इस पत्रिका के दो सदस्य बनाने पर आप पायेंगे अद्वितीय और विशिष्ट उपहार
‘यजुर्वेद’ में लक्ष्मी का आह्वान करते हुए स्पष्ट किया गया है कि यदि नव धातु से बना नव महालक्ष्मी का यंत्र घर के अग्नि कोण में स्थापित करें और नित्य उनका पूजन करें तो उस घर में निरन्तर धन की वर्षा होती रहती है। यजुर्वेद में ‘‘श्री’’ और ‘‘स्वर्णावती’’ के रूप में आह्वान करते हुए उसे ‘‘लक्ष्मी’’ शब्द से सम्बोधित किया है। इनमें वर्णन मिलता है कि लक्ष्मी के श्रेष्ठ 108 रूपी में नव महालक्ष्मी की साधना अपने आप में अद्वितीय सिद्धि प्रदायक, श्रेष्ठ और सम्पन्नता प्रदान करने वाली है।
‘‘नव महालक्ष्मी’’ के पूजन से निम्न लाभ स्वतः प्राप्त होने लगते हैं –
साधक प्रातः स्नान कर, शुद्ध वस्त्र धारण कर, पूर्व की तरफ़ मुंह कर, सफ़ेद (सूती या ऊनी) आसन पर बैठ जायें। उसके पश्चात् गुरु पुजन सम्पन्न कर, षोडशोपचार विधि से भगवती ‘‘नव महालक्ष्मी’’ का पूजन सम्पन्न करें। इसके पश्चात् किसी भी माला से निम्न मंत्र का पांच माला जप 11 दिन तक करें।
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