आखिर गृहस्थ व्यक्ति क्या करे? ऐसा क्या पूजन करे, ऐसी क्या साधना करे जो कि उसके गृहस्थ धर्म की मर्यादा के अनुकूल हो और वह उन साधनाओं को अपनी पत्नी के साथ, पूरे परिवार के साथ सरलता पूर्वक सम्पन्न कर सके, जिसके प्रभाव से उसे अपने कार्यो में, अपना जीवन-धर्म निभाने में अनुकूलता प्राप्त हो, उसे मानसिक शांति प्राप्त हो, समाज में उसका सम्मान बढ़े, उसकी दिन-प्रतिदिन की चिन्ताएं कम होती हो जायें।
नारी-शक्ति के महत्व से किसी भी प्रकार मुख नहीं मोड़ा जा सकता, नारी शक्ति ही किसी भी व्यक्ति में पूर्णता प्रदान करती है, आप कल्पना कीजिए कि व्यक्ति अपने कार्य से दिन भर का थका हुआ घर आए और उसे अपनी पत्नी से मधुर स्वागत और मधुर वचन प्राप्त हो, तो वह निश्चय ही सब प्रकार के तनाव और दिन भर की थकान भूल ही जाता है और यदि उसे अपनी पत्नी के कटु वचन सुनने पड़े, तो उस व्यक्ति को यही लगता है कि शायद नरक भी इस जीवन से अच्छा होता होगा। नारियों के संबंध में जितने ग्रन्थ-पुस्तकें, साहित्य, कविता, शेरों-शायरी लिखी गई है, उतना विस्तृत वर्णन किसी अन्य वस्तु के बारे में लिखा ही नहीं गया है। प्रेमी हृदय तो हर समय अपनी प्रेमिका के चिन्तन में ही ग्रस्त रहता है और उसकी एक झलक के लिए दीवाना रहता है और इस संबंध में प्रेम से अपने जीवन को उत्सर्ग कर देने वालों की संख्या भी कम नहीं है और प्रत्येक लोक साहित्य में ऐसी कथाएं मिलती हैं, जिनका बड़े उत्साह से गायन किया जाता है।
यह नारी शक्ति ही है, जो इस सृष्टि-क्रम में निरन्तरता के साथ स्थिरता प्रदान करती है। पार्वती के बिना शिव, लक्ष्मी के बिना विष्णु, राधा के बिना कृष्ण, सीता के बिना राम तथा भगवती के बिना नारायण की कल्पना नहीं की जा सकती।
साधना तो प्राचीन समय से ही चली आ रही हैं और कुछ पूजायें जीवन का अंग बन गई हैं, इन पूजाओं के पीछे विधिवत मान्यता क्या है और किस प्रकार से इन्हें सही रूप से सम्पन्न किया जाना चाहिए, इसका ज्ञान बहुत कम लोगों को है।
नवरात्रि में नवमी के दिन, नौ कुंवारी कन्याओं बालिकाओं का पूजन, भोजन एवं दक्षिणा की परम्परा भारतवर्ष के करीब-करीब सभी प्रान्तों में मानी जाती है।
इसके पीछे मूल कारण कुमारी-शक्ति का पूजन ही है, जो कि विधिवत रूप से सम्पन्न किया जाये तो गृहस्थ व्यक्ति को हर प्रकार का सुख, एवं शांति देने में समर्थ है। इस संबंध में शास्त्रों में विशेष विवरण दिया गया है, ‘रूद्रयामल तंत्र’ के उत्तर खण्ड के सातवें पटल में लिखा है कि किसी भी जाति की कुमारी पूजन के योग्य है और इसमें किसी प्रकार का भेद नहीं करना चाहिए। कुमारी ही समस्त विद्या-स्वरूपा, महासिद्धि- प्रदाता है। ‘कुब्जिका तंत्र’ में लिखा है कि आठ वर्ष से तेरह वर्ष तक की कन्या ‘कुलजा’ कहलाती है और उसमें देवता का निवास समझ कर पूजन करना चाहिए।
‘बाल तंत्र’ के अनुसार कौमारी साधना से साधक को वह सिद्धि प्राप्त हो जाती है कि साक्षात् शिव को अपने वश में कर ‘बटुकेश महादेव’ से किसी भी प्रकार का वर मांग सकता है।
कौमारी साधना तो अत्यन्त सरल, शान्त एवं पूर्ण फल युक्त साधना है। जिससे साधक अपने कुल, वंश का उद्धार कर सभी देवताओं को प्रसन्न कर, सौभाग्य एंव सम्पत्ति प्राप्त कर सकता है, ‘शारदा तिलक’ में लिखा है कि जो साधक कौमारी साधना एवं पूजन सम्पन्न करता है, उस के इस जन्म के तो क्या पूर्व जन्म के भी पाप नष्ट हो जाते है। जिस घर में कौमारी साधना सम्पन्न की जाती है, वह निश्चय ही पवित्र हो जाता है। ‘रूद्रयामल तन्त्र’ में लिखा है कि यदि कम बुद्धि वाला, जन्म से ही दुर्भाग्य वाला व्यक्ति भी कौमारी साधना विधिवत सम्पन्न करता है, तो वह पूर्ण विजय और मंगल फल प्राप्त करता है, तथा सर्वसुख की ओर अग्रसर होता है।
कौमारी पूजा दो प्रकार से सम्पन्न की जाती है, प्रथम दिव्य भाव में और दूसरी वीर भाव में। इन दोनों ही भावों में विशेष अन्तर नहीं है, दिव्य भाव साधना में साधक को मानसिक दृष्टि से शांति प्राप्त होती है, तंत्र-मंत्र का साक्षात् फल प्राप्त होता है तथा साधक विशेष सिद्धियों का स्वामी बनता है।
वीर भाव में कौमारी साधना सम्पन्न करने से धन तथा विद्या की सिद्धि प्राप्त होती है। कौमारी पूर्ण रूप से प्रसन्न होने पर साधक के जीवन में कान्ति सी उत्पन्न कर देती हैं और ‘वृहन्नील तन्त्र’ के अनुसार ऐसे साधक को जीवन में किसी प्रकार के उपद्रव, विघ्न, भूत-बाधा नहीं सता सकते।
कौमारी साधना साक्षात् पार्वती की साधना है और यह समस्त सिद्धियों का स्वरूप है। कौमारी में बाल भैरव स्थिति होते हैं और इसी कारण इस साधना से पार्वती जो सरस्वती स्वरूपा हैं, उनकी सिद्धि प्राप्त होती है और भैरव प्रसन्न होते हैं।
यह साधना 24 जनवरी अथवा प्रत्येक पक्ष की पंचमी तिथि को सम्पन्न की जा सकती है, उस दिन गृहस्थ साधक सर्व सुख आनन्द और शान्ति देने वाली साधना को अवश्य ही सम्पन्न करें, और सात पंचमी तक निरंतर पूजन कर इसका पुरःश्चरण करना चाहिए।
इस साधना में विशेष सामग्री की आवश्यकता नहीं है, केवल ‘कौमारी यन्त्र’, ‘वंसत चैतन्य माला’, पुष्प माला, पुष्प तथा अक्षत आदि आवश्यक हैं।
इस साधना में विशेष बात यह है कि पति-पत्नी दोनों पूजन में साथ बैठें तो अत्यन्त उत्तम रहता है। पुरूष सुन्दर वस्त्र पहन कर पूजा-स्थान में सुगन्धित वातावरण कर, शुद्ध घी का दीपक लगाकर, पूजन से पहले भगवती कौमारी को पूजन हेतु आंमत्रित कर, स्वयं को कृतार्थ अनुभव कर, प्रदक्षिणा कर, पूजन कार्य करें। स्त्री स्नान कर सुगन्ध का प्रयोग करें, ललाट में सिन्दूर, आंखों में काजल तथा आभूषण इत्यादि पहन कर अपने पति के साथ पूजन सम्पन्न करें। पति-पत्नी दोनों अपने दाएं हाथ में जल ले कर संकल्प करें।
यहाँ अमुक के स्थान पर साधक जिस विशिष्ट कार्य में पूर्ण अनुकूलता प्राप्त करना चाहता है, चाहे वह संतान संबंधी कार्य हो, शत्रु बाधा निवारण संबंधी कार्य हो अथवा आर्थिक उन्नति हेतु कार्य हो, उस विशेष कार्य का नाम लेकर, संकल्प कर जल जमीन पर छोड़े। साधना एक ऐसा कार्य है, जिसमें साधक को किसी भी प्रकार का संकोच नहीं करना चाहिए, संकल्प में अपनी इच्छायें स्पष्ट रूप से व्यक्त कर देनी चाहिए। वीर भाव से कौमारी साधना में साधक को दृढ़ संकल्प के साथ ही सफलता प्राप्त होती है।
अब साधक अपने बाएं हाथ में जल लेकर दाएं हाथ से शरीर के सभी अंगो तथा स्थान, आसन इत्यादि पर शुद्धता हेतु छीटें फेंके, इसके पश्चात् देवी कौमारी का मानस ध्यान करें, इस ध्यान मंत्र के पांच बार उच्चारण के साथ प्रत्येक बार सामने यंत्र-चित्र पर पुष्प अर्पित करें और अन्त में पुष्प-माला अर्पित करें।
अब कौमारी देवी को सामने रखे पात्र में जल, पुष्प, अक्षत, दही, धूप, दीप, सुपारी, नैवेद्य, पान अर्पित करें। प्रत्येक बार अर्पण के समय ‘ऐं ह्रीं श्रीं हुं हसौं: कुल कुमार्यै नमः जलं समर्पयामि’ उच्चारण करें। जिस चीज का अर्पण करें, उस चीज का नाम उपरोक्त जल के स्थान पर लेते हुए, उपरोक्त मंत्र से समर्पित करें और फिर अपने दाहिने हाथ को यंत्र पर रखते हुए यह भावना दें कि शुक्ल वर्ण, सर्वमय नीलान्जन प्रभा, अरूण के समान तेज, तेजस्वी नेत्र, रक्त वर्णीय देवी को साधक का प्रणाम है।
कौमारी के सोलह स्वरूप हैं, इनमें प्रत्येक स्वरूप का नाम लेते हुए जप निम्न प्रकार से करें-
‘ऊँ ऐं संध्यायै नम, ऊँ ऐं सरस्वत्यै नमः, ऊँ
ऐं त्रिमूर्त्यै नमः, ऊँ ऐं कालिकायै नमः, ऊँ ऐं सुभगायै
नमः, ऊँ ऐं उमायै नमः, ऊँ ऐ मालिन्यै नमः, ऊँ ऐं
कुब्जिकायै नमः, ऊँ ऐं कालसंकर्षिण्यै नमः, ऊँ ऐं
अपराजितायै नमः, ऊँ ऐं रूद्राण्यै नमः, ऊँ ऐ भैरव्यै
नमः, ऊँ ऐं महालक्ष्म्यै नमः, ऊँ ऐं पीठनायिकायै नमः,
ऊँ ऐं क्षेत्रज्ञायै नमः, ऊँ ऐं चर्चिकायै नमः ।
इससे यह स्पष्ट होता है कि कौमारी साधना का स्वरूप कितना विशिष्ट एवं सिद्धि कारक है। सबसे विशेष बात यह है कि कौमारी साधना से बाल भैरव की सिद्धि प्राप्त होती है और उसकी स्थापना भी कौमारी के साथ आवश्यक है, इस कारण साधक साधिका प्रणाम कर निम्न मंत्र की एक माला जाप करें
शक्ति स्वरूप बाल भैरव स्थापित करें और सिन्दूर, पुष्प इत्यादि अर्पित करें।
अब साधक और साधिका वसंत चैतन्य माला से कौमारी के बीज मंत्र का पांच माला जप करें, माला पति-पत्नी दोनों में किसी एक के हाथ में रहे।
जब मंत्र जप, अनुष्ठान पूरा हो जाए तो पति-पत्नी दोनों उस पूजा स्थान की परिक्रमा करें, गुरू-ध्यान करें, शिव व दुर्गा आरती सम्पन्न करें और फिर कुमारी कन्याओं को भोजन करायें और उन्हें यथायोग्य दक्षिणा दें।
कौमारी साधना के बारे में यदि फल लिखा जाए तो एक पूरा साहित्य ही रचा जा सकता है, संक्षिप्त में जो वर्णन ‘रूद्रयामल तन्त्र’ में दिया गया है, वह इस प्रकार है कि-
इस साधना से साधक वाणी-शक्ति प्राप्त करता है, वीर भाव प्राप्त कर दिव्य महासिद्धियों का स्वामी बनता है, उसे पराजय का सामना नहीं करना पड़ता और शिव की सदैव उस पर कृपा रहती है। समस्त क्षेत्रपाल संतुष्ट होते हैं, जिससे उसके कार्यों में विघ्न नहीं आता है, सरस्वती वाग्देवी का आशीर्वाद निश्चित रूप से प्राप्त करता है, उसके ज्ञान, कीर्ति और लक्ष्मी में सदैव वृद्धि होती है।
यदि प्रत्येक पंचमी को मंत्र जप कर कुमारी कन्याओं को भोजन कराएं, तो भी निश्चित अनुकूलता प्राप्त होती ही है।
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