हम अपने इतिहास पर दृष्टिपात करें, तो हमारे समक्ष अनेक ऐसे रहस्योद्घाटन होते हैं, जिनके विषय में वर्तमान वैज्ञानिक शोधरत हैं या सफलता को किसी हद तक प्राप्त कर चुके हैं, फिर भी अभी उन सोपानों को प्राप्त नहीं कर सके हैं जिसे ऋषियों ने आज से हजारों वर्ष पूर्व प्राप्त कर लिया था।
आज भी कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर कुछ ऐसे रहस्यमय तथ्य हैं जो अत्यन्त विस्मयकारी हैं। मेरा सरकारी पद ही कुछ ऐसा है जिसके कारण मुझे सदा आदिवासी या सूदूर क्षेत्रों में ही जाना पड़ता है। मेरा स्थानान्तरण हिमाचल के एक सुदूर गांव में हुआ वहां पर बस या अन्य किसी वाहन आदि की व्यवस्था नहीं थी। वहां से कई किलोमीटर दूर पैदल चलकर आने पर ही आवश्यक सामान उपलब्ध हो पाता था, मेरे पास स्वयं का वाहन होने के कारण मुझे कभी इस प्रकार की समस्या से जूझना नहीं पड़ा, पर इस बार जहां मेरी नियुक्ति हुई। वह स्थल मेरे लिए एक प्रकार से आश्चयर्जनक बन गया, क्योंकि वहां की प्रकृति में सौन्दर्य बिखरा पड़ा था, प्रत्येक स्त्री का रंग गोरा तो नहीं था, पर ऐसा जैसे स्वर्ण की कान्तिमय किरणों से वातावरण प्रकाशित हो रहा हो————– लावण्यता लिए हुए चेहरा, नेत्रों की चपलता ऐसी कि प्रकृति भी अधीर हो उटे, उनकी देह से निःस्सृत सुगन्ध ने वहा के वातावरण को और भी अधिक मादक बना दिया था। अद्वितीय तथा अत्यन्त आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं वे। सभी या यूं कहूं, कि वहां की प्रत्येक स्त्री सौन्दर्य के मापदण्ड पर पूर्ण थी।
मेरे लिए यह आश्चर्य ही था, एक भी साधारण स्त्री नहीं दिख रही थी सभी देवतुल्य अप्सरा की भांति वन में इधर-उधर विचरण करती दिख रही थीं। वहां के पुरूषों में भी पूर्ण रूप से पौरूषत्व था।
दृढ़ स्कन्ध— लम्बी भुजाएं—- नेत्रों में प्रेम का सागर, तो वही अवसर पड़ने पर क्रोध की ज्वाला भी दिखाई पड़ती थी। मैंने सौन्दर्य तो देखा था, पर ऐसा नहीं, कि पूरा का पूरा गांव ही अद्वितीय सौन्दर्य से युक्त हो। एक भी व्यक्ति सामान्य नहीं दिख रहा था। उस स्थान को यदि मैं किसी सौन्दर्य लोक की उपमा दे दूं, तो व्यर्थ न होगा। प्रमुख बात तो यह थी, कि वहां की जलवायु के अनुसार सुडौलता सम्भव ही नहीं थी, प्रत्येक व्यक्ति श्यामवर्ण तथा थोड़ी सी स्थूलता लिए हुए ही होने चाहिए था।
उस गांव के ही एक पुरोहित परिवार से मेरी घनिष्ठता स्थापित हो गई थी। धार्मिक वृत्ति के होने के कारण मेरे घर में किसी न किसी प्रकार का पूजन होता ही रहता था। वे पुरोहित अक्सर घर पर आते ही रहते थे। इसके साथ ही वे तंत्र के विशेष जानकार भी थे, मेरी भी रूचि तंत्र में थी। इस कारण कभी-कभी साथ बैठकर उनसे तंत्र से सम्बन्धित विषयों पर चर्चा हो ही जाती थी।
एक दिन उनसे तंत्र के माध्यम से सौन्दर्य प्राप्ति के विषय पर चर्चा छिड़ गई, मेरे ज्ञान के अनुसार तंत्र के माध्यम से सौन्दर्य प्राप्त किया जा सकता था, पर पूर्णतः कायाकल्प होना सम्भव नहीं था। उनका मत था, कि कैसी भी स्त्री या पुरुष हो , वह तंत्र के माध्यम से पूर्णरूप से कायाकल्प कर सकता है। मैं उनसे सहमत नहीं था, इस पर उन्होंने स्वयं ही कहा- आप क्या समझते हैं, कि किसी गांव में प्रत्येक स्त्री तथा पुरूष सौन्दर्यवान हो सकता हैं, जिसे सौन्दर्य की पराकाष्ठा कहा जा सकता हैं, क्या वह हमारे गांव में विद्यमान नहीं हैं?
वास्तव में यह सत्य था, कि उस गांव में किसी भी स्त्री या पुरूष को सौन्दर्य की दृष्टि से न्यून नहीं कहा जा सकता था। उन्होंने स्पष्ट किया, कि इस प्रकार सौन्दर्य की प्राप्ति तंत्र के माध्यम से ही सम्भव हो सकी हैं। जब मैंने उनसे इसके रहस्य को जानने की इच्छा व्यक्त की, तो उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया, कि यह हमारे गांव की अमूल्य तथा गोपनीय धरोहर है, जिसे हम आपको नहीं बता सकते। अतः मैंने उनसे उनका शिष्यत्व स्वीकार करने की इच्छा प्रकट की, तो उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया। तंत्र के क्षेत्र में गुरु कृपा से ही पूर्णता प्राप्त की जा सकती है, मेरे समक्ष यह स्थिति स्पष्ट नहीं हो रही थी, जिससे मैं इस साधना विशेष को प्राप्त कर सकूं। कुछ समय पश्चात् वहां के मुखिया, जिन्हें उस गांव के लोग देवता के समान पूजते थे, उनका स्वास्थ्य गिरने लगा, जड़ी-बूटियों से उनको स्वास्थ्य लाभ बहुत कम ही हो पा रहा था और उनको शीघ्र ही किसी विशेष उपचार की आवश्यकता थी।
जब मुझे मुखिया की स्थिति ज्ञात हुई, तो मैंने उन्हें अपने एक डॉक्टर मित्र को दिखाया, जिसके उपचार से उनका स्वास्थ्य दो दिनों में ही ठीक होने लग गया, उनके उपरान्त उन्हें वहां के वैद्यों ने ठीक कर दिया, ऐसी स्थिति में जब उन्हें देवता सदृश मुखिया ठीक हुए, तो पुरोहित ने मुझे अपने पास बुलवाया और कहा- आपके इस कार्य से मेरा पूरा गांव ही आपका ऋणी हो गया है अतः आपको उपहार स्वरूप वह अद्वितीय साधना देना चाहता हूं, जिसे आपने कुछ समय पूर्व जानने की इच्छा व्यक्त की थी,और इसके पश्चात् पुरोहित ने मुझे उस अद्वितीय सौन्दर्य प्राप्ति प्रयोग के विषय में बताया।
पुरोहित ने उस सौन्दर्य प्राप्ति प्रयोग का नाम ‘मोहिनी साधना’ बताया और कहा, कि इस साधना के माध्यम से ही नागार्जुन ने अपनी प्रेमिका कमलगन्धा को विश्व की अर्निन्घ्न सुन्दरियों में से एक बना दिया था। यद्यपि उसकी प्रेमिका सामान्यतः सुन्दर थी, पर नागार्जुन ने उसे जिस मोहिनी प्रयोग के द्वारा अद्वितीय सुन्दरी बना दिया, उसी प्रयोग को हम सम्पन्न करते हैं।
उसने बताया, कि ऐसा नहीं हैं कि यहां पर उत्पन्न होने वाले सभी बच्चे सुन्दर ही होते हैं, पर साधारण नैन-नक्श वाले स्त्री-पुरूष भी उस साधना को सम्पन्न कर अद्वितीय सुन्दर बन जाते हैं। इस प्रयोग की महत्वपूर्ण विशेषता यह हैं, कि साधक जब इसे सम्पन्न कर लेता हैं, तो उसे निराशा, उदासी बैचेनी नहीं घेरती, वह सदैव प्रसन्न, आत्मविश्वास से युक्त तथा उत्साही बना रहता है। फिर इसके बाद उन्होंने मुझे वह पूर्ण विधि-विधान बताई तथा स्वयं मुझे वह प्रयोग विधि सम्पन्न करवायी, उन्हीं विधि को मैं साधकों के लाभार्थ बता रहा हूं।
इस साधना में आवश्यक सामग्री हैं- ‘रसेश्वरी मोहिनी यंत्र’, ‘रतिराज गुटिका’ तथा ‘ रसेश्वरी मोहिनी माला’।
यह साधना आप मोहिनी एकादशी को सम्पन्न कर सकते हैं या फिर किसी भी माह के तृतीय शुक्रवार को भी सम्पन्न कर सकते हैं।
यह साधना एक दिवसीय है, इसे आप रात्रिकाल में ही सम्पन्न करें। साधक सफेद वस्त्र धारण करें तथा साधिका गुलाबी वस्त्र धारण कर तथा पूर्ण सुसज्जित होकर, यह साधना आरम्भ करें। लकड़ी के बाजोट पर गुलाबी रंग का वस्त्र बिछा कर उस पर ‘मोहिनी यंत्र’ को गुलाब के पुष्प का आसन बनाकर स्थापित करें एवं अपने चारों ओर इत्र छिड़क लें।‘रतिराज गुटिका’ को भी यंत्र के एक ओर स्थापित कर दें तथा गुटिका तथा यंत्र का पूजन केसर, पुष्प, अक्षत, धूप व दीप से करें। गुरु पूजनं एवं गुरु ध्यान करने के उपरान्त भगवान कामदेव का स्मरण करें तथा सौन्दर्य प्रदान करने की प्रार्थना करें-
सौन्दर्य देहि कामेश! मोहिनी मंगल्य संयुतं।
सर्व काम्यं सदाभव्यं रसेश्वरी विश्ववन्द्यं रतिप्रियम्।।
इसके पश्चात् निम्न मंत्र का 51 माला जप करें।
जप के पश्चात् गुटिका तथा यंत्र को जल में विसर्जित कर दें। माला को 51 दिन तक पहने रखें तथा नित्य एक माला जप करें।
साधना सामग्री- रसेश्वरी मोहिनी यंत्र, रतिराज गुटिका, तथा रसेश्वरी मोहिनी माला ।
यह वास्तव में सम्मोहन और वशीकरण दोनों ही प्रक्रियाओं का मिला जुला रूप हैं। इस साधना में जिन सामग्रियों की नितान्त आवश्यकता पड़ती है, वे है, सम्मोहन वशीकरण यंत्र तथा वशीकरण माला।
किसी भी शुक्रवार की रात्रि में दस बजे के पश्चात् साधक उत्तर दिशा की ओर मुख करके, सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित होकर, पीला आसन बिछाकर बैठ जाये। स्वयं पीली धोती पहनें एव पीला आसन व सामने पीला ही वस्त्र बिछा हो। कांसे की थाली में सम्मोहन यंत्र को स्थापित कर उसका कुंकुम, अक्षत व पुष्प से पूजन करें, इसके बाद सम्मोहन माला से निम्न मंत्र की ग्यारह माला जप करें।
यह प्रयोग इतना तीव्र हैं, कि तीसरे व चौथे दिन ही व्यक्ति अपने चेहरे में एवं लोगों के व्यवहार में परिवर्तन अनुभव कर सकता है, साधक इस प्रयोग को कुछ समय तक सप्ताह के प्रति शुक्रवार को दोहराया जाता रहे, तो लाभदायक रहता हैं।
साधना सामग्री- सम्मोहन वशीकरण यंत्र एवं वशीकरण माला
कामदेव एक ऐसे देव पुरूष की साधना हैं, जो जितना अधिक व्यक्ति के बाह्य पक्ष से सम्बन्ध रखते हैं, उसी सीमा तक किसी भी व्यक्ति के अन्तः पक्ष से भी सम्बन्ध रखते हैं। कामतत्व की आह्लाद, भावना, वेग इत्यादि मनोभावनाऐं व्यक्ति के मन में उपस्थिति होनी आवश्यक होती है, वहीं सौन्दर्य पुष्टता, दृढ़ता, गति के रूप में उपस्थिति होनी श्रेष्ठ रहती है। तभी एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व की क्रिया निर्मित हो पाती हैं।
कामदेव से सम्बन्धित अन्य साधनाएं तो फिर भी सीमित अर्थों ये युक्त अथवा एकांगी कही जा सकती हैं, किन्तु प्रस्तुत साधना विधि से सम्पन्न कर साधक ‘काम’ को एक पुरूषार्थ के रूप में सिद्ध कर ही लेता है, इसमें संशय के लिए कोई भी स्थान नहीं।
साधना में साधक स्नान कर किसी शुक्रवार को रात्रि 10 बजे के आस-पास पीले वस्त्र धारण कर, पूर्व दिशा की ओर मुख कर, पीले रंग के आसन पर बैठें तथा साधना की समस्त आवश्यक सामग्री पहले से ही अपने पास रख लें, साधना के मध्य बार-बार उठना व्यवधान की श्रेणी में आता है, साधना सफलता कों संदिग्ध बना देता है। आसन पर बैठने के बाद दत्तचित भाव से पीसी हल्दी के लेप को किसी तीली की सहायता से किसी स्वच्छ स्टील की थाली या तांबे की थाली में नीचे दिये यंत्र का अंकन करें।
यदि आप चाहें तो इसे भोजपत्र पर भी अंकित कर सकते हैं अंकन का केवल स्पष्ट होना आवश्यक है, अंकन को करने के पश्चात् जहां-जहां ‘श्रीं’ एव ‘ह्रीं’ बीजाक्षर अंकित हैं, वहां एक-एक लघु नारियल को स्थापित करें तथा अंकन के मध्य में जहां ‘क्लीं’ अंकित है उसके ऊपर कामदेव यंत्र स्थापित करें। सभी लघु नारियलों का पूजन श्वेत चंदन, अक्षत, सुगंध (इत्र) एवं पुष्प की पंखुडि़यों से कामदेव यंत्र का पूजन प्रत्येक बार कुंकुंम से यंत्र पर एक टीका या बिन्दी लगाते हुए निम्न प्रकार से मंत्रोच्चार करते हुए करें-
ऊँ कामाय नमः, ऊँ कामदेवाय नमः,
ऊँ मन्मथाय नमः, ऊँ वसंतसखाय नमः,
ऊँ सम्मोहनाय नमः, ऊँ शीलाय नमः,
ऊँ पुष्पधन्वने नमः, ऊँ मदनाय नमः,
इसके पश्चात् कुछ पुष्प की पंखुडियां, अक्षत एवं सुगंध यंत्र पर भेंटकर, अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हुए, शुद्ध घी का एक बड़ा दीपक जलाकर मन्मथ माला से निम्न मंत्र की पांच माला मंत्र जप सम्पन्न करें-
मंत्र जप के बाद रात्रि में साधना स्थल पर ही सोएं तथा दूसरे दिन प्रातः सभी सामग्री को किसी सरोवर या नदी में विसर्जित कर दें। यदि आगे भी 15 दिनों तक उपरोक्त मंत्र का नित्य प्रति एक माला मंत्र जप सम्पन्न करते रहें, तो विशेष लाभप्रद होता हैं।
साधना सामग्री- चार लघु नारियल एवं कामदेव यंत्र।
जब तक भाग्योदय जाग्रत नहीं हो जाता, तब तक व्यक्ति जितने प्रयत्न करता है, उसका एक अंश भी लाभ प्राप्त नहीं हो पाता, थोड़ी सी भी सफलता बार-बार प्रयत्न करने पर ही प्राप्त होती है, और जब भाग्योदय प्रारम्भ हो जाता है, तो रूके हुए कार्य भी पूरे होने प्रारम्भ हो जाते हैं, एक सफलता के बाद दूसरी सफलता स्वतं प्राप्त होती रहती है।
‘सौभाग्य कल्प लतिका’ के अनुसार इस हेतु विशेष अनुष्ठान प्रत्येक सोमवार को दोहराना चाहिए। इस साधना में पांच मधुरूपेण रूद्राक्ष,भाग्य लक्ष्मी सिद्धि यंत्र, लक्ष्मी चित्र, व लक्ष्मी माला अनिवार्य है।
सोमवार के दिन सुबह स्नान कर, शुद्ध पीले वस्त्र धारण कर, पूर्व दिशा की ओर मुंह कर अपने सामने चित्र रखें, अब साधक अपने सामने पांच चावल की ढेरियाँ बना कर मध्य में भाग्य लक्ष्मी सिद्धि यंत्र तथा पांचों मधुरूपेण रूद्राक्ष स्थापित करें, घी का दीपक जलाएं। कुंकुंम, पुष्प, इत्र, मौली से यंत्र चित्र का पूजन करें, गुरु का ध्यान करें तथा पांच पुष्प चढ़ाएं। अब ‘लक्ष्मी माला’ से भाग्योदय मंत्र की सात माला जप करें।
जब सात मालाएं पूर्ण हो जाय तो एक लोटे में कच्चा दूध और जल मिलाकर उसमें एक मधुरूपेण रूद्राक्ष डाल दें और इसे किसी भी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर चढ़ा दें।
इसी प्रकार अगले सोमवार को प्रयोग सम्पन्न करें तथा पांच सोमवार तक प्रयोग सम्पन्न कर अनुष्ठान की पूर्ण आहुति करें। यंत्र को पूजा स्थान में चालीस दिन तक स्थापित रखें।
इस सिद्धि प्रयोग के बारे में यदि कहा जाय कि यह साधना प्रयोग सोये हुए भाग्य को जाग्रत कर अखण्ड सौभाग्य प्रदान करने की साधना हैं।
इस साधना को सम्पन्न करने के लिए साधक के पास ताम्रपात्र पर अंकित ‘नवयौवन गुरु यंत्र’, ‘चार तांत्रोक्त फल’ एवं ‘हकीक माला’ होनी आवश्यक है। यह साधना किसी भी शनिवार अथवा रविवार को सम्पन्न की जा सकती है। साधक इसे या तो प्रातः पांच से सात के मध्य सम्पन्न करें अथवा रात्रि में दस बजे के पश्चात्। इसके लिए वे केवल सफेद रंग की धोती पहने, साधिका पीले वस्त्र धारण करें तथा यथा सम्भव ऊनी आसन का पहले से ही प्रबन्ध कर आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें तथा अपने सामने सफेद वस्त्र पर किसी ताम्र पात्र में नवयौवन गुरु यंत्र को स्थापित कर, उसका पूजन कर, उसके चारों ओर तांत्रोक्त फलों की स्थापना करें तथा उनका संक्षिप्त पूजन केवल कुंकुंम, अक्षत से कर हकीक माला से निम्न मंत्र की ग्यारह माला सम्पन्न करें-
यह साधना केवल ग्यारह दिन में सम्पन्न करना ही उचित माना गया है तथा एक बार प्रारम्भ करने के बाद इसे अखण्ड रूप से सम्पन्न करें। बीच में यदि किसी कारणवश कोई व्यवधान पड़ जाए, तो साधना को पुनः नए क्रम से प्रारम्भ करें। अंत में सभी साधना सामग्री नदी में विसर्जित कर दें।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,