भारतीय इतिहास में प्रत्येक घर में तुलसी के पौधे लगाने की परंपरा थी। घर की महिलायें प्रतिदिन इसकी पूजा कर अपने घर को पवित्र व दिव्य वातावरण से आप्लावित करती थी। तुलसी मुख्यतः दो प्रकार की होती हे-श्वेत तुलसी व कृष्ण तुलसी। दोनो प्रकार की तुलसी में केवल वर्ण भेद होता है बाकी सभी गुण समान व प्रभावकारी होते हे। तुलसी के ओषधीय गुण से तो हम काफी हद तक परिचित हे किन्तु आज हम इसके दिव्यतम प्रभाव के बारे में आपको अवगत कराते है जिससे इस देव दुर्लभ पौधे को आप अपने निवास स्थान पर लगाकर उचित प्रभाव पा सकते है।
वस्तुतः इस देवतुल्य पोधे के स्थापन मात्र से ही व्यक्ति के ब्रह्म हत्या जेसे घोर पाप भी समाप्त हो जाते हे।
जो परिवार की महिलायें नित्य प्रातः स्नान कर गुरु पूजन पश्चात् तुलसी के पौधे के नीचे दीपक प्रज्ज्वलित करती हे तथा धूप दिखाती है, उस महिला के घर में पूर्ण श्री की वृद्धि, कुल में अभिवृद्धि होती हे तथा गृह दोष व देवदोष जेसे अभिकारक जिससे हमारे जीवन में बाधायें, विपत्ति जेसी स्थिति निर्मित होती है वे स्वतः ही इस देव पौधे के लगाने से समाप्त हो जाती है।
एक गमले में तुलसी के पौधे को तथा एक गमले में काली धतूरे का पौधा लगाये तथा प्रात: स्नानादि के पश्चात् किसी शुद्ध पात्र में शुद्ध जल व थोड़ा दूध मिलाकर नित्य एक वर्ष तक अर्पण करने से समस्त पितृ-ऋण समाप्त हो जाते हे तथा पितरो का आर्शीवाद प्राप्त होता है यह ध्रुव सत्य है।
किसी शुभ कार्य में जाने से पूर्व या घर से निकलने से पूर्व तुलसी के पौधे का दर्शन ही कल्याणकारी होता है।
एक छोटा सा चांदी का सर्प बनवाकर जिस दिन चतुर्थी हो उस दिन स्नान कर सर्प को तुलसी कें पौधे के नीचे रखें। इस पर दूध, अक्षत, मौली, कुंकुम आदि लगाकर पूजन करें। घी का दीपक जलायें तथा पूजन के समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर हो। भोग अर्पित कर चाँदी का सर्प ब्राह्मण को दान दे। दीपक जब ठण्डा हो जाये उसके बाद पूजन करने वाला व्यक्ति ही किसी नदी में मिट्टी के दीपक को प्रवाहित कर दें इस प्रकार 40 दिन नित्य पूजा करने से कालसर्प जैसे घातक दोष भी समाप्त हो जाते है।
अतः आप सभी साधको से अनुरोध है कि – प्रकृति तथा देवताओं के इस वरदान स्वरूप पौधे को अवश्य ही आप अपने निवास स्थान पर लगायें जिससे आपके घर व परिवार में साधनात्मक, प्रेमणमय व पवित्रता का वातावरण बन सके।
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