यस्य स्मृत्या च, नामोक्त्वा तपोयज्ञ क्रियादिषु।
न्यूनं सम्पूर्णतां यति सधो वन्दे तमच्युतम्।।
मैं परम पूज्य आद्यशक्ति स्वरूप गुरुदेव को नमस्कार करता हूं, जिसका ध्यान करने से, और नाम जपने से तप, यज्ञ क्रिया और साधनाओं में हुई सब त्रुटियाँ दूर हो जाती है।
अज्ञान-तिमिरान्धस्य ज्ञानांजन-शलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।
जो मनुष्य अज्ञान रूपी अन्धेरे के कारण अन्धे से हो रहे है, उनकी आंखों को जो ज्ञानरूपी, अंजन शलाका से खोल लेता है, उस सद्गुरु को नमस्कार है।
ध्यानमूलं गुरुोः-मूर्ति पूजा-मूलं गुरुोः-पदं।
मंत्र मूलं गुरो वाक्यं मोक्ष मूलं गुरुोः-कृपा।।
अगर जीवन में पूर्णता प्राप्त करनी है, तो ध्यान गुरु मूर्ति का ही हो, गुरु जो भी आज्ञा दें, वहीं तो मंत्र के समान है, मोक्ष तभी सम्भव है, जब गुरु की कृपा होगी।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् पर-ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
गुरु का पद केवल त्रिगुणात्मक देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक ही सीमित नहीं हैं, अपितु इससे भी ऊंचा है, अर्थात् गुरु तो साक्षात् पर ब्रह्म परमात्मा है, अतः मैं प्रतिपल गुरुदेव को नमस्कार करता हूं।
वो गुरुः स शिवः प्रोक्त यः शिवः स गुरुः स्मृतः।
तस्माद् हि गुरोभकिर्त भुक्ति मुक्ति च दायिनी।
जो गुरु है, वे हो तो शिव है, कल्याणकारी है, और जो शिवस्वरूप है, वे ही गुरु है, अतः समस्त प्रकार की साधनाएं छोड़कर मात्र गुरु भक्ति ही करनी चाहिए, जो कि भुक्ति (समस्त वैभव भोग) एवं मुक्ति देने वाली है।
न माता न पिता भ्राता तस्य को वा गतिः प्रिये।
गुरुरेको वरारोहे ! पापं नाशयति क्षणात्।।
इस भवसारग को पार लगाने में समर्थ न मां है, न बाप है, न भाई और न कोई अन्य ही पूर्णता दे सकता है, मात्र गुरु ही समर्थ है, जिनकी कृपा हो जाय, तो एक ही क्षण में सारे पाप नाश हो जाते हैं और व्यक्ति भवसारग से पार हो जाता है।
गुरुः कर्त्ता गुरुः हर्ता गुरुः पात महौ तले।
गुरुः सन्तोष मात्रेण तुष्टाः सर्व देवता।।
गुरु ही संसार में कर्ता, हर्ता और पूर्णता देने में साक्षात् देवता हैं, अतः गुरु के संतुष्ट होने से ही सभी देवता स्वतः ही संतुष्ट हो जाते है।
ग कार सिद्धिदः प्रोक्तो नेव पापस्य वाहकः।
उकारः शुभमित्युक्त सि्त्रतवात्मा गुरुः स्मृतः।।
‘‘गुरु’’ शब्द ही सब कुछ देने में समर्थ है, ‘‘गं’’ अक्षर सिद्धि देने वाला है, ‘‘उ’’ की मात्रा स्वयं कल्याणकारी है, ‘‘रु’’ पापों का नाश करने वाला है, इसलिए मात्र ‘‘गुरु’’ जप से ही स्वतः सब कुछ प्राप्त हो जाता है।
गुरुस्तीर्थ गुरुर्वज्ञो गुरुर्दानं गुरुस्तपः।
गुरुरग्निर्गुरुः सूर्य सर्वं गुरुमंय जगत्।।
गुरु ही तीर्थ है, वे ही यज्ञ है, वे ही दान और जप है, गुरु ही अग्नि है, गुरु ही सूर्य है, सही कहा जाय तो इस विश्व में जो कुछ दिखाई दे रहा है, वह सब कुछ गुरुमय ही है।
वृथा धर्म, वृथा चर्य, वृथा दीक्षा, वृथा तपः।
वृथा सुकृति माख्याति गुर्वाज्ञा लंघने नृणाम्।।
यदि शिष्य जाने अनजाने भी गुरु आज्ञा का उल्लंघन करता है, उसका धर्म, कर्म, दीक्षा, साधना, तपस्या और सभी सुकृत कार्य निष्फ़ल हो जाते है।
गत-श्रीश्च गतायुश्च गुरोर्निन्दा करो नरः।
कल्प कोटि शतं देवि नरके पतपि ध्रुवम।।
जो साधक, शिष्य या व्यक्ति गुरु की निन्दा करता है, उसका वैभव नष्ट हो जाता है, आयु क्षीण हो जाती है, और वह जीवन भर दुःख भोगता हुआ मृत्यु के उपरांत नरक आता है।
गुरु-पूजा बिनां देवि, इष्ट पूजां करोति यः।
मंत्रस्य तस्य तेजासि हरते भैरवः स्वयम्।।
हे पार्वती ! जो व्यक्ति बिना गुरु की पूजा किये, अपने आराध्य की पूजा करता है, रुद्र रूपी भैरव स्वयं ऐसे व्यक्ति का तेज हर लेते है।
गुरोर्गृहे स्थितः शिष्यों यत् पुण्यं समुपाचरेत्।
तत् पुण्यं प्रोक्त पुण्यं तीर्थे शताधिकम्।।
जो साधक या शिष्य गुरु के घर में रहकर गुरु की सेवा करता है, उसे जीवन में अक्षय पुण्य प्राप्त होता रहता है, तथा सहस्त्रों तीर्थ में भी ज्यादा उसे पुण्य लाभ होता है।
ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च सर्वाश्च पितृ देवता।
तिष्ठन्ति श्री गुरोः पाद-पद्मार्चित-जले शुभे।।
ब्रह्मा, विष्णु शिव और सभी देवी देवता श्री गुरु के चरणों में स्थित हैं, अतः उनके चरणों से स्पर्श किया हुआ जल ग्रहण करने से समस्त प्रकार का शुभ प्राप्त हो जाता है।
धिक् धन धिक् बलं तेषां धिाक् कुलं धिक् विचेष्टितम्।
तेषां नोत्थते भक्तिर्गुरु-र्देवे महेश्वरी।
हे पार्वती! जिसने जीवन में गुरु की भक्ति नहीं की, जो गुरु चरणों के समीप नहीं बैठा, जिसने गुरु की सेवा नहीं की, उसके धन को धिक्कार है, बल को धिक्कार है, उसके कुल, व्यक्तित्व और उच्चता को धिक्कार है।
दीक्षा विधि बिना मंत्र यो जपेत् कोटि कोटिशः।
न स सिद्धि मवाप्नोति सिन्धु-सैकत वर्णवत्।।
कोई भी साधक या शिष्य बिना गुरु से दीक्षा प्राप्त किये मंत्र जप या साधना करता है, वह व्यर्थ जाता है, यदि वह करोड़ वर्ष तक भी मंत्र जप करे तब भी सिद्धि प्राप्त नहीं होती, इसलिए प्रत्येक साधक को पहले विधि विधान के साथ गुरुदेव से दीक्षा प्राप्त कर लेनी चाहिए।
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