जैसा कि प्रारम्भ में कहा है कि ये जीवन की दो धारायें हैं अर्थात् दोनों ही प्रवाहित हैं, दोनों ही गतिशील हैं और जब दोनों ही गतिशील हैं तो आलोचना अथवा किसी को हेय दृष्टि की कोई बात नही रह जाती। अंतर केवल इतना होता है कि जहां गृहस्थ जीवन की धारा बार-बार अटकते हुये कुछ कम गति से गतिशील रहती है, वहीं एक संन्यासी के जीवन की धारा तीव्रता और वेग से निरन्तर प्रवाहित रहती है या उसके विषय में धारण की जा सकती है कि वह एक गृहस्थ की अपेक्षा अधिक तीव्रता से गतिशील है। संन्यास चट्टानों को लुढ़काने की, अटकाव साफ कर देने की ही क्रिया है। जीवन में गति लाने की ही धारणा है और यह धारणा, यह गति कोई भी व्यक्ति, चाहे वह गृहस्थ हो या संन्यस्त जब तक अपने जीवन में नहीं ले आता, तब तक अपूर्ण है और एक प्रकार से कहा जाये तो नाले के समान ही उसका जीवन गतिशील तो है किन्तु अनेक दुर्गन्धों से भरकर, पीड़ा की काई को ऊपर झलकाता हुआ, उदास और मलिन है।
यदि अपने आस-पास देखें तो सैकड़ो व्यक्ति इसी प्रकार का जीवन जी रहे हैं। सहज आनन्द, सहज हास्य, सहज गति उनके जीवन से समाप्त हो गयी है। उन्हें यही नहीं पता है कि जीवन में लक्ष्य निर्धारित क्या करें? आजीविका का साधन, धन-संग्रह करना जीवन का एक आवश्यक अंग है। किन्तु यह किसी भी साधक, शिष्य, विचारशील व्यक्ति का लक्ष्य नहीं हो सकता।
जीवन की इसी विसंगति, गृहस्थ व संन्यस्त, दोनों ही धाराओं में प्रवाह की न्यूनता को समझ कर सिद्धाश्रम ने यह व्यवस्था दी जिससे साधक अपने जीवन की खोई हुई गति प्राप्त कर सके, चाहे वह साधना के माध्यम से हो या शक्तिपात दीक्षा के द्वारा, जिससे अटकाव दूर हो सके, जीवन मे जो प्रतिदिन की सुबह एक उदासी और घिसापिटा क्रम लेकर आकर खड़ी हो जाती है, वह क्रम समाप्त हो। प्रतिदिन नवीनता का अनुभव हो।
गृहस्थ संन्यासियों के जीवन के सभी अटकाव, बाधाओं, न्यूनताओं, साधना में असफलता, विकार, अष्ट पाशों, धनहीनता की समाप्ति हेतु सद्गुरूदेव से सन्यस्त चेतना दिवस पर गृहस्थ चेतना युक्त सिद्वाश्रम शक्ति दीक्षा प्राप्त कर सद्गुरूदेव की ही भांति गृहस्थ और संन्यास जीवन को पूर्णता से आत्मसात कर सकेंगे। और गृहस्थ के सभी रंगों से सराबोर होगें।
आनन्द अपने मूल में एक चेतना है, न कि चमत्कार। आनन्द की मूल धारणा चेतना में ही छुपी है, जीवन का रहस्य भी चेतना में छुपा है। चेतना के द्वारा ही शरीर के अक्षय शक्ति कोष में विखण्डन क्रिया आरम्भ होती है। तब जाकर धन-सम्पत्ति, रोग मुक्ति, परम सुख और अनिवर्चनीय आनन्द का आधार बनती है। पूर्ण आनन्द और चैतन्य युक्त क्रियाओं की प्राप्ति शिव-शक्ति के माध्यम से आत्मसात कर सकें। ऐसे ही तीनों ब्रह्मा, विष्णु, महेश की चेतना को स्वयं में समाहित करने के लिये संन्यस्त महोत्सव के दिवसों पर साधनात्मक क्रियायें कार्तिकेय समलेश्वरी धानदा साधाना महोत्सव 19-20 नवम्बर को बालांगीर उड़ीसा में होगा।
जिस दिवस को संन्यासी शिष्य पूर्णत्व प्राप्ति दिवस के रूप में मनाते हैं, क्योंकि इसी दिवस को परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का संन्यास धर्म में प्रवेश हुआ था, संन्यास धर्म की जटिलताओं से जूझते हुये वे अपने जीवन को सफलता के अंतिम शिखर पर ले गये, जहां पर सफलता भी उनके सामने हाथ जोड़कर उनके विशालतम् व्यक्तित्व के सामने नतमस्तक हुई। यही वह चैतन्य कल्प था जब उन्होंने सनातन धर्म की रक्षा और अपने शिष्यों का कल्याण करने हेतु संन्यास धर्म को स्वीकारा था। इसलिये यह दिवस सभी शिष्यों, साधकों, सेवको के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है, चाहे वह गृहस्थ हो या संन्यासी सभी को यह दिवस प्रिय है।
इसी दिवस की चैतन्यता से जीवन में पूर्ण सुख-सौभाग्य को सदैव के लिये स्थापित करने हेतु गृहस्थ संन्यस्त चेतना प्राप्ति साधना महोत्सव 24-25 नवम्बर को बरही कटनी म-प्र में सम्पन्न होगा। जिससे साधक नारायण स्वरूप सद्गुरूमय चेतना से आप्लावित हो सकेगा। साथ ही अपने गृहस्थ जीवन की अनेक-अनेक बाधाओं को पार करते हुये आर्थिक सम्पन्नता की ओर अग्रसर हो सकेगें। साथ ही संन्यास महोत्सव के चैतन्य वातावरण में संकल्प धारण कर निरन्तर निरन्तर मंथन के द्वारा अपने प्राण स्वरूप सद्गुरूदेवमय संन्यस्त, गृहस्थ जीवन की प्राप्ति हो सकेगी।
जीवन को हर स्वरूप में प्रगति और उन्नति से पूर्ण करने हेतु अष्ट लक्ष्मी दीपावली व संन्यस्त चेतना की पूर्णता से युक्त चैतन्य दिवसों पर चन्द्रिका मनकामेश्वर शिव शक्ति की चेतना से आपूरित होने की क्रिया अवध प्रांत लखनऊ उ- प्र में चन्द्रिका मन कामेश्वर सद्गुरू पूर्णता साधना महोत्सव सम्पन्न होगा।
जिसमें जीवन को नारायण लक्ष्मी स्वरूप निर्मित करने हेतु अभिषेक, हवन, अंकन, साधना, विशिष्ट शक्तिपात दीक्षायें प्रदान की जायेंगी। साथ ही नववर्ष का प्रत्येक दिवस अक्षुण्ण धन की स्थितियों से युक्त और सभी भौतिक सम्पदा को प्राप्त करने में समर्थ और गृहस्थ जीवन में धर्म, अर्थ, काम चेतना को आत्मसात कर भौतिक तथा आध्यात्मिक पूर्णता को प्राप्त कर सकेंगे। जिससे नववर्ष का प्रत्येक दिवस मंगलदायक होगा।
गृहस्थ चेतना प्राप्ति सिद्धाश्रम शक्ति दीक्षा उक्त किसी भी शिविर में व्यक्तिगत रूप से या फ़ोटो द्वारा यह विशिष्ट दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। जिसके द्वारा मानव जीवन की चारों पुरूषार्थ धार्म, अर्थ, काम,मोक्ष की प्राप्ति कर सकेंगे।
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