जहां कालाध्यक्ष सूर्य है, वहां कालकंठ, कालभक्ष शिव हैं, जो काल को अपने अधीन कर महाकाल बन गये, काल-चक्र जीवन का समय चक्र है और कालरात्रि वह रात्रि बेला है, जिसमें साधक काल-चक्र को अपने अधीन कर सकता है, शिव को प्रसन्न कर सकता है, काल भैरव का अभय वर प्राप्त कर सकता है और काल की देवी काली की सम्पूर्ण सुकृपा प्राप्त कर सकता है, जिससे उसके काल-चक्र में अर्थात् जीवन-चक्र में स्थितियां अनुकूल बनती है, कालहरणम् अर्थात् उसके समय का नाश नहीं होता, अपितु वह काल को अपने अधीन कर देता है।
काली का शाब्दिक रूप से अर्थ है-शिव पत्नी पार्वती, और काल भैरव का तात्पर्य है शिव, इन दोनों तत्वों से ही यह काल-चक्र चलता है, जिसके जीवन में शिव-तत्व और शक्ति-तत्व नहीं है, उसका जीवन एक फुस्स सा है, मानों गुब्बारे में केवल हवा ही हवा भरी है जो बाहर से बड़ा दिखाई देता है, थोड़ी सुई चुभाई कि हवा निकल गई और वास्तविक स्थिति में आ गये, यह तो जीवन नहीं है, जीवन में होना चाहिए मूल रूप से शिव भाव, अर्थात् शुभ, मांगलिक, सौभाग्य, प्रसन्नता, समृद्धि, स्वस्थता, शिवम् अर्थात् कल्याण, मंगल और गुरु की पूर्णता है- शिव लोक, जहां यह सब भाव प्राप्त होते हैं, तथा काली तत्व है- तेज, अग्नि, संहार, क्षमता, तीव्रता।
किसी भी प्रकार के यज्ञ में, साधना में, ग्रह प्रवेश में, भूमि पूजन में भैरव की पूजा अवश्य ही की जाती है, जब तक भैरव पूजन नहीं हो जाता जब तक मूल यज्ञ का प्रारम्भ नहीं होता क्योंकि भैरव रक्षा कारक देव है और विश्व के अंश स्वयं शिव स्वरूप और महाशक्ति काली के सेवक है। इसीलिए इन्हें काल भैरव का नाम दिया गया है। किसी भी गांव में चले जाइये कोई मन्दिर अथवा पूजा स्थान होगा या नहीं लेकिन भैरव का मन्दिर अवश्य ही होगा। जन-जन के देवता के रूप में भैरव की ख्याति है, करोड़ों-करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है, और यह आस्था तभी बन सकती है, जब प्रत्यक्ष प्रमाण प्राप्त होते रहे है, लोगों के कार्य सिद्ध होते हैं।
काल का तात्पर्य जीवन की दुर्भिक्षतायें रोग-शत्रु पीड़ा, कलह अनेक-अनेक चिंतायें और जीवन में हर समय मृत्यु रूपी स्थितियां इन सभी के संहार के लिये केवल और केवल भैरव ही सक्षम है और ये तुरन्त फलदायक और शीघ्र सफलता देने में सहायक है। अन्य साधनाओं में तो साधक को फल जल्दी या विलम्ब से प्राप्त हो सकता है, परन्तु इस साधना का फल तो हाथो हाथ मिलता है, इसलिए कलियुग में गणपति, चण्डी, भैरव और शिव की साधना पूर्ण रूप से महत्वपूर्ण मानी गयी है।
प्राचीन समय से शास्त्रों में यह प्रमाण बना रहा है कि किसी भी प्रकार का यज्ञ कार्य हो तो यज्ञ की रक्षा के लिए भैरव की स्थापना और पूजा सर्वप्रथम आवश्यक है, किसी भी प्रकार की पूजा हो उसमें गणपति की स्थापना की जाती है, तो साथ ही साथ भैरव की उपस्थिति और भैरव की साधना भी जरूरी मानी गयी है, क्योंकि ऐसा करने से दसों दिशाऐं आबद्ध हो जाती है और उस साधना में साधक को किसी प्रकार का भय व्याप्त नहीं होता और न किसी प्रकार का उपद्रव या बाधाएं आती है, ऐसा करने पर साधक को निश्चय ही पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।
इस हेतु पूज्य गुरुदेव ने अपने समस्त शिष्यों और साधकों के लिए उज्जैन में पितृ पक्ष में काल भैरव महामृत्युंजय साधना शिविर का आयोजन किया है। जिससे सभी शिष्यों साधकों के पितरों की मुक्ति प्रदान करने की प्रक्रिया तर्पण श्राद्ध कर्म क्षिप्रा नदी में सम्पन्न कराया जायेगा। आप सभी को इस शिविर में आना ही है और अपने सद्गुरु के सानिध्य में मंत्र जाप, साधना, दीक्षा प्राप्त कर अपने आने वाले भविष्य को शिवस्वरूप गौरीमय उज्ज्वल और आनन्दायक बना सकेगे।
महाकाल की पावन भूमि व सदाशिव महादेव के ज्योतिर्लिंग व नर्मदा तथा क्षिप्रा नदी भक्तों को चेतना शक्ति से आपूरित करती है ऐसी दिव्य मनोरथ पूर्ति उज्जैन की भूमि पर स्वामी सच्चिदानन्द जी महाराज के दिव्य आशीर्वाद और सद्गुरुदेव के सानिध्य में पितृ मुक्ति श्राद्ध कर्म प्रक्रिया सम्पन्न होगी। आत्म शुद्धि, देह विकार दोष निवारण हेतु कालभैरव मंदिर प्रागंण में हवन पूजन, पूर्व जन्मकृत दोष व सर्व पितृ दोष निवारण तर्पण तथा पूर्वजों के पिण्ड दान व श्राद्ध की प्रक्रिया क्षिप्रा नदी तट पर सम्पन्न होगी। महाकाल मंदिर प्रांगण में प्रत्येक साधक द्वारा गुरुदेव के सानिध्य में स्व-रूद्राभिषेक किया जायेगा जिससे कि प्रत्येक साधक मृत्युंजय शक्ति से आपूरित होकर शिव-गौरी युक्त बन सकेंगे।
वे ही पंजीकरण करवायें जो भगवान महादेव की अमृतरूपी चेतना और गौरी स्वरूपा लक्ष्मी शक्ति से अपने आप को आपूरित करना चाहते है। जो अपनी स्वयं की बुद्धि-ज्ञान और विवेक से जीवन में कर्मशील रहते हैं। अपने स्वयं के निर्णय से ही जीवन में क्रियाशील रहते है।
19 सितम्बर 2014 शुक्रवार को मध्यान्त् काल तक उज्जैन पहुँचना अनिवार्य है।
19 सितम्बर को सांध्य बेला में प्राचीन काल भैरव मंदिर प्रागंण में भैरव शक्ति साधना पूजन हवन सम्पन्न होगा।
20 सितम्बर क्षिप्रा नदी में स्नान, सर्व पितृ दोष निवारण हेतु गुरुदेव द्वारा तर्पण व साधको के पूर्वजों की पूर्ण मुक्ति हेतु श्राद्ध कर्म की क्रिया होगी।
21 सितम्बर कालसर्प दोष मुक्ति साधना कर अपने जीवन को दीर्घायु आरोग्य युक्त, धन वैभव, यश-लक्ष्मी से आपूरित हेतु प्रत्येक साधक द्वारा रूद्राष्टाध्यायी नवग्रह और शिव शक्ति सम्पुटित मंत्रों से युक्त महामृत्युंजय महाकालेश्वर स्व रूद्राभिषेक सम्पन्न होगा।
नित्य प्रतिदिन योगा, प्राणायाम, मंत्र-जप, साधना पूजा, प्रवचन, भजन आरती सम्पन्न होगी। साथ ही दोनों समय सात्विक प्रसाद और भोजन की व्यवस्था गुरुदेव द्वारा प्रदान की जायेगी।
महाकाल मंदिर प्रांगण उज्जैन में ही DORMITORY अर्थात् हॉल में सामूहिक रूप से ठहरने और विश्राम की व्यवस्था की गई है जिससे पारिवारिक और आत्मिक वातावरण बन सकें।
पूर्व में ही ऐसी व्यवस्था करके आये कि 21 सितम्बर को सांध्य आरती के बाद सीधे घर को प्रस्थान कर सकें जिससे की गुरुदेव के सानिध्य में पवित्र दिव्य अलौकिक शक्ति पीठो पर जो उक्त क्रियायें सम्पन्न की है उसका पूरा लाभ आप को जीवन भर अक्षुण्ण बना रहे।
पंजीकरण अनिवार्य हैं। पंजीकरण शुल्क: 5100 (Rs. Five Thousand One Hundred Only) जिससे कि आप ही से सम्बन्धित साधना सामग्री मंत्र सिद्ध चैतन्य की जा सकें।
प्रत्येक प्रक्रिया में दीक्षा न्यौछावर सम्मिलित नहीं है।
सम्पर्कः- जोधपुर कार्यालय- 0291-2517025, 0291-2517028, 07568939648, 08769442398
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