अतः अपने आपको ये समझना होगा कि जीवन में हम सभी को निरन्तर समय परिस्थितियों के अनुरूप साधनात्मक पथ को अपनाना ही होगा व अपने जीवन काल में समय-समय पर दीक्षा साधनाओं की शक्तियों को अपने अन्दर आत्मसात् कर ही जीवन को जीवन्त जाग्रतमय कर सकेंगे।
जब कोई अस्वस्थ व्यक्ति सामान्य सी बीमारी, खांसी-जुकाम या कोई दर्द से पीडि़त होता है तो वह उससे सम्बन्धित उपचार हेतु व्यवस्था कर दवा ग्रहण करता है जिससे स्वस्थ भी हो जाता है यदि इसके विपरित सामान्य बीमारी का भी उपचार नहीं करे तो वह रोग धीरे-धीरे जटिल हो जाता है और उसका समाधान लम्बे समय तक उपचार करने से ही सम्भवतः पूर्ण स्वस्थ हो पाता है। आगे भविष्य में सम्भवतः उस बीमारी के कुछ जीवाणु शरीर में पुनः उभर जाते है तो पुनः हमें उपचार करना ही होता है। ठीक वैसी ही स्थितियां जीवन की व्यथाओं, परेशानियों, बाधाओं को समाप्त करने के लिये समय-समय पर साधनात्मक स्वरूप में पूजा-अर्चना दीक्षा की क्रियायें करनी ही पड़ती है।
आज विश्व के सभी विकसित देश हमारे ऋषियों द्वारा सिद्ध मंत्रें के माध्यम से स्थापित ध्यान, साधना, मंत्र जप, कुण्डलिनी ज्ञान को अपने नित्य जीवन का हिस्सा बना रहे है और हम मुर्खतावश इससे दूर होते जा रहे है, समय अभी भी है अभी तक आपने अधिकांश रूप में कुछ नही खोया है। वह पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हो जाये और गन्दगी पूर्ण कीड़े-मकोड़ों की तरह जीवन नही बने इस हेतु केवल संकल्प शक्ति के साथ अभ्यास द्वारा साधनात्मक स्वरूप में आस्थावान बने रहें।
आने वाला यह शिव-गौरी शक्ति युक्त श्रावण मास व कर्मशील चेतना प्रदान करने में पूर्ण-पूर्ण सहायक योगेश्वर श्री कृष्ण जी का अवतरण पर्व आपके जीवन में सुमंगलमय स्वरूप में स्थापित हो।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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