संन्यास महोत्सव अपने-आप में साधनात्मक रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण पर्व है और देखा जाये तो, पूरा भारतवर्ष इस कार्तिक मास में पूर्ण आध्यात्मिक वातावरण से ओत-प्रोत होता है। इस मास का संन्यास महोत्सव का प्रत्येक दिवस अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि ये व्यक्ति के पूर्ण जीवन चक्र का प्रतिनिधित्व करते है, इसलिए इन दिनों में किसी भी प्रकार का किया गया कार्य अपने-आप में आने वाले वर्ष में फ़लप्रद होता है।
‘‘दीक्षा’’ एक सामान्य घटना नहीं है, अपितु दीक्षा तो जीवन का श्रेष्ठतम कार्य है, और बहुत प्रयत्न करने पर जब गुरु प्रसन्न होते है, तभी वे अपनी तपस्या का अंश शिष्य को देते है, जिससे वह उन दीक्षाओं को प्राप्त करके अपने जीवन की समस्याओं को सुलझा सके। अतः दीक्षा को रुपयों से नहीं तोला जा सकता, दीक्षा के बारे में आलोचना करना भी अपने-आप में पाप और दोष होता है, और उस दोष से जो दुर्भाग्य होता है, उसे हम दुःख के रूप में झेलते है।
यूं तो दीक्षा सैकड़ों पंडित-पुरोहित, साधु-संन्यासी दे सकते है, पर शास्त्रें में यह विधान है, कि दीक्षा देने का अधिकारी वही होता है, जो वास्तव में ही तपस्या से युक्त हो, जो वास्तव में ही देवत्व युक्त हो, जो वास्तव में ही गुरुत्व प्राप्त हो, और इसी प्रकार दीक्षा प्राप्त करने का अधिकारी भी केवल वही होता है, जिसके मन में दीक्षा के प्रति, अपने गुरु के प्रति पूर्ण आस्था, विश्वास और निष्ठा होती है। आप ऐसे ही श्रद्धावान शिष्य है और आप जैसे शिष्यों पर पूरी संस्था को अपने-आप में गर्व है।
शास्त्रों में कहा गया है कि सद्गुरु अपने-आप में वेदों की पावना और दिव्यता समेटे हुए, पूरे जीवन का प्रतिनिधित्व करते है, इसलिए उसका प्रत्येक क्षण अपने-आप में कीमती होता है और इन दिनों में जो भी साधना या दीक्षा प्राप्त की जाती है, वह तो पूर्ण सिद्धिप्रद तो होती ही है, किन्तु इन विशिष्ट दिनों में प्राप्त की गई दीक्षा जीवन का अहो भाग्य कहलाती है।
मैं ये पंक्तियां इस वजह से नहीं लिख रहा हूं कि आप दीक्षा प्राप्त करें ही, मैं तो केवल आपको यह बताना चाहता हूं, कि इन दिनों में दीक्षा लेने का क्या महत्व है ? ये दिन अपने-आप में तेजस्विता युक्त है, ओर इन दिनों सम्पूर्ण विश्व में देवताओं और ऋषियों की चेतना व्याप्त होती है, इसलिए संन्यास महोत्सव का प्रत्येक दिन, प्रत्येक क्षण अपने-आप में मूल्यवान, चेतनावान और अद्वितीयता प्रदायक है।
मैं कई सालों से देखता आ रहा हूं कि पूज्य गुरुदेव अपने शिष्यों को इस पर्व का पूर्ण फ़ल प्रदान करने के लिए प्रयासरत रहते है, अतः वे आप से मिलते है, साधना करवाते है और उसके बाद यदि कुछ समय बचता है, उसे अपनी साधनाओं में व्यय करते है। मैंने तो इन दिनों में उन्हें नींद लेते हुए कम ही देखा है, या यूं कहूं कि देखा ही नहीं। इन दिनों वे अपने ऊपर से माया का आवरण आंशिक रूप से कम कर देते है, जिसके कारण उनकी तपः ऊर्जा अन्य दिनों की अपेक्षा तीव्रता से निस्सृत होती रहती है, ऐसे समय में यदि हम उनकी तपस्या का अंश प्राप्त करते है, तो वे क्षण हमारे जीवन का पुण्योदय होता है, और उन क्षणों में दीक्षाओं को प्राप्त करके हम जीवन की उन समस्याओं को निश्चय ही मिटा सकते है, जो भौतिक है, अध्यात्मिक है, दैविक है या दैहिक है, चाहे वह कैसी भी समस्या हो, बीमारी से सम्बन्धित हो, धन से सम्बन्धित हो, आर्थिक सम्पन्नता से सम्बन्धित हो या सिद्धाश्रम प्राप्ति से सम्बन्धित इच्छा हो।
अस्तु, हमें प्रयत्न करके भी गुरुदेव के पास पहुंचना ही चाहिए। इन दिनों में हम जो भी दीक्षा प्राप्त करेंगे या प्रयोग सम्पन्न करेंगे, वे अपने-आप में महत्वपूर्ण सिद्ध होगें ही, इसमें कोई सन्देह नहीं, इसलिए हमें चाहिए कि ज्यादा-से-ज्यादा दीक्षा प्राप्त करें, ज्यादा-से-ज्यादा प्रयोग सम्पन्न करें और अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को अपने आप में तेजस्विता युक्त बना दें।
प्राचीन काल में मनुष्य बीस-बीस साल तक साधना कर लेते थे, मगर आज व्यक्ति इतना समय साधना-जप आदि क्रियाओं में व्यतीत नहीं कर पाता, ऐसे समय में गुरु, शिष्य को अपनी तपस्या का अंश देकर, उसका 90 प्रतिशत कार्य दीक्षाओं के माध्यम से पूर्ण कर, उसकी समस्याओं का समाधान कर ही देते है, बाकि 10 प्रतिशत ही कार्य शिष्य को स्वयं करना होता है। सफ़लता प्राप्त करना तो आप पर ही निर्भर करता है, गुरु के प्रति श्रद्धा, विश्वास, निष्ठा, अटूट आस्था, मंत्र के प्रति विश्वास होने पर ही आप सफ़लता के नजदीक पहुंच सकते है।
हमें चाहिए कि हम अपनी बुद्धि को शांत और स्थिर रखें ओर यदि सोचे, तो हम इस नतीजे पर पहुंचते है, कि यह जीवन यदि हमें प्रभु ने दिया है, तो पूर्णता तक पहुंचे ही, और पूर्णता तक पहुंचने का एक ही सुगम मार्ग है, उसे शास्त्रें में ‘‘दीक्षा’’ कहा गया है। यूं तो अनेकों दीक्षाएं होती हैं, किन्तु कुछ ऐसी विशेष दीक्षाएं है, जिनको प्राप्त करने पर जीवन के हर पाप-ताप, दारिद्र्य, कष्ट, अज्ञानता अथवा बुद्धिहीनता, अंधकार सभी कुछ समाप्त हो जाता है, दीक्षाएं आपे-आप में विशेष महत्वपूर्ण है, जो कि हमारे पूरे जीवन को पूर्णता देने के लिए आवश्यक मानी गई है।
किसी भी कार्य की पूर्णताः, सम्पन्नता, श्रेष्ठता के लिए दीक्षा प्राप्त की जा सकती है। कई बार ऐसा होता है, कि हमारे पूर्वजन्मों के दोष या पाप इस जीवन में आड़े आते है, तो तीसरी, चौथी बार—- तब तक प्रयत्न करना चाहिए, जब तक सफ़लता नहीं मिल जाती।
संन्यास महोत्सव हरिद्वार में प्रमुखतः प्रदान की जाने वाली दीक्षाएं निम्न है –
राज-राजेश्वरी दीक्षा
आज्ञा चक्र जागरण दीक्षा
महामृत्युजंय दीक्षा
ज्ञान दीक्षा
जीवन मार्ग दीक्षा
पूर्ण सिद्धि दीक्षा
गृहस्थ सुख-सौभाग्य दीक्षा
अकाल मृत्यु निवारण दीक्षा
गर्भस्थ बालक को चेतना दीक्षा
महालक्ष्मी दीक्षा
मनोवांछित कार्य सिद्धि दीक्षा
भौतिक जीवन में सभी दृष्टियों में पूर्ण सफ़लता प्राप्ति दीक्षा
गुरु हृदयस्य धारण दीक्षा
सिद्धाश्रम प्राप्ति दीक्षा
पूर्वजन्मकृत पाप-दोष निवारण दीक्षा
योग्य पुत्र प्राप्ति दीक्षा व पुत्रोन्नति दीक्षा
साधना, सिद्धि एवं सफ़लता दीक्षा
विपत्ति, दुःख ओर कष्ट निवारण दीक्षा,
सम्पूर्ण ऐश्वर्य युक्त महालक्ष्मी प्राप्ति दीक्षा।
इन सभी दीक्षाओं को आप अपने लिए, अपने परिवार के किसी सदस्य के लिए भी प्राप्त कर सकते है। यदि आपके परिवार का सदस्य आने में असमर्थ है, तो आप उसके फ़ोटो द्वारा उसे दीक्षा दिला सकते है। गंगा की पवित्रता का अहसास स्नान करने से नहीं वरन् ऐसे श्रेष्ठ अवसर पर सद्गुरुदेव के सानिधय में दीक्षा प्राप्त कर अपने मन आत्मा और जीवन को शुचितापूर्ण और उधर्वमुखी युक्त बना सके।
इस शिविर के बाद आप को स्वतः अनुभव करेंगे, कि वास्तव में ही दीक्षा भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन की पूर्णता का एकमात्र आधार है, जो हमारे सुखी एवं आनन्ददायक जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है, इस बात को तो वे ही समझ सकते है, जिनके जीवन में इन दीक्षाओं का समावेश हुआ हो या फि़र वे जिनके जीवन में ऐसी अद्भुत, अनिवर्चनीय गुरुमय बनने की क्रिया प्रारम्भ होगी, जिस तरह गुरु पूर्ण होता है उसी तरह श्रेष्ठ गुरु का भाव भी यही रहता है कि वह अपने शिष्यों और साधकों को भी संसार में अपने ही समान अपनी प्रतिमूर्ति बना सके।
ऐसा श्रेष्ठ अवसर जीवन में बार-बार नहीं मिलता अतः हमें अनिवर्चनीय समय का पूरा उपयोग करते हुए परिवार सहित हरिद्वार पहुंचना ही है।
मैं गुरुदेव से विनम्र प्रार्थना कर यह लेख लिख रहा हूं, वह इसलिए कि गुरु भाइयों को पूरी चेतना प्राप्त हो सके। हमें जीवन को श्रेष्ठता और पूर्णता की ओर ले जाना है।
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