यह दिवस विजय दिवस है और श्रीराम युद्ध क्षेत्र में वानरों की सेना को लेकर शक्तिशाली रावण से युद्ध कर रहे थे, लेकिन युद्ध का पार नहीं पड़ रहा था तब नारद ने कहा- ‘हे राघव! रावण के विनाश का उपाय बताता हूँ, इसके लिए आप श्रद्धा पूर्वक उपवास, भगवती का पूजन तथा विधिवत् जप-हवन करें। ऐसा करने से सभी कामनाएं पूरी होती है। देवी को पवित्र वस्तुएं अर्पण कर जप का दशांश हवन करके आप शक्ति सम्पन्न हो जाएंगे। सबसे पहले भगवान विष्णु ने यह अनुष्ठान किया था, फिर शंकर जी ने और ब्रह्मा जी ने किया। उनके बाद इन्द्र ने इस अनुष्ठान का पालन किया तथा कश्यप भी इसे कर चुके हैं। जब देव गुरू बृहस्पति की भार्या को चन्द्रमा ने हर लिया था, तब उन्होंने भी नवरात्रि अनुष्ठान किया था। अतः हे राजेन्द्र! रावण का वध करने के लिए आप भी यह अनुष्ठान करिये। वृत्रासुर का वध करने के लिए इन्द्र ने और त्रिपुरासुर के नाशार्थ भगवान शंकर ने इस उत्तम अनुष्ठान को किया था। मधु दैत्य के वध के लिए भगवान विष्णु ने सुमेरू पर्वत के शिखर पर इस अनुष्ठान का पालन किया था। अतएव हे महामते! आप भी पूर्ण तत्परता के साथ यही अनुष्ठान कीजिये और आप की इस सफलता के कारण विजया दशमी पर्व महासिद्धि पर्व, विजय पर्व के रूप में विख्यात होगा।
वहीं अपराजय होने का तात्पर्य है, कि आपके जीवन की सभी अड़चने, जो दशानन स्वरूप में स्थित दुःख, बाधा, पीड़ा, असफलता, न्यूनता, धन अभाव, परिवार में कलह, संतान सुख में बाधा, ग्रह दोष, पितृ दोष हैं, उन पर व्यक्ति विजय प्राप्त कर ले, उसके प्राणों में ऐसी ऊर्जा का संचार हो, कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसको विजयश्री प्राप्त हो। इस प्रकार विजया दशमी के दिन शक्ति की विशेष आराधना और विशेष प्रकार के प्रयोग अवश्य ही सम्पन्न करना चाहिए। विजयदशमी को प्रत्येक कार्य के लिये अनुकूल दिवस माना जाता हैं। उस दिन प्रारम्भ किया हुआ कार्य का सुपरिणाम अवश्य प्राप्त होता है । अब तक यह अनुभव रहा है कि जब भी सिद्ध मुहूर्त में कोई कार्य सम्पन्न किया जाता है तो उसका फल अवश्य ही प्राप्त होता है।
विजया दशमी के दिन अस्त्र, शस्त्र, व्यापारिक बन्धु इस दिन अपने कलम, दवात की पूजा करें, बालक अपनी पुस्तकों का पूजन करें, स्त्रियां अपने विशेष स्वर्ण आभूषणों की पूजा करें। पूजा चाहे सूक्ष्म रूप से करें अथवा वृहद् रूप में, लेकिन विजया दशमी जैसे मुहूर्त के दिन शक्ति साधना अवश्य ही करना चाहिए।
विजय दशमी के चैतन्य दिवय पर अपराजिता शक्ति पुरूषोत्तम विजय श्री दीक्षा ग्रहण करने से साधक जीवन में आच्छादित राक्षसी दुःख पूर्ण स्थितियों पर विजयश्री प्राप्त करता ही है। जिससे वह अभाव, असफलता, पराजय, रावणी रूपी आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त कर मर्यादा पुरूषोत्तम मय षोड़श कला युक्त चेतना से आप्लावित होता है, साथ ही भौतिक जीवन में सभी सुखों का पूर्णता से उपभोग कर पाता है और उसके जीवन में आनन्द, प्रसन्नता, वृद्धि का भाव बना रहता है।
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