भगवान शिव ने प्रथम बार अपना तीसरा नेत्र फाल्गुन पूर्णिमा होली के दिन ही खोला था और कामदेव को भस्म किया था। इसलिये यह दिवस तृतीय नेत्र जागरण दिवस है और तांत्रिक इस दिन विशेष साधना सम्पन्न करते हैं जिससे उन्हें भगवान शिव के तीसरे नेत्र से निकली हुई ज्वाला का आनन्द मिल सके और वे उस अग्नि ऊर्जा को ग्रहण कर अपने भीतर के राग, द्वेष, काम, क्रोध, मोह-माया के बीज को पूर्ण रूप से समाप्त कर सकें।
होली का पर्व पूर्णिमा के दिन आता है और इस रात्रि से ही जिस काम महोत्सव का प्रारम्भ होता है उसका भी पूरे संसार में विशेष महत्व है क्योंकि काम शिव के तृतीय नेत्र से भस्म होकर पूरे संसार में अदृश्य रूप में व्याप्त हो गया। इस कारण उसे अपने भीतर स्थापित कर देने की क्रिया साधना इसी दिन से प्रारम्भ की जाती है। सौन्दर्य, आकर्षण, वशीकरण, सम्मोहन आर्थिक सुदृढ़ता आदि से सम्बन्धित विशेष साधनायें इसी दिन सम्पन्न की जाती हैं। शत्रु बाधा निवारण के लिये, शत्रु को पूर्ण रूप से नष्ट कर देने की तीव्र साधनायें महाकाली, चामुण्डा, कामाख्या, त्रिपुर सुन्दरी, बगलामुखी, धूमावती, प्रत्यंगिरा इत्यादि साधनाओं के लिये यह सर्वश्रेष्ठ सिद्ध मुहूर्त है। चन्द्र ग्रहण युक्त होलाष्टक में ये साधनायें अक्षुण्ण फलदायी होती हैं।
इसीलिये ऐसे विशिष्टतम अवसर पर श्रेष्ठ साधक सिद्ध चैतन्य स्थल कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर में परम पूज्य सद्गुरूदेव के सानिध्य में जीवन की सभी विपदाओं के समाप्ति हेतु हवन, पूजन, साधना, तांत्रोक्त दीक्षायें आत्मसात करते हैं। क्योंकि इसी दिवस से दादा सद्गुरूदेव ने शिष्यों के जीवन और बीते वर्ष की सभी बाधाओं, अड़चनो, कठिनाईयों, पाप-ताप, संताप, धनहीनता को होलिकाग्नि में भस्मीभूत करने की नवीन प्रक्रिया प्रारम्भ की थी, जो हर वर्ष गुरूधाम के चैतन्य भूमि जोधपुर में सम्पन्न होता है, इसी क्रम में आज भी परम पूज्य सद्गुरूदेव द्वारा होलाष्टक की रात्रि में होलाग्नि प्रज्ज्वलित कर विशिष्ट तेजमय साधनात्मक क्रियायें सम्पन्न की जाती हैं। जिससे प्रत्येक साधक के जीवन से सभी पाप, दोष, विकार, न्यूनता, धनहीनता, जड़ता होलाग्नि की तेज में भस्मीभूत होता है, ऐसे चैतन्य अवसर पर परम पूज्य सद्गुरूदेव के सानिध्य में विशिष्ट साधनात्मक क्रियायें सम्पन्न कर साधक पूर्ण रूप से आबद्ध लक्ष्मी को चिरस्थायी कर सकता है और जीवन को उच्च स्थिति में स्थिर कर सकेगा।
श्रेष्ठ या सिद्ध साधक ग्रहण का महत्व जानते हैं और तर्क-कुतर्क छोड़कर अपने सद्गुरूदेव के बताये ढंग से साधना में गतिशील होते हैं, वास्तविक साधक को यह ज्ञात है, कि उन्हें किस क्षण, किस स्थल पर, कौन सी साधना सम्पन्न करनी है।
ग्रहण काल ही वास्तव में साधना, दीक्षा, सिद्धि और सफलता को पूर्ण रूप से प्रदान करने में समर्थ होता है। जीवन के कुछ दिवस ही ब्रह्माण्ड में इस अदभुत क्रिया के होते हैं, जब प्रकृति का अणु-अणु चैतन्य होने के साथ ऐसा वातावरण होता है, जो साधक को उसके परिश्रम का सौ गुना अधिक फल और जीवन को एकदम से परिवर्तित कर देने का क्षण होता है।
कामाख्या देवी वरदायिनी, महामाया नित्यस्वरूपा, आनन्ददात्री देवी शक्ति हैं, गुप्त तंत्र में लिखा है कि- कामाख्या ही सर्वविद्या स्वरूपिणी, सर्व सिद्धिप्रदात्री शक्ति हैं ओर जीवन में आनन्द, सुख, सोभाग्य तथा सिद्धि प्रदान करने वाली हैं, कामाख्या देवी चिन्ता मुक्त जीवन, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी स्वरूपों में पूर्ण करती हें।
कामाख्या शक्ति जीवन की रस साधना है, शरीर साधना है, जीवन को सम्पूर्णता से जीने की साधना है, जिसमें साधक को अपने जीवन का पूर्ण आनन्द प्राप्त होता हे, उसकी इच्छाओं की पूर्ति पूर्ण रूप से सहज संभव हो जाती है। कामाख्या शक्तिपीठ काम शक्ति, निर्माण शक्ति की पीठ है और कामाख्या शक्ति काम रूपिणी महाशक्ति है, ब्रह्म का ब्रह्मत्व, विष्णु का विष्णुत्व, शिव का शिवत्व, चन्द्रमा का चन्द्रव और समस्त देवताओं का देवत्व इसी कामाख्या शक्ति में निहित है। शक्ति का शुद्ध भौतिक सांसारिक स्वरूप कामाख्या ही है।
और फिर होली का पर्व दो महापर्व के ठीक मध्य घटित होने वाला पर्व! होली के पंद्रह दिन पूर्व ही सम्पन्न होता है, महाशिवरात्रि का पर्व और पंद्रह दिन बाद चेत्र नवरात्रि। शिव और शक्ति के ठीक मध्य का पर्व और एक प्रकार से शिवत्व के शक्ति से सम्पर्क के अवसर पर ही यह पर्व आता है। जहां शिव और शक्ति का मिलन है वहीं ऊर्जा की लहरियों का विस्फोट है। कामाख्या तंत्र की उत्पत्ति ही शिव और शक्ति के मिलन से हुईं। यह विशेषता तो किसी अन्य पर्व में सम्भव ही नहीं ओर इस वर्ष का होली पर्व चन्द्र ग्रहण की चैतन्य शक्ति प्रवाह से सौ गुना अधिक प्रभाव से युक्त है। ग्रहण काल के महत्व और चैतन्यता से अधिकांश साधक परिचित हैं।
होली अग्नि पर्व पर जीवन की सभी ज्वलंत बाधायें जिनके कारण व्यक्ति जलते हुये अंगारों के समान झुलस रहा हो, उसके लिये भक्त प्रहलाद की तरह अपने ईष्ट देव नारायण स्वरूप सदगुरूदेव निखिल के संरक्षण में अग्नि रूपी बाधाओं से मुक्त होने का यह ग्रहण शक्ति युक्त श्रेष्ठतम महापर्व है।
कामाख्या शक्ति जीवन निर्माण की शक्ति है, जो सर्वविद्या स्वरूपिणी, सर्वसिद्धिप्रदात्री शक्ति है, जिनकी साधना, पूजन करने से जीवन में आनन्द, सुख, सौभाग्य तथा साधनाओं में सिद्धि प्राप्त होती है, कामाख्या कामरूप क्रियात्मक चेतना साधक के सम्पूर्ण इच्छाओं को पूर्णता प्रदान करती है, इसी हेतु 22, 23 मार्च चन्द्र ग्रहण शक्ति युक्त साधनात्मक होली महोत्सव में जीवन के नवरंग धन लक्ष्मी, आरोग्य, बल, पराक्रम, विजयश्री, तेजस्विता, बुद्धि, करुणा, मोह ओर भौतिक जीवन को सभी रंगो से सराबोर होने की क्रियात्मक शक्ति से आपूरित होने हेतु जीवन निर्माण कामाख्या कामरुप चेतन्य दीक्षा, राज राजेश्वरी वैभव कमला महाविद्या दीक्षा, नृसिंह भैरव शक्ति दीक्षा, चन्द्रेश्वर सम्मोहन वशीकरण होलिका यक्षिणी लॉकंट, अक्षुण्ण धन लक्ष्मी साधना, हवन, अंकन साधक देह में परम पूज्य सद्गुरूदेव स्व: स्थापित करेंगे। जिससे साधक काम अर्थात् मानव जीवन की सभी इच्छाओं को पूर्ण करते हुये सौन्दर्य, सम्मोहन, वशीकरण, निडर, अक्षुण्ण धन वैभव, जीवन निर्माण ऊर्जा, चेतना, शक्ति को पूर्णत: आत्मसात कर सकेंगे। साथ ही होली ओर चन्द्र ग्रहण पर ऐसी तेजमय साधनात्मक क्रियायें सम्पन्न कर साधक तीव्रता से अपने सभी लक्ष्यों को प्राप्त करते हुये धन-वैभव-यश-लक्ष्मी, काम शक्ति, सौन्दर्य, सम्मोहन, वशीकरण, शत्रु स्तंभन, दीर्घायु जीवन, आरोग्य शक्ति से आपूरित हो सकेंगे। और जीवन भर श्रेष्ठता और सफलता की ओर अग्रसर रह सकेंगे।
कैलाश सिद्धाश्रम साधक परिवार जोधपुर आपके इंतजार में..
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,