और मैंने इस बार इस विशेष अर्थ युक्त शब्द को तुम्हारे लिये चुना है, क्योंकि तुम सोते हुये जी रहे हो, नींद की तन्द्रा में अपने पूरे जीवन को व्यतीत कर रहे हो, एक झूठी मृगतृष्णा में, इस जीवन रूपी मरूस्थल में, चारों ओर भटक रहे हो, तुम्हें कोई रास्ता, कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं हो रहा है, निर्मल जल से भरा हुआ सरोवर दिखाई नहीं दे रहा है, जहां तुम अपनी युगों-युगों की प्यास बुझा सको, जहां तुम पूर्ण तृप्ति अनुभव कर सको, जहां तुम विश्राम कर सको।
इसका कारण तुम्हारा तन्द्रा युक्त होना है, तन्द्रा का तात्पर्य, जो पूरी तरह से न तो नींद में हो और न पूरी तरह से जागृत हो, तुम ही नहीं, अधिकांश व्यक्ति इसी तन्द्रा में गतिशील हैं और तन्द्रा में जो स्वप्न तुम्हें दिखाई दे रहे हैं, वे रंगीन तो हैं मगर खोखले और व्यर्थ हैं, आंख खुलने पर जब तुम वास्तविक जीवन में देखने का प्रयास करोगे, तब तुम्हारे सिरहाने मृत्यु खड़ी होगी और थपथपा कर तुम्हें ले जाने के लिए बेताब होगी, उस समय तुम्हारे पास उस मरघट की ओर जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रहेगा, उस मृत्यु को देख भयभीत होने के अलावा तुम्हारे पास कोई चारा नहीं रहेगा, क्योंकि तुमने नींद उस समय खोली जब मृत्यु ने तुम्हें थपथपाया, जब काल ने झकझोर कर जगाने का प्रयास किया, पर उस समय जागना ही अपने आप में बेमानी हो जायेगा, क्योंकि उस समय एक क्षण के लिये जागना होगा, और उस के बाद मृत्यु की गोद में चिर निद्रा में पुनः से जाना होगा।
इसलिये मैं आज सतर्कता से तुम्हें जगा रहा हूं, क्योंकि मैं तुम्हारे स्वभाव से परिचित हूं, तुम्हारे पिछले कम से कम पच्चीस जन्मों से यही चेतावनी देता आया हूं, हर बार तुम्हें यही आवाज दी है, कि जीवन के अंतिम क्षण में जागने की अपेक्षा यदि इस समय जाग जाते हो, तो तुम्हारे पास काफी समय बचा होता है, जीवन को समझने के लिये, गुरु को पहिचानने के लिये और उनके संदेश को अपने जीवन में आत्मसात करने के लिये।
और ऐसा होने पर तुम इस बार-बार के जन्म-मरण से मुक्त हो सकोगे, मेरे संदेश को अपने अन्दर समाहित कर देने से मृत्यु तुम पर झपट्टा मार नहीं सकेगी, अपने आपको मुझ में विलीन कर लेने से जब तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा, तो फिर काल किसके सिरहाने खड़ा होगा? फिर मृत्यु किसके सिर को थपथपायेगी? क्योंकि उस समय तुम्हारा अस्तित्व तो होगा हीं नहीं, उसके सामने तो मैं चट्टान की तरह खड़ा मिलूंगा और उस काल को, उस मृत्यु को मेरे सामने से लौटने के लिये विवश होना ही पड़ेगा।
पर यह तभी हो सकेगा, जब तुम पूरी तरह से जाग सको, पूरी तरह से अंगड़ाई ले कर उठ सको और पूरी क्षमता के साथ मेरी आवाज को, मेरे सन्देश को सुन कर मेरा हाथ थाम सको, मेरे साथ चलने की तैयारी कर सको, क्योंकि मेरे साथ चलने की प्रक्रिया अपने आप में निराली होगी, अपने आप में आनन्ददायक होगी, अपने आप में जीवन्त और सप्राण होगी, क्योंकि मैं तुम्हें हाथ पकड़ कर जिस रास्ते पर ले जाऊंगा, वह अमृत का रास्ता है, जहां बीच में मृत्यु इन्तजार करती हुई नहीं मिलेगी, अपितु अमृत्यु का परमानन्द प्राप्त होगा, मैं तुम्हें उस नये रास्ते से परिचित कराना चाहता हूं, जो अपने आप में तृप्तिदायक है, पूर्णता युक्त है, जिसमें जिन्दगी की सुगन्ध है, प्राणों की हलचल है और जो ब्रह्मानन्द की भीगी फुहार से आप्लावित है।
पर यह सब तुम्हारे जागने पर ही सम्भव है, पिछले पच्चीस जन्मों से मैं हर बार तुम्हें ठोकर मारता रहा हूँ, हर बार तुम्हारे दिल पर आवाज करता रहा हूं, हर बार तुम्हे अपने सीने से लगाने के लिये आवाज देता रहा हूं, हर बार तुम्हें अपनी बांहो में समेट लेने के लिये आमंत्रित करता रहा हूं और तुम मेरी आवाज सुनते भी हो, पर फिर कुनमुना कर रह जाते हो, फिर पत्नी, पुत्र, धन, दौलत के स्वप्नों में खो जाते हो, फिर अपने आप को उस झूठे प्रपंचो में लिप्त कर देते हो और मेरी आवाज, मेरा निमन्त्रण व्यर्थ चला जाता है और फिर तुम भारी और दुःखी मन से अपराध और प्रायश्चित की गठरी सिर पर लादे हुए मरघट में जा कर सो जाते हो और जिनके लिये तुमने अपना जीवन न्यौछावर किया, जिस धन, दौलत के लिये अपने आप को संतापित किया, जिस पुत्र और पत्नी के लिये अपने आप को तिल-तिल करके जलाया, वे तुम्हें मरघट में अकेला छोड़ कर वापिस अपनी दुनिया में, अपने राग रंग में चले आते हैं और तुम टुकुर टुकुर ताकते रह जाते हो।
फिर तुम्हारा जन्म होता है, प्राण तो वही है जो मेरे पास थे, पर उसके ऊपर देह का दूसरा आवरण चढ़ जाता है, फिर तुम मल-मूत्र में लिप्त होकर ऊपर उठते हो, फिर तुम्हारा नया नाम हो जाता है, फिर तुम उसी नींद में, उस तन्द्रा में चलने की तैयारी करते हो, और मैं फिर आवाज देता हूं, फिर तुम्हें ठोंकर मारता हूं, फिर तुम्हें जगाने का प्रयत्न करता हूं, कि तुम इस जन्म-मरण के बार-बार के झंझट से मुक्त हो सको, बार-बार की इस मल मूत्र भरी जिन्दगी से अलग हो सको, पर फिर तुम वैसे ही स्वप्न देखने की कोशिश में प्रयत्नशील हो जाते हो, मैं फिर तुम्हारा हाथ पकड़ता हूं और दो कदम भरने के बाद फिर तुम हाथ छुड़ा कर उसी तन्द्रा में खो जाते हो।
मै हर बार तुम्हें आवाज दूंगा, हर बार तुम्हें ठोकर मारने का प्रयास करूंगा, हर बार तुम्हें चेतावनी दूंगा कि तुम मेरे प्राण, मेरी आत्मा और मेरे मनुआ हो। तुम्हारे शरीर में जो कुछ है, वह मेरा दिया हुआ है, तुम्हारी नाडि़यों में मेरा ही रक्त प्रवाहित है क्योंकि तुमने शरीर भले ही दूसरा धारण कर लिया हो, परन्तु तुम न तो आत्मा को बदल सके हो और न प्राणों में परिवर्तन ला सके हो, क्योंकि ऐसा हो भी नहीं सकता, ऐसा संभव ही नहीं है, क्योंकि मै तुम्हारी आत्मा का तुम्हारे प्राणों का ‘गुरू’ हूं और तुम्हें अमृत के सरोवर तक पहुंचाने के लिये प्रयत्नशील हूं, अमृत्यु के स्वर्णिम द्वार तक ले जाने के लिये प्रयास रत हूं, अमृत की भीगी भीगी फुहार में सरोबार करने के लिये चेष्टारत हूं।
और अगर मैं यह सब कह रहा हूं, तो यह कोई नई बात नहीं है, क्योंकि अपने युग में जीवन्त व्यक्तित्व को पहिचानना अत्यन्त कठिन होता है, जहां सारे लोग नींद में खोये हुये बेसुध से चल रहे हो, वहां सजग और जागते व्यक्तित्व को पहिचानना अत्यन्त कठिन होता है, क्योंकि वह अलग-थलग दिखाई देता है, उसका स्वरूप उसकी आवाज और उसके शब्द कुछ नई अर्थवत्ता लिये हुये होते हैं, क्योंकि वह तन्द्रा में नहीं होता, क्योंकि वह जागृत व्यक्तित्व होता है, परन्तु उस नींद में चलने वाले व्यक्तियों के बीच वह अलग सा दिखाई देता है, उसको पहिचानना कठिन सा होता है, और इसीलिये उसे दो टूक शब्दों में अपनी बात समझाने, अपने व्यक्तित्व को समझाने के लिये प्रयत्नशील होना पड़ता है।
गीता में श्री कृष्ण को भी यही परेशानी आयी थी, सारे लोग भीष्म, द्रोण, युधिष्ठिर अर्जुन आदि सब सोये हुये थे, नींद में ही चलने का प्रयास कर रहे थे, अपने भाई, पिता, दादा, और राज्य के सपनों में ही खोये हुये थे, और तब कृष्ण को दो टूक शब्दों में समझाना पड़ा, कि मैं जागृत और चैतन्य व्यक्तित्व हूं, यह सारा विश्व मुझ में समाया हुआ है तुम सब कुछ छोड़-छाड़ कर मुझ में लीन हो जाओ, अपने आपको समर्पित कर दो, सर्व धर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज, अहं त्वां सर्व पापेभ्यों मोक्षयिस्यामि मा शुचः अर्जुन ! तुम्हें यह सब कुछ, तुम्हारा धर्म, तुम्हारा जीवन तुम्हारे माता-पिता भाई-बहन सम्बन्धी रिश्तेदार सबको छोड़-छाड़ कर मुझ में लीन हो जाना है, मुझ में समर्पित हो जाना है, और मैं तुम्हें इन सब बन्धनों से मुक्त कर ब्रह्मानन्द तक पूर्णत्व तक पहुंचा दूंगा।
जब कृष्ण ऐसा कह रहे थे, तब कोई घमंड की बात नहीं कर रहे थे, अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की बात नहीं थी, क्योंकि बाकी सारे लोग तन्द्रा में थे, नींद में चल रहे थे, मधुर ख्वाब देख रहे थे, और कृष्ण पूरी तरह से जागृत और चैतन्य व्यक्तित्व थे, इसीलिये उनको यह कहना पड़ा, ईशामसीह को भी दो टूक शब्दों में कहना पड़ा कि तुम नींद में गाफिल होकर मुझे गालियां दे रहे हो, मुझे पत्थर मार रहे हो, पर मैं तुम्हारा मन हूं, मैं तुम्हारी आत्मा हूं, केवल मैं ही जागृत व्यक्तित्व हूं, और तुम्हे अमृत्यु के रास्ते पर गतिशील कर सकता हूं, तो यह ईशामसीह का कोई घमंड नहीं था, अपितु अत्यन्त नम्रता पूर्वक अपने जागृत व्यक्तित्व को स्पष्ट करने का प्रयास था, सुकरात को भी यही करना पड़ा, बुद्ध को भी इसी प्रकार से बोलना पड़ा, और तन्द्रा में सोये हुये अपने भिक्षुओ को जगाने के लिये स्पष्ट करना पड़ा कि मैं जो कुछ कह रहा हूं, वह जीवित और जागृत व्यक्तित्व की आवाज है, तुम्हें मेरी उंगली पकड़ कर चेतना युक्त हो कर गतिशील होना है।
और मैं भी तुम्हें यही आवाज दे रहा हूं, यही चेतावनी दे रहा हूं, कि तुम तन्द्रा में आधे सोये हुये और आधे जगे हुये गतिशील हो, तुम्हारे पास पत्नी, दो-चार पुत्र और थोड़ी सी धन दौलत है, और इसी पूंजी में तुम मग्न हो रहे हो, इसी पूंजी के भरोसे पूर्णता की ओर ताक रहे हो, परन्तु यह सब तो केवल स्वप्न है, तुम्हें मैं इसीलिये आवाज दे रहा हूं, क्योंकि यह मेरा कर्तव्य है, क्योंकि मैं तुम्हारा सद्गुरू हूं, क्योंकि मै तुम्हारे कई-कई जन्मों का साक्षीभूत हूं, क्योंकि तुम्हारे शरीर में मेरा ही रक्त दौड़ रहा है, और इसीलिये मुझे इन शब्दों के द्वारा तुम्हें ठोकर मारने के लिये विवश होना पड़ रहा हैं, क्योंकि बहुत थोड़ी सी उम्र तुम्हारे पास बाकी रह गयी है, और यदि इस छोटी सी जिन्दगी में भी तुम पूरी तरह से जागृत नहीं हुये, तो फिर तुम एक बार, फिर उस अमृत से वंचित हो जाओगे, जो जीवन का आनन्द है, उस आनन्द की फुहार से वंचित हो जाओगे, जिसमें भीगने से एक तृप्ति, एक सुख, एक चैतन्यता प्राप्त होती है।
और मैं तुम्हारे इस जीवन का भी साक्षी हूं, तुम्हें किसी प्रकार की चिन्ता करने की जरूरत नहीं है, तुम्हारे पास जितनी भी और जो भी चिन्तायें हैं, वे तुम मुझे दे दो, क्योंकि मैं उन चिन्ताओं से परे हूं, चिन्तायें मुझे परेशान नहीं करती, और तुम्हें मै चिन्ताओ से मुक्त करने की क्रिया बता सकता हूं, तुम्हे तो पूरी तरह से जागना है, पूरी तरह से चैतन्य होना है, पूरी तरह से गतिशील होने की प्रक्रिया प्रारम्भ करनी है, तुम्हारे जीवन के सभी स्वप्न, सभी तृष्णायें सभी समस्याओं परेशानियों और बाधाओं का हल मैं अपने आप निकालूंगा, क्योंकि तुम जैसे भी हो, मुझे प्रिय हो, तुम चाहे कितनी ही कमियों और न्यूनताओं से भरे हुये हो, पर मेरे ही प्राणों के अंश हो, इसलिये तुम्हारी इन सारी कमियों को मैं अपने आप दूर कर लूंगा, क्योंकि जब तुम जाग कर पूरी तरह से मुझमें समाहित हो जाओगे, तो फिर तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा, और जब अस्तित्व ही नहीं होगा, तो फिर चिन्तायें तुममें व्याप्त हो ही कैसे सकेगी।
इसलिये मैं तुम्हें आवाज दे रहा हूं, कि तुम्हें पूरी तरह से जागना है, मैं तुम्हें नाचने की प्रक्रिया सिखा रहा हूं, मैं तुम्हे काव्यमय प्रेममय होने की क्रिया बता रहा हूं, मैं तुम्हे समझा रहा हूं, कि तुम्हारा प्रत्येक क्षण उत्सवमय हो, तुम्हारा प्रत्येक क्षण जीवन्त जाग्रत और चैतन्य हो, तुम्हारी आंखों में एक मस्ती हो, एक आनन्द का स्रोत हो, पूर्णता की जगमगाहट हो।
और इस यात्रा में अब तुम अकेले नहीं रहे हो, क्योंकि मैं इस पूरी यात्रा में, जिन्दगी के अंतिम क्षण तक तुम्हारे साथ हूं, तुम्हारे प्रत्येक उत्सव में, तुम्हारे प्रत्येक आनन्द में मैं भागीदार हूं, आवश्यकता इस बात की है, कि तुम पूरी तरह से मेरे प्रति समर्पित हो सको, आवश्यकता इस बात की है कि तुम पूरी तरह से अपने आप को मुझ में खो सको, मैं तो हर क्षण जीवन्त जागृत व्यक्तित्व की तरह उपस्थित हूं, मैं तो समुद्र की तरह दोनों बांहे फैलायें खड़ा हूं, नदियों को अपनी बांहो में समेटने के लिये, अपने आप में आत्मसात करने के लिये, अपने आप में लीन करने के लिये, जरूरत है, तुम्हें नदी बनने की, जरूरत है, तुम्हें तेजी के साथ आगे बढ़ने की, और जरूरत है समुद्र के अस्तित्व में अपने अस्तित्व को पूरी तरह से मिला देने की।
और अब ज्यादा विलम्ब ठीक नहीं है, अब एक क्षण का भी विलम्ब उचित नहीं है, अब तो पूरी तरह से जागने की जरूरत है, एकदम से चैतन्य हो कर अपने पांवो पर उठ खड़े होने की जरूरत है, एकदम से पत्नी पुत्र धन दौलत के स्वप्नों से अपने आपको अलग करने की जरूरत है, और जरूरत है, कस कर मेरा हाथ पकड़ने की, जरूरत है, हर कदम के साथ मेरे साथ चलने की, जरूरत है, मेरे आनन्द में भीगने की, सराबोर होने की, तृप्त होने की।
और मैं इस जीवन की यह अंतिम आवाज दे रहा हूं, फिर से इस जीवन में तुम्हें झकझोर रहा हूं, इन शब्दों के माध्यम से तुम्हें चेतनायुक्त कर रहा हूं कि तुम मुझे पूरी क्षमता के साथ पहिचान सको, तुम जाग कर मेरे अन्दर के विराट गुरूत्व को जान सको, मेरे अन्दर की पूर्णता को अपने आत्म चक्षु से पहचान सको, और मेरे जीवन्त जागृत विराट व्यक्तित्व में अपने आपको लीन कर सको, पूर्णता के साथ समावेश कर सको, और मेरे साथ अमृतत्व के पथ पर गतिशील हो सको।
मैं हर क्षण तुम्हारे साथ हूं, तुम मेरे मन हो, मेरी आत्मा हो, मेरे प्राण हो, मेरी चैतन्यता हो, और मै तुम्हारा सर्वस्व हूं, तुम्हारी धड़कन हूं, तुम्हारे रोम-रोम से निकलते हुये आनन्द का प्रवाह हूं, तुम्हारा सद्गुरू हूं, तुम्हारे जीवन की पूर्णता और सजीवता, चैतन्यता और सप्राणता हूं, अब यदि इस बार भी पूरी तरह से नहीं मिल सके, समर्पित नहीं हो सके, तो फिर तुम्हारा यह जीवन रेत के ढ़ेर की तरह रह जायेगा, इसलिये तुम्हें जागना है, मुझे पहिचानना है और मुझ में आत्मसात हो जाना है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,