भगवान विष्णु के ये अवतार मानव जीवन में जो राग-द्वेष है उनसे मुक्त होकर संसार रूपी सागर से पार होने की शिक्षा देते है। राग-द्वेष रहित जीवन व्यतीत कर मोक्ष मार्ग की प्राप्ति की जा सकती है तो प्रस्तुत है राग-द्वेष अर्थात् मधु-कैटभ नाम के दो असुरों के भगवान विष्णु रूप में हयग्रीव अवतार द्वारा अंत की कथा
जब सारी सृष्टि जल मय हो गई थी और उस जल में भगवान विष्णु शेषनाग की शैया पर योग निद्रा के अधीन होकर सो रहे थे । तब उनके कान के मैल से दो दैत्य उत्पन्न हुए, जिनका नाम था मधु और कैटभ । यह उसी जल में बड़े होने लगे और खेलकूद करते इधर- उधर घूमने लगे।
एक समय की बात है, इन दोनों दैत्यों के मन में यह प्रश्न उठा कि, यह जल कहाँ से आया इसका आधार क्या है । संसार मे बिना आधार के कुछ रहता नहीं यही सुना और देखा गया है। यह जल छोड़ो , हम कौन हैं, हम कहाँ से आये, हमारी उत्पत्ति किसने की और हमारे उत्पत्ति क्यों कि । हमें उत्पन्न करने वाले वे पिता कौन है और अब इस वक्त वो कहाँ है । यह प्रश्न उनके मन में उठ रहे थे। अब उन दोनों ने यह निश्चय किया कि हम अवश्य ही इन प्रश्नों का उत्तर जान लेंगे ।
इस तरह उन दोनों ने अपने प्रश्नों का उत्तर जानने का प्रयास किया, किंतु वे दोनों किसी भी निश्चय पर नहीं पहुँच सके । तब कैटभ ने अपने भाई मधु से कहा ,भैया इस संसार में सब कुछ उस आदिशक्ति से ही होता है । वह बहुत ही बलवान है और मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि उन्होंने ही इस जल का निर्माण किया है । क्योंकि वह सब कुछ करने में समर्थ है। उसी समय उन दोनों दैत्यों को देवी का वगबिज सुनाई दिया। उन दोनों ने इसका स्मरण करना आरंभ कर दिया और जब ध्यान लगाया तब भी उन्हें यही वगबिज सुनाई दिया, अब तो उन दोनों को यह विश्वास हुआ कि यही मंत्र है और इसी का जाप करना चाहिये।
अब दोनों दैत्यों ने इस मंत्र का जाप करना आरंभ कर दिया । उन दोनों ने अन्न, जल त्याग दिये, अपने इंद्रियों पर वश पा लिया । इस तरह वे दोनों हजार वर्षों तक देवी की इस मंत्र के द्वारा साधना करने लगे। तब देवी अत्यंत प्रसन्न हुई और बाद मे आकाशवाणी हुई की मधु और कैटभ मैं तुम्हारी इस तपस्या से प्रसन्न हूँ तुम्हारे मन में जो कुछ मांगने की इच्छा हो वह हम से मांग लो।
इस प्रकार आकाशवाणी सुनकर वे दोनों दैत्य अति प्रसन्न हुये और कहा, देवी यदि तुम हमारे तपस्या से प्रसन्न हो तो हमें स्वेच्छा मृत्यु का वरदान दो। तब फिर से आकाशवाणी हुई हे दैत्यों मैं तुम्हें वरदान देती हूँ कि तुम अपनी इच्छा से ही मरोगे जब तक तुम्हारी इच्छा ना हो , तुम्हें असुर या देवता कोई भी नहीं मार पायेंगा।
देवी का यूँ वरदान पाकर मधु और कैटभ को बहुत अभिमान हो गया और वे जलचर जीवों के साथ क्रीड़ा करते अपना समय बिताने लगे । कुछ समय बाद उन दोनों की नजर विष्णु जी के नाभि से उत्पन्न कमल पर विराजमान ब्रह्माजी पर पड़ी। उन्हें देखकर इन दोनों दैत्यों को बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने कहा ‘‘हे ब्रह्मा तुम हमारे साथ युद्ध करो और यदि युद्ध नहीं कर सकते तो यह मान लो कि आज से तुम हमारे दास हो ।’’ इन दोनों दैत्यों कि बात सुनकर सदा तप में लीन रहने वाले ब्रह्मा को बड़ी चिंता होने लगी। उन्होंने सोचा, यह दोनों दैत्य तो बड़े बलवान है और यहाँ मैं साम,दाम,दंड, भेद इनमें से किसी एक का भी प्रयोग नहीं कर सकता। बिना शत्रु के बल को जाने कभी युद्ध नहीं करना चाहिये। अब तो शेष शैय्या पर सोने वाले भगवान विष्णु ही मेरा उद्धार कर सकते हैं और मुझे उनकी ही शरण में जाना चाहिये। यूँ सोच कर ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के सामने आ गये और उनकी स्तुति करने लगे। किंतु उस समय भगवान विष्णु गूढ़ निद्रा में थे । ब्रह्मा जी के बहुत देर तक अनेक शुभ वचनों से उनकी स्तुति करने पर भी वह नहीं जाग पाए , क्योंकि वे योग निद्रा के अधीन हो गये थे।
जब ब्रह्मा जी ने देखा कि विष्णु जी तो जाग नहीं रहे है। तो उन्होंने सोचा कि अब मैं क्या करूं, किसके पास जाऊं । तब बहुत देर तक सोचकर वे इस निर्णय पर पहुँचे की देवी योगनिद्रा ही अब मुझे इस संकट से पार कर सकती है, क्योंकि जब भगवान विष्णु ही स्वयं उनके अधीन है तो यह सिद्ध हुआ कि यह देवी योग निद्रा ही विष्णु जी का शासन चलाती है बल्कि उल्टा नहीं। मैं, भगवान विष्णु और भगवान शिव और सभी देवी देवता इन्ही के अधीन है। तब इन मनुष्यों का क्या कहना, यहाँ तो सभी इन्हीं के अधीन है। अब मैं इस बात को जान गया हूँ कि यह समस्त ब्रह्मांड ही इन देवी के अधीन है और इस पर इन्हीं की सत्ता चलती है यूँ विचार कर ब्रह्मा जी ने देवी आदिशक्ति की स्तुति करनी आरंभ कर दी ।
ब्रह्मा जी की स्तुति से प्रसन्न होकर देवी योगनिद्रा भगवान विष्णु के शरीर से अलग हो गई और अपना रूप धरकर आकाश में खड़ी हो गई। तब भगवान विष्णु जाग गये और वहाँ ब्रह्मा जी को खड़े देख पूछा, हे ब्रह्मा तुम अपना कमल आसन छोड़कर यहाँ क्या कर रहे हो, कुशल मंगल तो हे ना। क्या कोई समस्या उत्पन्न हो गई है। तब विष्णु जी की बातें सुनकर ब्रह्मा जी कहने लगी, प्रभु आपके कान के मैल से उत्पन्न यह दो, मधु और कैटभ नाम के दैत्य अति बलवान है। मुझे मारना चाहते हैं इसीलिये मैं आपकी शरण में आया हूँ आप इन दोनो का अंत करके मेरी रक्षा कीजिये। उसी समय ब्रह्मा को ढूंढते हुये वे दो दैत्य भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी जहाँ थे । शेष कथा अगले अंक में ………………………………
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