समुद्र से विभिन्न रंगों व आकारों के शंख आसानी से प्राप्त हो जाते हैं, परन्तु इनमें से अधिकतर शंख वामावर्ती ही होते हैं जिनका मुख दक्षिण भाग की ओर खुलता है उसे दक्षिणावर्ती शंख कहते हैं। ऐसा शंख कभी कभी मछुआरों के हाथ लग जाता है। तंत्र साधनाओं में इसका बहुत बड़ा महत्व है। इसे लक्ष्मी का प्रतिरूप माना गया है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति समुद्र से है और लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र से ही है, इसलिए इसको ‘लक्ष्मी सहोदर’ माना जाता है।
मूलतः भारत में जितने भी शंख पाये जाते हैं वे वामावर्त शंख होते हैं परन्तु यह प्रकृति का चमत्कार ही है कि बहुत कम शंख दक्षिणावर्ती होते हैं। ऐसे शंख ही दुर्लभ और महत्वूपर्ण माने जाते हैं। हजारों-लाखों शंखों में से एक-दो शंख ही दक्षिणावर्ती शंख होते हैं।
शंखों में भी विशेष कर दक्षिणावर्ती शंख में भी तीन भेद होते हैं- 1- नर शंख, 2- मादा शंख, 3- नपुंसक शंख। इसमें मादा एवं नपुंसक शंख व्यर्थ होते हैं, केवल नर शंख का ही महात्म्य है, श्याम और धुएं के रंग के शंख शंखली कहलाते हैं।
दक्षिणावर्ती शंख ही लक्ष्मी का रूप माना गया हैं। यदि ऐसा शंख मंत्र सिद्ध न भी हो, फिर भी वह घर में होता है तो जीवन में आर्थिक दृष्टि से कोई अभाव नहीं रहता।
जिसके घर में दक्षिणावर्ती शंख होता है, उसके घर में लक्ष्मी का निवास बना रहता है। दरिद्र व्यक्ति के हाथ में भी ऐसा शंख आ जाता है तो उसके जीवन में समृद्धि और सम्पन्नता कुछ ही दिनों में प्राप्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति को अचानक और अप्रत्याशित रूप से धन प्राप्त होता है। यश, सम्मान आदि की जीवन में कोई कमी नहीं रहती। शंख जितना बड़ा हो उतना अधिक फलदायक होता है। कम से कम जिस शंख में आधा या पाव किलो पानी समा सके ऐसे शंख पर प्रयोग करने पर पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।
निर्जला एकादशी 9 जून से गुरु पूर्णिमा 12 जुलाई के बीच मंत्र सिद्ध दक्षिणावर्ती शंख प्राप्त करने पर श्रावण मास में रूद्राभिषेक साधना पैकेट उपहार स्वरूप प्रदान किया जायेगा।
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