ठीक इसी तरह जीवन की यात्रा में विश्राम का अर्थ है अपने भीतर उतरना। आप किसी भी क्षेत्र में हों, थोड़ा समय इस अंतरयात्रा को जरूर दें। जैसे ही हम अपना थोड़ा समय निकालकर अपने भीतर उतरते हैं तब हमे परमात्मा की अनुभूति होती है। परमात्मा हमारे भीतर की दशा का ही नाम है।
दूसरों को जानना बुद्धिमानी है, स्वयं को पहचानना आत्मज्ञान है- स्वयं को जानकर व समझकर ही हम सफलता की ओर अग्रसर हो सकते हैं। आज हर व्यक्ति भाग रहा है, एक जगह से दूसरी जगह की ओर। व्यक्ति शायद स्वयं को खोज रहा है, क्योंकि उसने स्वयं को खो दिया है। स्वयं के साथ सम्बन्धो को तोड़ दिया है और अब उसे ही खोज रहा है। यदि हम अपने आस-पास के हर व्यक्ति की तरफ ध्यान देंगे, तो तकरीबन सभी में यही बात नजर आयेगी। हर एक व्यक्ति स्वयं को भूलकर एक व्यर्थ की दौड़ में भागता चला जा रहा है। आज आवश्यकता है स्वयं को समझने की, आत्मज्ञान की। स्वयं को समझकर हम परमात्मा की अनुभूति कर सकते हैं। तमाम ऐसे लोग जिन्होंने जीवन में कुछ गौरवशाली कार्य किये हैं, वे सभी स्वयं के अंदर छिपे परमात्मा-बोध को समझने की बात करते हैं। परमात्मा की अनुभूति करने के पश्चात हमें भरपूर आत्मविश्वास व परमआनंद की प्राप्ति होती है।
आत्मविश्वास हमें शांति व शक्ति से जीने के लिये प्रेरित करता है। यहां शांति से तात्पर्य है मन की शांति। शांति के लिये जरूरी है इच्छाओं पर नियंत्रण करना। इसके साथ ही ईश्वर ने जो भी दिया है, उसका धन्यवाद करना एवं उसमें आत्म-संतुष्टि का अनुभव करना। प्रतिदिन सुबह उठते ही सबसे पहले ईश्वर को याद करें या कुछ मिनट मेडिटेशन करें। इससे हमारे मन की शक्ति या दृढ़ संकल्प शक्ति बढ़ती है, इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है और हम किसी भी चुनौती का सफलता पूर्वक समाधान करने में सक्षम हो जाते हैं। रात को सोते समय दिन का आकलन करने की भी आदत हमें डालनी चाहिये।
जब सोने जायें तो पूरे दिन पर प्रकाश डालते हुये देखें कि कौन-सी घटनायें या बात ने हमें व्याकुल रखा, उसके कारण को देखते हुये सब कुछ परमात्मा को समर्पित कर सो जाना चाहिये। शक्ति से तात्पर्य है, अपनी बात पर मजबूत या दृढ़ बने रहना, स्वयं पर भरोसा रखना। हमारी कठिनाई यह है कि जितना भरोसा हमें दूसरों पर है, उतना स्वयं पर नहीं। हम हमेशा यही सोचते हैं कि जो दूसरे लोग हमारी क्षमता योग्यता या दक्षता के बारे में बताते हैं या जैसा वे हमें आंकते हैं, हम उसी पर भरोसा कर लेते हैं। परन्तु यह सत्य नहीं है। हमें चाहिये कि दूसरे जो हमारे बारे में कहते हैं, उन्हें कहने दें, पर हमारी आत्मा हमारे बारें में क्या कहती है? हम अपने आप से क्या कहते हैं? हम कोई काम करते हैं, संभव है, वह दूसरो को अच्छा न लगता हो। सबका अलग-अलग चिंतन है, अलग नजरिया है। चिंतन की इतनी स्वतंत्रता और विविधता है कि कहीं किसी को बांधा नहीं जा सकता।
अगर दूसरों के चिंतन के आधार पर हम अपने आपको देखें तो कभी शांति का जीवन जिया नहीं जा सकेगा। इस दुनिया में उसी को जीने का अधिकार है, जो शक्तिशाली है। विकासवाद या इवोल्युशन का सिद्धान्त भी यही मानता है कि जो शक्तिशाली होता है, वही इस दुनिया में जीता है, जो कमजोर होता है, वह समाप्त हो जाता है। शक्तिशाली वही होता है, जिसे खुद पर भरोसा हो, जो आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो। दूसरों के भरोसे पर जीने वाला कभी शक्तिशाली नहीं होता। उसे दूसरा कभी भी धोखा दे सकता है। इसीलिये कहा गया है कि उन्नत जीवन के लिए हमें अपने मन को जीतने की जरूरत है, हजारों युद्व जीतने से ज्यादा फायदेमंद स्वयं के मन को जीतना है, इसी में परमशांति स्थापित है।
निधि श्रीमाली
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