प्रेत मोक्षकरी शिला तीर्थ जहां प्रवेश करने मात्र से पितर स्वर्ग चले जाते है। वहाँ आने से साधकों और भक्तों का कष्ट दूर होता है।
गीता में लिखा गया है, कि व्यक्ति शरीर का अन्त कर देने से ही समाप्त नहीं होता है, वह तो नये वस्त्र धारण करने की प्रक्रिया सम्पन्न करता है। स्थूल शरीर का त्याग कर सूक्ष्म शरीर धारण कर लेता है, विभिन्न शास्त्रों का कथन है, कि जीव मृत्यु के उपरांत भी अपने कुटुम्बियों के आस-पास मंडराता रहता है, क्योंकि उसे उनसे मोह रहता है। वह जीव तो अपने सूक्ष्म शरीर से सबको देख सकता है, लेकिन उसे कोई देख नहीं सकता, यदि उसे उचित भावना एवं पूजा, आवाहन प्राप्त नहीं होता है, तो अत्यन्त निराश हो जाता है।
क्षिप्रा के तट पर तथा आस-पास अनेक तीर्थ हैं जैसे सुन्दर कुण्ड, पिशाचमोचन, नीलगंगा, कर्कराज, अनेक सागर, गया तीर्थ, गोमती कुण्ड, धर्मराज सर, त्रिवेणी पर शनितीर्थ, च्यवनाश्रम, नागालय, पुरूषोत्तम मन्दिर आदि।
श्राद्ध के समय ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करना चाहिए। शांत, क्रोध रहित, धीर और पवित्रता से रहना चाहिए। क्षय-तिथि में श्राद्ध करने का विशेष फल मिलता है।
क्षयतिथि तथा वृद्धितिथि में श्राद्ध का अधिक महत्व है। महालय अर्थात् आश्विन कृष्णपक्ष में श्राद्ध करना सौ गुणा लाभप्रद है, उससे दस गुणा प्रयाग में, प्रयाग से दस गुणा कुरूक्षेत्र में तथा उससे दस गुणा गया में श्राद्ध करने से पुण्य होता है। उससे भी दस गुणा पुण्य महाकाल वन में गया तीर्थ में श्राद्ध करने से होता है।
अवन्तिका स्थित गयातीर्थ में स्नान करने से कीकट देश स्थित गया में श्राद्ध करने का पुण्य मिलता है, फल्गु नदी, आदिगया, बुद्धगया के समान यहाँ गया-कोष्ठ तीर्थ हैं। वहीं अक्षयवट, प्रेतमोक्ष शिला और अच्छोदा नदी है। गया-कोष्ठ पर जनार्दन स्थित हैं और उनके दर्शन से देव, ऋषि और पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। सबसे पहले अवन्तिका में गया तीर्थ स्थापित हुआ।
यह तो पूर्ण सत्य हो चुका है, कि मृत्यु ही जीवन का अन्त नहीं है, उसके पश्चात भी एक ऐसा जीवन है, जो कि इस भौतिक जीवन से अधिक शक्तिशाली, प्रभावशाली एवं सामान्य नियंत्रण से परे हैं, भौतिक जीवन में जो रूकावटें तथा गतिविधियों पर नियंत्रण रहता है, वह दूर हो जाता है एवं प्रत्येक प्राणी शक्ति पुंज बन जाता है।
हमारा सम्पूर्ण जीवन शक्तियों द्वारा ही चलायमान है, लेकिन इन शक्तियों पर नियंत्रण नहीं है, जिसके कारण जिस प्रकार का जीवन साधारण व्यक्ति जीना चाहता है, वैसा जीवन जीना उसके लिए सम्भव नहीं हो पाता है, बहुत अधिक धन होने पर भी व्यक्ति सुखी नहीं कहा जा सकता है, उसे कई दृष्टियों से समस्याओं का सामना करना पड़ता है, चाहे वह मानसिक पीड़ा हो, भय सम्बन्धी पीड़ा हो, अथवा कोई और। क्या यह सम्भव नहीं है, कि जिस प्रकार हम वाहन चलाते हैं, उसी प्रकार हमारे जीवन का नियंत्रण हमारे वश में हो, हम जिस प्रकार चाहें उस प्रकार उसे मोड़ दे सकें, इसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है, कि हम यह पहिचान लें, कि कौन हमें सहयोग प्रदान कर सकता है, किसकी शक्ति हमें प्राप्त हो सकती है, यदि कोई शत्रु बाधा पहुंचाने का प्रयास कर रहा है, तो उस पर रोक कैसे लगाई जाए।
भैरव का प्रसिद्ध तांत्रिक स्थान है कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण राजा भद्रसेन ने करवाया था। भैरव के मुख में मद्य का कटोरा लगाने पर वे उसे पी जाते हैं। पास में ही विक्रान्त भैरव का स्थान है। इसके पास जो पाताल भैरवी की गुफा है, सम्भवतः उसी में मुगल कालीन सन्त जदरूप रहते थे। कालभैरव के सामने सरस्वती वापी है। नीचे के घाट को वागन्धक तीर्थ कहते है। पास में करभेश्वर महादेव है।
भैरव, शिव के अंश है और उनका स्वरूप चार भुजा, खड्ग, नरमुण्ड, खप्पर और त्रिशूल धारण किये हुए गले में शिव के समान मुण्ड माला, रूद्राक्ष माला, सर्पों की माला, शरीर पर भस्म, व्याघ्रचर्म धारण किये हुए, मस्तक पर सिन्दूर का त्रिपुण्ड, ऐसा ही प्रबल स्वरूप है, जो कि दुष्ट व्यक्तियों को पीड़ा देने वाला, और अपने भक्तों साधकों के हर प्रकार के संकट दूर कर, उन्हें अपने आश्रय में अभय प्रदान कर, बल, तेज, यश, सौभाग्य, प्रदान करने में पूर्ण समर्थ देव हैं, भैरव-शिव समान ऐसे देव है, जो कि साधक किसी भी रीति से उनकी पूजा-साधना करें-प्रसन्न होकर अपने भक्त को पूर्णता प्रदान करते हैं, भैरव सभी प्रकार की योगिनियों, भूत-प्रेत, पिशाच के अधिपति है, भैरव के विभिन्न चरित्रों, विभिन्न पूजा विधानों, स्वरूपों के सम्बन्ध में शिवपुराण, लिंग पुराण इत्यादि में विस्तृत रूप से दिया गया है, भैरव का सुप्रसिद्ध मन्दिर प्राचीन काल भैरव मन्दिर उज्जैन में है।
ब्रह्मपुराण, शिवपुराण,लिंगपुराण, विष्णुपुराण और भविष्यपुराण ग्रंथों में बताया गया है, कि चाहे किसी भी देवी या देवता की साधना की जाय सर्वप्रथम गणपति और काल भैरव की पूजा आवश्यक है। जिस प्रकार से गणपति समस्त विघ्नों का नाश करने वाले हैं, ठीक उसी प्रकार से भैरव समस्त प्रकार के शत्रुओं का नाश करने में पूर्ण रूप से सहायक हैं।
अत्रि मुनि ने ऊर्ध्वबाहु होकर तीन हजार वर्ष तक तपस्या की। उनके तेज से दशों दिशाएँ व्याप्त हो गयीं। वह तेज पृथ्वी पर गिरा। उससे सोम की उत्पत्ति हुई। सोम के तेज से जो पानी बहा वह क्षिप्रा में आकर मिल गया। इसलिए क्षिप्रा सोमवती क्षिप्रा कहलाई। सोमवती को व्यतीपात योग में वहां स्नान, दान, श्राद्ध करने से पितरों को तृप्ति होती है। पाप भी इसके दर्शन से क्षीण हो जाते हैं। संसार में पाँच सकार दुर्लभ है- क्षिप्रा, सोमनदी, सोमग्रह, सोमेश्वर और सोमवार।
पौराणिक मान्यता है कि ‘मंगल, शनि ग्रह की शांति’, ‘ऋणमुक्ति और धन वैभव लक्ष्मी कामनापूर्ति हेतु’ सिद्ध स्थान क्षिप्रा में खड़े रहकर साधना करने से सभी पितरों मुक्ति होती है और उनका श्राद्ध कर्म करने से जीवन में वैभव की प्राप्ति होती है।
कालसर्प दोष मुक्ति के लिए सिद्ध तीर्थ-सिद्धवट भैरव क्षेत्र में स्थित सिद्धवट का वही महत्व है जो गया तथा प्रयाग में अक्षयवट का है। स्कन्दपुराण में वर्णन है कि कार्तिकेय ने तारकासुर का वध करने के बाद अपनी शक्ति यहां क्षिप्रा में फेकी थी जो पाताल चली गई इसलिये इसे शक्तिभेद तीर्थ भी कहते हैं। नदी में स्नान कर तर्पण करने से सृष्टि में व्याप्त पितरों को तृप्ति होती है।
इस हेतु पूज्य गुरुदेव ने अपने समस्त शिष्यों और साधकों के लिए उज्जैन में पितृ पक्ष में काल भैरव महामृत्युजंय साधना शिविर का आयोजन किया जा रहा है। जिससे सभी शिष्यों साधकों के पितरों की मुक्ति प्रदान करने की प्रक्रिया तर्पण श्राद्ध कर्म क्षिप्रा नदी में सम्पन्न कराया जायेगा। आप सभी को इस शिविर में आना ही है और अपने सद्गुरु के सानिध्य में अपने लिए मंत्र जाप, साधना, दीक्षा प्राप्त कर अपने आने वाले भविष्य को शिवस्वरूप गौरीमय उज्ज्वल और आनन्दायक बना सकेगे।
महाकाल की पावन भूमि व सदाशिव महादेव के ज्योर्तिलिंग व नर्मदा तथा क्षिप्रा नदी भक्तों को चेतना शक्ति से आपूरित करती है ऐसी दिव्य मनोरथ पूर्ति उज्जैन की भूमि पर स्वामी सच्चिदानन्द जी महाराज के दिव्य आशीर्वाद और सद्गुरुदेव के सानिध्य में पितृ मुक्ति श्राद्ध कर्म प्रक्रिया सम्पन्न होगी। आत्म शुद्धि, देह विकार दोष निवारण हेतु काल भैरव मंदिर प्रागंण में हवन पूजन, पूर्व जन्मकृत दोष व सर्व पितृ दोष निवारण तर्पण तथा पूर्वजों के पिण्ड दान व श्राद्ध की प्रक्रिया क्षिप्रा नदी तट पर सम्पन्न होगी। महाकाल मंदिर प्रांगण में गुरुदेव के सानिध्य में स्व रूद्राभिषेक किया जायेगा जिससे कि प्रत्येक साधक मृत्युजंय शक्ति से शिव और गौरी युक्त बन सके।
वे ही पंजीकरण करवायें जो भगवान महादेव की अमृतरूपी चेतना और गौरी स्वरूपा लक्ष्मी शक्ति से अपने आप को आपूरित करना चाहते है। जो अपनी स्वयं की बुद्धि-ज्ञान और विवेक से जीवन में कर्मशील रहते हैं। अपने स्वयं के निर्णय से ही जीवन में क्रियाशील रहते है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,