जब तुम अपने आपको शक्तिहीन अनुभव करो, जब तुम अपने आपको मृत तुल्य अनुभव करो तब तुम मेरे साथ प्रकृति की तरह एकाकार हो जाओ।
प्रकृति के साथ तुम एकाकार तभी हो सकते हो जब मेरे प्राणों से अपने प्राण जोड़ सको, मेरे हृदय से अपना हृदय एकाकार कर सको, मेरे अंदर अपने आपको समाहित कर सको।
गुरू को तुम भले ही भौतिक रूप में देखो परन्तु वह तो होता है प्राणों का घनी भूत स्वरूप जहाँ से होता है जीवन का नवीन सृजन। इसीलिये गुरू को माता और पिता दोनों कहा गया है।
मैं पिछले कई जन्मों से तुम्हारा गुरू हूँ, तुम्हारे साथ हूँ, तुम मेरे शिष्य हो। तुम शरीर हो और मैं उसकी धडकती हुई आत्मा हूँ, प्राणों का स्पंदन हूँ।
बिना गुरू स्पंदन के तुम्हारा शरीर एक खोखला, प्राण रहित मात्र रक्त मज्जा का पिंड है। ऐसा शरीर जीवित तो है परन्तु उसमें आनन्द नहीं है। तुम्हारे इस दुनियां के पास आनन्द का स्त्रोत नहीं है जहाँ जाकर तुम आनन्द में डूब सको।
परन्तु गुरू के पास दिव्य सुगंध के स्त्रोत है उसके पास पहुंचोगे तो तुम्हारे हृदय में एक नई उमंग पैदा होगी, तुम्हारे चेहरे पर एक तेजस्विता होगी।
तुम्हें इस जीवन में मृत नहीं होना है, तुम्हें सुगंध से, ज्ञान और चेतना की सुगंध से प्राणों को सींचना है।
तुम साधनाओं के अजस्त्र भण्डार से जुडे हुये हो, तुम प्राण चेतना के प्रवाह से अनुप्राणित हो इसलिये तुम्हें समाज को परिवर्तित करना है, उनकी सड़ी गली मान्यताओं को समाप्त कर देना है।
जो मेरे साथ है वे बहुत बड़ा कार्य कर रहे हैं। जिस प्रकार समुद्र ऊपर से भले ही शांत दिखाई दे पर अंदर उसके बड़ी हलचल होती है। ठीक ऐसे ही मेरे शिष्य हैं। ऊपर से शांत दिखते हुए भी नवीन सृजन के कार्य में वे संलग्न हैं।
जो काम तुम्हारी कई पीढि़यों ने नहीं किया, वह तुम्हें करना है, नया इतिहास रचना है क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारी बाजुओं की शक्ति हूँ।
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