एक बार पार्वती ने महादेवजी से अपनी क्षुधा को निवारण करने का निवेदन किया। महादेव जी चुप रह गये। कई बार निवेदन करने पर भी जब देवाधिदेव ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया, तब उन्होंने महादेव जी को ही निगल लिया। उनके शरीर से धूमराशि निकली। तब शिवजी ने शिवा से कहा कि ‘आपकी मनोहर मूर्ति बगला अब धूमावती या धूम्रा’ कही जायेगी। यह धूमावती वृद्धा स्वरूपा, डरावनी और भूख-प्यास से व्याकुल स्त्री-विग्रहवत अत्यन्त शक्तिमयी है। अभिचार कर्मों में इनकी उपासना का विधान है।
विश्व की अमांगल्यपूर्ण अवस्था की अधिष्ठात्री शक्ति ‘धूमावती’ हैं। ये विधवा समझी जाती हैं, अतएव इनके साथ पुरूष का वर्णन नहीं है। यहाँ पुरूष अव्यक्त है। चैतन्य, बोध आदि अत्यन्त तिरोहित होते है। इनके ध्यान में बताया गया है कि ये भगवती विवर्णा, चंचला, दुष्टा, एवं दीर्घ तथा गलित अम्बर धारण करने वाली, खुले केशों वाली, विरल दन्त वाली, विधवा रूप में रहने वाली, काक-ध्वज वाले रथ पर आरूढ़, लम्बे-लम्बे पयोधरों वाली, हाथ में शूर्प लिए, अत्यन्त रूक्ष नेत्रों वाली, कम्पित-हस्ता, लम्बी नासिका वाली, कुटिल- स्वभाव, कुटिल नेत्रों ये युक्त, क्षुधा, पिपासा से पीडि़त, सदैव भयप्रदा और कलह की निवास भूमि हैं।
शिव ने कहा-जो प्रातः काल में कुमारी मूर्ति धारण कर फूलों की कलियों से बनी जप माला में जप करती हैं, माध्यह्न काल में प्रौढ़ स्वरूप में प्रसन्न मुख से विराजमान रहती हैं।।1
रात्रि काल में सुन्दर आखों वाली दिखाई देती हैं और संध्या काल में बुढि़या के रूप में, जिनके दोनों हाथ लटक रहे हैं, गले में मुण्डों की माला है- वे ही त्रिभुवन जननी देवी चण्डिका तुम सबकी रक्षा करें।।2।।
जो प्रलय काल में खटवांग के अगले भाग में पिंगल वर्ण के पह्मयोनि के श्रेष्ठ जटा मण्डल को बाँध कर, मस्तक पर दैत्यों के मुण्डों की माला बना कर, गरूड़ के पंखों द्वारा शिर का मुकुट धारण कर विराजते हैं।। 3
यमराज के महिष के विशाल सींग को देवताओं के रक्त से लिप्त कर उसी सींग को अपने हाथ में धारण करते हैं तथा इस प्रलय काल में आनन्दित होकर कालरात्रि जिनकी वन्दना करती हैं वे ही भैरव तुम सबकी रक्षा करें।।4।।
तीव्र ‘कट-कट’ शब्द ध्वनि करती हुइंर्, नरास्थि को चबाती हुईं, प्रेतों के बीच में जो क्षीण काया भंयकर ध्वनि करती हैं और ‘कलह कह कह’ शब्द से उग्र अट्टाहस करती हैं, डमरू की ‘डिम-डिम’ ध्वनि करती हुईं।। 5
अपने मुख कमल को फैलाती हैं, प्रति क्षण नृत्य करती हैं और इधर-उधर दौड़ती हुई -‘झमम झम झम’ शब्द से बड़बड़ाती रहती हैं वे ही चण्डिका हमारी रक्षा करें।।6।।
जो ‘टण्टट्-टण्टट् टटण्टा मट मटा’ इस प्रकार घोर घण्टा नाद पूर्वक ‘स्फ्रें स्फ्रें स्फ्रें’ करती हैं, दाँतो को पीसती हुईं भयानक रूप से ‘टक टक’ शब्द से अट्हास करती हैं।।6
‘ललह लह लह’ शब्द से उग्र रव करती हुईं तृष्णा युक्त भाव से मुण्ड माला को चबाती रहती हैं और ‘मट मट’ शब्द से प्रचण्ड मुण्ड को चबाती हैं, वे ही देवी हम सबको पवित्र करें।।7।।
जो प्रलय काल में बाएं कान में चन्द्रमा, दाएं कान में सूर्य मण्डल, कण्ठ में नक्षत्रें का हार, प्रकाण्ड विकट जटा जूट में मुण्ड माला और कन्धे पर नागेन्द्र ध्वज समूह एवं ब्रह्म कंकाल भार धारण किए रहती हैं, वे ही कल्याण दायिनी भद्र काली हमारे भय को दूर करें।।8।।
जिनके शिर पर एक वेणी सदा तैलाक्त रहती है, कानों मे सीसक से बनी कर्णिका हैं, एक लौहाभूषण द्वारा जो अपने चरण कमलों को शोभा युक्त करती हैं, नग्न होकर गर्दभ पर चढ़कर इस जगत का जो ग्रास करती हैं।। 9
जो जवा पुष्पों के कर्णापूरों की इधर-उधर वर्षा करती रहती हैं, जो अपनी दीर्ध भुजा को ऊपर उठाकर ध्वजा फहरा रही हैं, वे देवी आप ही हैं।। 10।।
युद्ध के खड्ग द्वारा वीरों के कटे हुए रक्त पूर्ण मुण्डों की माला सिर में बांधकर, भुजा द्वारा ध्वज को फहराती हुईं।।11
तुम श्मशान में प्रवेश करती हो। रात्रि काल में स्थूल जघन, कमर में सर्पो से बनी करघनी, शूलधारी चन्चल हाथ, मधु रूधिर पान से मत्त आरक्त नैत्र हो कर तुम असंख्य भूतों के साथ घूमती फिरती हो।।12
हे देवि! संसार के प्रलय काल में दृष्टा भीषण तुम्हारे इसी मुख मण्डल में आधे क्षण के ही भीतर-भीतर यह सारा विश्व समा जाता है।।13
तुम्हारा यह मुख मण्डल नर रक्त वसा परिव्सात होकर धुएं के समान धूम्र वर्ण हो जाता है।।14
तुम्हीं शव शैय्या पर शयन करने वाली कापालिनी काली हो, तुम्हीं योग मुद्रा योगिनी हो, तुम्हीं रक्ता ऋद्धि, तुम्हीं कुमारी, तुम्हीं मृत्यु भय नाशिनी और तुम्हीं शिवा चण्ड घण्टा हो।।15।।
धूमावती का यह माला मंत्र बड़ा कल्याणकारी है, सभी आपत्तियों को दूर करने वाला है।।16
जो साधक भक्ति से इसका पाठ करता है, वह अभीष्ट सिद्धि को प्राप्त करता है।।17।।
महान विपत्ति में, महा भयानक दशा में, महान रोग से पीडि़त होने पर, महान युद्ध होने पर, शत्रु के उच्चाटन में, मारण आदि षट् कर्मों में तथा प्राणियों को मोहित करने में हैं।18
देवि! इस स्तोत्र का पाठ करें, तो सभी बातों में सफल होगा। देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, पन्नग, सिंह, व्याघ्र आदि सभी इस स्तोत्र को स्मरण करने से ही दूर से दूर भाग जाते हैं। फिर मनुष्य आदि सामान्य जीवों की क्या गणना।।19-20।।
हे देवेशि! इस स्तोत्र के द्वारा पृथ्वी पर कौन सी बात सिद्ध नहीं होती। हे देवि! इससे सब प्रकार से शान्ति होती है और अन्त में मोक्ष प्राप्त होता हैं।।21।।
धूमावती माला मंत्र का नित्य11 पाठ धूमावती क्रिया शक्ति बाहु के समक्ष संकल्प के साथ आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में करने से शत्रु बाधा पूर्णता से समाप्त होती ही है। भौतिक जीवन में आ रही निरन्तर शत्रुबाधा से निजात मिलती है। साधाक के शरीर में विशेष ऊर्जा का संचार प्रवाहित होना प्रारम्भ होता है जिससे शत्रु स्वतः ही साधक से भयभीत होकर नष्ट हो जाते हैं। उसके किसी भी कार्य में बाधा नहीं उत्पन्न करते हैं। साधक को जीवन में भय से मुक्ति मिलती है और निर्भय की स्थिति प्राप्त होती है।
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