सामान्य रूप से यह मान्यता है कि शारदा विद्या की देवी है और विद्या अध्ययन में श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए ध्यान करना चाहिए। वास्तव में यह एक गलत अवधारणा है। विद्या का स्वरूप, विश्व व्यापार संचालन, वार्ता-विद्या, प्रशासन विद्या, न्याय शास्त्र और दण्ड नीति विद्या, ज्योतिष, कर्मकाण्ड, वैचारिक शक्ति, स्मरण में निहित है। ज्ञानमय जीवन मनुष्य का जीवन है और अज्ञान मय जीवन पशु का जीवन है। मनुष्य के जीवन में शारदा विद्यमान रहती है, वह उसे अपनी अधिष्ठात्री बनाकर अपने जीवन के पशुत्व को समाप्त कर सकता है।
मानव में एक विशेष प्रकार की ऊर्जा और चुम्बकीय शक्ति है और इस शक्ति का मुख्य केन्द्र मनुष्य की आंखे और उंगलियों के सिरे होते हैं। इस आकर्षण शक्ति को ही सम्मोहन शक्ति भी कहते हैं। संसार में जितने भी पदार्थ हैं या जितने भी चैतन्य स्वरूप है, वे सभी किसी न किसी के आकर्षण से बंधे हुए हैं प्रत्येक नर सजातीय मादा से बंधा हुआ है और उसके प्रति आकर्षण अनुभव करता है। इसी आकर्षण शक्ति के सहारे ग्रह नक्षत्र एक-दूसरे से बंधे हुए हैं और इस परस्पर आकर्षण शक्ति का अध्ययन और एक दूसरे पर पड़ने वाले प्रभाव को ज्योतिष विज्ञान कहा गया है।
प्रत्येक व्यक्ति में यह चुम्बकीय शक्ति होती है और जिसमें यह चुम्बकीय शक्ति ज्यादा होती है, वह दूसरों को प्रभावित करने की ज्यादा क्षमता अपने आप में अनुभव करता है। इसके विपरीत जिस व्यक्ति के व्यक्तित्व में चुम्बकीय शक्ति न्यून होती है, वह दूसरों को सामान्य स्तर पर ही प्रभावित कर पाता है।
सद्गुरुदेव ने आह्वान किया कि जिस समाज संस्कृति में हम रह रहे हैं उसमें अग्रेजी नववर्ष का प्रारम्भ महत्वपूर्ण है और नववर्ष के प्रारम्भ में गुरु शिष्य का मिलन अवश्य होना चाहिये, नववर्ष के शुभ अवसर पर गुरु अपने शिष्य को विशेष शक्तिपात दीक्षा प्रदान करे जिससे उसे पूरे वर्ष निरन्तर ऊर्जा प्राप्त होती रहे। इस बार सद्गुरुदेव की प्रेरणा से और भी विशेष अद्वितीय शक्तिपात दीक्षा है सूर्य संक्रान्ति शारदाम्बा शक्ति दीक्षा जो साधक और शिष्य के सिद्धियों के द्वार खोल देती है क्योंकि साधक के जीवन का लक्ष्य ही साधना सम्पन्न कर गुरु से शक्तिपात ग्रहण कर जीवन में सिद्धि प्राप्त करना है। गुरु का कार्य शिष्य को शिव और शक्ति युक्त करते हुए उसे संहार कार्य और सृष्टि कार्य दोनों से युक्त करना है। गुरु कृपा और साधक का कर्म मूलतः एक ही शक्ति है इस प्रकार एक और अणु तथा दूसरे ओर निहित है वही कर्म रूप में अभिव्यक्त होकर अणु को अग्र गति में सहायता पहुंचाती है।
नववर्ष का उपहार नवीनता का संचार करना और जीवन में नवीन शक्ति भरना गुरु का कार्य है। शिष्य का कार्य तो विशुद्ध मन से अहंकार रहित होकर गुरु के समीप बैठ जाना है। तब उसे ज्ञान शक्ति प्राप्त होती है। इसी से जीवन में पूर्णता प्राप्त हो सकेगी।
पांच पत्रिका सदस्य बनाने पर ‘सूर्य संक्रान्ति शारदाम्बा शक्ति दीक्षा’ उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
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