना प्रदान करती है। अर्थात् सृष्टि ही शक्ति है, महामाया जगदम्बा, आदि शक्ति है। उनके द्वारा ही चराचर जगत का पालन, पोषण और संहार होता हैं, सृजन होता है।
अपनी विशिष्ट शक्ति आत्मा के अनुसार एक ही आत्मा की अनेक रूपों में स्तुति की जाती है। इस प्रकार वैदिक साहित्य में शक्ति तत्व का निर्देश प्रायः सर्वत्र मिलता है। भगवती शक्ति को ही परम तत्व के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। यह स्थूल-सूक्ष्म समस्त पंचदेव जिस सूक्ष्म स्वरूप में विलीन होता है, वह परम तत्व भगवती महामाया शक्ति है।
उस परम तत्व को ही जगद्व्यापी दुर्गा तत्व से भी सम्बोधित किया गया है, जिसके द्वारा यह संसार चक्र चलता रहता है, योगी-जन जिसका सदैव चिंतन करते हैं, जिसके प्रकाश से यह समस्त जगत प्रकाशित हो रहा है।
इस वर्ष 2017 को नूतन वर्ष का प्रारम्भ उन्हीं महामाया की तपोभूमि बिलासपुर छत्तीसगढ़ में रिद्धि सिद्धि शुभ लाभ शत्रुहन्ता महामाया शक्ति साधना महोत्सव सम्पन्न होगा। महामाया की तपस्यांश चेतना से आने वाले नूतन वर्ष के प्रथम क्षण से ही जीवन में आनन्द, हर्ष, उल्लास, चेतना रूपी शक्ति सम्पन्नता से जीवन सुमंगलमय युक्त हो सकेगें। ऐसे ही दिव्यतम क्रियायें नारायण शक्ति के माध्यम से आत्मसात होंगी । साथ ही महाकाली शक्ति से जीवन के सभी शत्रु पक्ष का शमन करने की चेतना से जीवन में रिद्धि सिद्धि, शुभ-लाभ, धन लक्ष्मी की वृद्धि होगी। आप सभी का सपरिवार महामाया की तपोभूमि में हृदयभाव से स्वागत है——–!
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