इस कालरात्रि के अवसर पर जो अद्वितीय दुर्लभ क्षण उपस्थित हो रहे हें, उन क्षणों में विशेष मंत्रों द्वारा पूजन सम्पन्न करें तो निश्चय ही साधक में श्रेष्ठता आती है। वह अद्वितीय सम्पन्नता प्राप्त करता है और निश्चय ही वह महागणपति और महालक्ष्मी को अपने अनुकूल बना लेता हे। साधक के लिए जितना आध्यात्मिक पक्ष महत्वपूर्ण है, उतना ही भौतिक पक्ष भी। भौतिक पक्ष की पूर्णता किये बगैर वह साधना में पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाता।
पूजन सामग्री चेतन्य साधना साम्रगी के साथ रोली, मौली, अगरबत्ती, केसर, कपूर, सिन्दूर, पान, सुपारी, फल, पुष्प तथा पुष्पमाला, गंगाजल, लोंग, इलायची, पंचामृत, यज्ञोपवीत, वस्त्र, मिठाई, दीपक, नारियल, आसन, पंचपात्र।
सर्वप्रथम आप स्नान कर शुद्ध पीले वस्त्र धारण करें तथा उत्तर दिशा की ओर मुंह कर पीले आसन पर बेठें, सामने बाजोट पर पीला कपडा बिछा लें एवं एक थाली में कुंकुम से अष्टदल कमल बनाकर उसे बाजोट पर रख कर उसमें ‘ऐश्वर्य महालक्ष्मी यंत्र’ स्थापित करें। यंत्र के पूर्व में श्री वृद्धि हेतु “लघु नारियल’ पश्चिम में “श्रीफल’ उत्तर दिशा में “गोमती चक्र’ दक्षिण दिशा में लक्ष्मी स्वरूप धातु निर्मित रूपया’ को स्थापित करें तथा स्वर्णावती महालक्ष्मी माला को यंत्र के ऊपर रख दें। यंत्र के मध्य में “ऊँ धनदाये नमः’ मंत्र पांच बार बोल कर अष्टगंध से पांच बिन्दियां लगावें, फिर अपने मस्तक पर तिलक करें। इसके बाद निम्न प्रकार से पूजन प्रारम्भ करें।
बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से अपने ऊपर जल छिडकें।
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचिः॥
दाहिने हाथ में जल ले लें, उसमें अक्षत ओर पुष्प मिला लें, फिर निम्न संदर्भ का उच्चारण करें।
ऊँ विर्ष्णु विर्ष्णु विर्ष्णु: श्री मदभगवतो महापुरूषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्थ अद्य श्री ब्राह्मणो द्वितीय परार्द्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वमतन्वन्तरे जम्बूद्वीपे भारतवर्ष अस्मिन पवित्र क्षेत्रे गुरु वासरे ( दिन का नाम लें ) निखिल गोत्रोत्पन्नोऽहं ( अपना गोत्र बोलें ) अमुक लें ) निखिल गोत्रोत्पन्नोऽहं ( अपना गोत्र बोलें ) अमुक शर्माऽहं ( अपना नाम बोलें ) यथा मिलितोपचारे: श्री महालक्ष्मी प्रीत्यर्थ तदंगत्वेन गणपति पूजनं च करिष्ये।
फिर जल को निर्माल्य पात्र में छोड दें।
चैतन्य यज्ञोपवित को दोनों हाथों में लेकर तीन बार गायत्री मंत्र बोलकर गले में धारण करें।
इसके बाद कलश को जल से भर दें ओर अपनी बायीं ओर रखें। उसमें मोली बांधे। उसमें गंध, अक्षत, पुष्प डालकर, मौली बांध कर नारियल रख दें। कुंकुम, अक्षत तथा पुष्प चढावें। धूप, दीप से पूजन कर प्रार्थना करें-
गंगे च यमुने चेव गोदावरी सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू।
पूर्वे ऋग्वेदाय नमः दक्षिणे यदुर्वेदाय नमः पश्चिमे
सामवेदाय नमः उत्तरे अर्थर्वदेदाय नमः कलशमध्ये
अपाम्पतये वरूणाय नमः प्रसन्नो भवा वरदो भव,
अनया पूजया वरूणाधावाहिता देवता प्रीयन्तां न मम।
ध्यान- दोनों हाथ जोड़कर भगवान गणपति का ध्यान करें।
ऊँ गणानां त्वां गणपति (गूं) हवामहे प्रियाणां
त्वां प्रिययति ( गूं) हवामहे वसो मम। आहमजानि
गर्भधम त्वमजासि गर्भधम ऊँ गं गणपतये नमः
ध्यानं समर्पयामि नमः
एक पुष्प थाली पर रखें।
पाद्यं अर्ध्य समर्पयामि नमः
तीन आचमनी जल गणपति पर चढावें।
पंचामृत स्नान दूध, दही, घी, शहद और शक्कर
मिलाकर स्नान करावें।
पंच नद्यः सरस्वती मपियन्ति सस्त्रोतस:।
सरस्वती तु पंचन्द्या सोऽदेशेऽभवत् सरित।
इसके बाद “लघु नारियल’ पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर सामने स्थापित करें।
इसके बाद वस्त्र समर्पित करते हुए कुंकुम, केसर या चन्दन से तिलक लगावें, अक्षत, पुष्प चढ़ावें तथा धूप, दीप दिखाकर नेवेद्य, फल तथा ताम्बूल चढ़ाकर प्रार्थना करें।
नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः।
नमस्ते रूद्ररूपाय करिरूपाय ते नमः॥
विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे।
भकक््तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक॥
ऊँ गं गणपतये नमः
निर्विघ्नमस्तु। निर्विघ्नमस्तु। निर्विध्नमस्तु।
ऊँ तत् सद् ब्रह्मार्पणमस्तु। अनेन कृत पूजनेन सिद्धि
बुद्धि सहित: श्री भगवान गणाधिपति: प्रीयन्ताम।
एक आचमनी जल निर्माल्य पात्र में छोड दें।
इसके पश्चात् पंचोपचार गुरु पूजन सम्पन्न करें, लक्ष्मी कुबेर गणपति चित्र पर सुगन्धित पुष्प माला अर्पित करें।
सामने चोकी पर थाली में ऐश्वर्य महालक्ष्मी यंत्र को श्रीफल के साथ स्थापित करें और शांत, प्रसन्न चित्त होकर पूजन आरम्भ करें।
ध्यान- दोनों हाथ जोडकर प्रार्थना करें।
पदमासनां पद्मकरां पदममाला विभूषितां,
क्षीर सागरसंभूतां हेमवर्ण समप्रभां।
क्षीरवर्ण समं वस्त्रं दधानां हरिवल्लभां,
भावने भक्तियोगेन भार्गवीं कमलां शुभाम्॥
श्री महालक्ष्म्ये नमः ध्यानं समर्पयामि।
आवाहन- दोनों हाथों में थोडे पुष्प लें-
सर्वमंगल मांगल्ये विष्णु वक्ष: स्थलालये।
आवाहयामि देवि! त्वां क्षीरसागर संभवे॥
श्री महालक्ष्म्ये नमः आवाहनं समर्पयामि।
आसन- थाली पर पुष्प आसन के लिए रखें-
सदा सर्वत्र संस्थाने सर्वाधारे महेश्वारि।
सर्व तत्वमयं दिव्यं आसन प्रतिगृहयताम॥
श्री महालक्ष्म्ये नमः पुष्पासनं समर्पयामि।
पाद्य – दो आचमनी जल चरण धोने के लिए चढावें-
पाद्यमाद्यन्त शून्यार्य वेद्याये वेदवादिभि:।
तुभ्यं दास्यामि पदमाक्षि! सुगन्धिं निर्मल जलं॥
श्री महालक्ष्म्ये नमः पाद्यं समर्पयामि।
अर्घ्य- तीन आचमनी जल हस्त प्रक्षालन के लिए चढावें-
अर्घहीने गृहाणेदम् अर्ध्यमष्टांग संयुतं।
अम्बाखिलानां जगताम् अम्बुजासन संस्थितां॥
श्री महालक्ष्म्ये नमः अर्घ्यं समर्पयामि।
आचमन- मुख प्रक्षालन के लिए आचमनी जल चढावें।
गंगातोयं समानीतं सुवर्णकलशे स्थितं।
अच्यम्यतां महाभागे। भवानि भवभामिनि॥
श्री महालक्ष्म्य नम: आचमनीयं जलं समर्पयामि।
स्नान- स्नान के लिए ऐशवर्य महालक्ष्मी यंत्र और श्रीफल पर शुद्ध जल चढावे।
साध्वीनामग्रतो गण्ये साधुसंघ समागते।
सर्व तीर्थमयं तोयं स्नानार्थ प्रतिगृहयताम॥
श्री महालक्ष्म्ये नमः, स्नानीयं जलं समर्पयामि।
दूध, दही, घी, शहद् और चीनी मिलाकर स्नान करावें-
मध्याज्य शर्करायुक्त दधिक्षीरसमन्वितं।
पंचामृतं गहाणेदं स्नानर्थ जगदम्बिके।।
श्री महालक्ष्म्ये नमः शुद्ध जल स्नानं समर्पयामि।
इसके बाद ऐश्वर्य महालक्ष्मी यंत्र ओर श्रीफल को किसी स्वच्छ कपडे से पोंछ कर किसी दूसरी थाली में स्वस्तिक बनाकर स्थापित कर दें।
वस्त्र- वस्त्र स्वरूप में मौली चढावें।
ऊँ देहम् पूर्णम् दिव्यं कंचुकं चर मनोहरं।
देवि! त्वं च सर्व सौभाग्यदायकम्॥
श्री महालक्ष्म्ये नमः वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि।
गन्ध – कुंकुम, केशर या चन्दन का तिलक लगावें।
कर्पुरागरू कस्तूरी कुंकुमादि समन्वितं।
गन्धं ददाम्यहं देवि! सर्वमंगलदायिनि॥
श्री महालध्ष्म्ये नमः गन्धं समर्पयामि।
अक्षत- बिना टूटे हुए चावल चढ़ावें।
अक्षतान धवलान देवि! धनं-धान्यं शुभान।
हरिद्रा कुंकुमोपेतान गृहाण करूणार्णवे॥
श्री महालक्ष्म्ये नमः अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्प- विविध पुष्प एवं पुष्प हार पहनावें।
पदम शंख जपा कुसुमैः पारिजातैश्च चंपके:।
पूजयामि प्रसीद त्वं पदमाक्षि! भुवनेश्वारि॥
श्री महालक्ष्म्ये नमः पुष्पाणि समर्पयामि॥
धूप- सुगन्धित धूप, अगरबत्ती लगावें।
धूपं ददामि ते रम्यं गुग्गुलागरूमिश्रितं।
गृहाणेदं महादेवि भक्तानाभिष्ट दायिनि॥
श्री महालक्ष्म्य नमः धूपम् आघ्रापयामि।
दीप- दीपक पर कुंकुम अर्पित करें।
आज्यवर्ति समायुक्त ज्योतिर्मय शुभंकर।
मंगलायतनं दीपं गृहाण परमेश्वारि॥
श्री महालक्ष्म्ये नमः दीपं दर्शयामि।
नेवेद्यं- दूध की मिठाई का भोग लगावें।
नानाविधानि भक्ष्याणि व्यंजनानि हरिप्रिये।
यथेष्टं भुदक्ष्व नैवेद्यं षद्रसं च चतुर्विधम॥
श्री महालक्ष्म्ये नमः नेवेद्यं निवेदयामि।
तत्पश्चातू निम्न मंत्रोच्चारण करते हुए तीन
आचमनी जल निर्माल्य पात्र में डालें।
ऊँ प्राणाय स्वाहा। ऊँ अपानाय स्वाहा। ऊँ व्यानाय
स्वाहा। ऊँ उदानाय स्वाहा। ऊँ समानाय स्वाहा।
नेवेद्यान्त आचमनीयं जलं समर्पयामि।
फल- कोई भी फल जो मौसम के अनुकूल हो चढ़ावें।
इदं फल मया देवि! स्थापितं पुरतस्तव।
तेन मे सफला वाप्तिः गृहाण जगदम्बिके।।
श्री महालक्ष्म्ये नमः फलानि समर्पयामि।
ताम्बूल- लोंग, इलायची, आदि मिलाकर पान समर्पित करें।
पूगी फलं महद्दिव्यं नागवलली दलैरय्युतं।
एलाचूर्णादि संयुक्त ताम्बूलं प्रतिगृहयताम॥
श्री महालक्ष्म्य नमः ताम्बूलं समर्पयामि।
दक्षिणा- यथा योग्य दक्षिणा समर्पित करें।
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो:।
अनन्त पुण्य फलदं अतः शान्ति कुरूष्व मे॥
श्री महालक्ष्म्ये नम: दक्षिणा द्रव्यं समर्पयामि।
पंच दीपों से श्रद्धापूर्वक आरती करें
ऊँ न तत्र सूर्योभाति न चअन्द्रतारकं नेमा विद्युतो
भान्ति कृतोऽयमग्नि:। तमेव भान्तं अनुभाति सर्व
तस्यभासा सर्व मिदं विभाति श्री महालक्ष्म्ये नमः
नीराजनं समर्पयामि।
जल आरती – तीन बार आचमनी से जल लेकर दीप क चारों ओर घुमाकर निर्माल्य पात्र में छोड दें-
ऊॅं द्यो: शान्तिरन्तरिक्ष (गूं) शान्तिः पृथिवी
शान्तिराप: शान्ति रोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्ति
विंश्वे देवा: शान्ति: ब्रह्म शान्ति: सर्व (गूं) शान्ति:
शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि।
दोनों हाथ जोड़कर जिस प्रयोजन हेतु ऐश्वर्य महालक्ष्मी पूजन किया है, उसकी प्रार्थना करें-
नमो देव्ये महादेव्ये शिवायै सततं नमः।
नमः प्रकृत्ये भद्राये नमः नमस्करोमि।
इसके साथ ही सम्पूर्ण पूजा संपन्न होती हैं इसके बाद लक्ष्मी आरती, गुरूआरती, समर्पण स्तुति, शिव आरती व दुर्गा आरती अवश्य संपन्न करे।
दोनों हाथ में पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें तथा विग्रह पर चढ़ा दें।
नाना सुगंध पुष्पाणि यथा कालोदभवानि च।
पुष्पांजलिर्मया दत्ता गृहाण जगदम्बिके।।
श्री महालक्ष्म्ये नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि।
समर्पण- सुफल की प्राप्ति हेतु निम्न मंत्रोच्चारण करें-
ऊँ तत्सत् ब्रह्मार्पणमस्तु अनेन कृतेन पूजाराधन
कर्मणा श्री महालक्ष्मी देवता स्वरूपिणी प्रीयन्ताम।
एक आचमनी जल पूजा की पूर्णता हेतु छोड़ दें।
साधना को सारी सामग्री कार्तिक पूर्णिमा पर्व पर गुरु चरणों में अर्पित कर गुरु का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त करें जिससे की जीवन में अक्षण्णु रूप से लक्ष्मी आपके घर में स्थापित रह सकें।
वर्ष का सर्वश्रेष्ठ पर्व दीपावली होता है जो प्रत्येक साधक द्वारा हर्ष, उल्लाश और आनन्द से मनाया जाता है। क्योंकि प्रत्येक की इच्छा यही होती है कि वह अपने सांसारिक जीवन में पूर्ण अनुकूलता और श्री सम्पन्न हो इस हेतु किन्हीं पांच पत्रिका सदश्य बनाने पर आपको दीपावली पर्व पर स्वर्णावती महालक्ष्मी शक्तिपात दीक्षा और साधना सामग्री उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी जिससे आप दीपावली पर्व पर सम्पन्न कर अपनी मनोकामना को पूर्ण कर सकेंगे। यह अद्वितीय दीक्षा आप फोटो के माध्यम से भी प्राप्त कर सकते है।
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