पारद धातु अपने आप में पूर्णता का प्रतीक है। सदियों से पारद पर शोध होते आये हैं। जहां यह भौतिक समृद्धि का परिचायक है, वहीं यह आयुर्वेद की पूर्णता भी है। तंत्र की दुनिया में तो इनका विशेष स्थान होता है जहां साधनाओं में पूर्णता के लिए पारद की साधना सम्पन्न की जाती है। मंत्र से ‘आबद्ध पारद’ से निर्मित विग्रह तो अपने आप में ही चैतन्य होता है। इसकी उपस्थिति ही अपने आप में पूर्णता की द्योतक मानी गयी है। अतः प्रयत्न कर, मंत्रों से आबद्ध पारद से बनी धातु-मूर्ति के रूप में या अन्य किसी भी विग्रह रूप में हो, घर में स्थापित करना ही चाहिए।
सम्बन्धित मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठायुक्त विग्रह का प्रभाव सीमित समय तक रहता है। जिस तरह से घर के वातावरण के प्रभाव फ़लस्वरूप परिवार में अच्छी-बुरी स्थितियां बनती है। उसी वातावरण का प्रभाव पूजा में रखे विग्रह पर भी पड़ता ही है। समय समय पर विग्रह की चेतना को आत्मसात करने के बाद विसर्जित करना श्रेष्यकर रहता है।
पारे के द्वारा जब विनायक गणपति का विग्रह बनाया जाता है, तो उन पारद विनायक गणपति की आराधना करने वाले साधक को विद्या, बुद्धि और समस्त सिद्धियां स्वतः ही प्राप्त होने लगती हैं, क्योंकि ऋद्धि-सिद्धि के अधिपति होने के साथ ही साथ मंगलमूर्ति विनायक वेदनिहित समस्त कार्यों में प्रथम पूज्य नित्य देवता हैं।
यह लक्ष्मी का प्रतीक है, जिसकी स्थापन से शीघ्र और निश्चित धन लाभ की संभावना बनती ही है। इसे व्यापार स्थल पर स्थापित करने से व्यापार वृद्धि होती ही है।
पारद ज्योतिर्लिंग संसार का एक अद्वितीय और देवताओं की और से मनुष्यों को मिला हुआ वरदान है। संसार में बहुत कुछ प्राप्य है और प्रयत्न करने पर सब कुछ मिल सकता है, परन्तु मंत्र सिद्ध प्राण-प्रतिष्ठा युक्त रस सिद्ध पारे से निर्मित पारद ज्योतिर्लिंग प्राप्त होना सौभाग्य का सूचक है। इसके दर्शन से पूर्वजन्म के पाप क्षय हो जाते हैं तथा सौभाग्य का उदय होने लगता है।
भगवती दुर्गा की चैतन्यता को हर क्षण घर के वातावरण में अनुभव करेंगे और उनके दर्शन मात्र से साधक स्वयं को ऊर्जावान और शक्ति का अनुभव करता है।
पारद लक्ष्मी के माध्यम से जीवन को ऐश्वर्यवान बनाया जा सकता है। कई बार अत्यधिक परिश्रम के बाद भी हम उसमें सफल नहीं हो पाते, हमारे सभी उपाय व्यर्थ पड़ जाते हैं, परिश्रम धरे रह जाते हैं, ऐसी स्थिति में ही पारद लक्ष्मी, जो प्राण प्रतिष्ठित हो, उसे अपने घर में अवश्य ही स्थापित कर उसका पूजन करना चाहिए।
सामवेद की एक ऋचा में पारद लक्ष्मी की आराधना करते हुए लिखा है जिस प्रकार कल्पवृक्ष समस्त इच्छाओं को पूरा करता है, आप भी हे लक्ष्मी उसी प्रकार हमारे जीवन की समस्त कामनाओं की पूर्ति करें। पारदेश्वर लक्ष्मी के पूजन से आर्थिक बाधाएं दूर होती हैं और लाभ प्रारम्भ होते हैं तथा गृहस्थ जीवन में आने वाली कठिनाइयां दूर होती हैं तथा समाज में सम्मान एवं यश प्राप्त होता है।
जीवन में अनेक बार जीर्ण-शीर्ण चमकहीन वस्त्र का हम त्याग कर देते है और नूतन वस्त्र धारण करते है ठीक उसी तरह पुरानी साधना सामग्री को वरूण रूपी जल देवता को अर्पित कर देना चाहिए। उसके स्थान पर नवीन नूतन प्राण प्रतिष्ठित चैतन्य सामग्री स्थापित करनी चाहिये। साधना सामग्री की चेतना लुप्त होने पर उसे प्रवाहित करना आवश्यक है।
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