नैमिषारण्य तीर्थ गोमती नदी के तट पर स्थिति है, जहां पर अठ्ठासी हजार ऋषियों ने एक साथ तप किया था। अवध का पूरा क्षेत्र उनकी तप-रश्मियों से तथा भगवान राम के दिव्य चेतना से आपूरित है।
अर्थात् सृष्टि के प्रारंभ में जब केवल अंधकार ही था, न दिन था, न रात थी, न सत् (कारण) था, न असत् (कार्य) था। उस समय केवल एक निर्विकार शिव ही विद्यमान थे। वही अक्षर है, वही सबके जनक परमेश्वर का प्रार्थनीय रूप है तथा उन्हीं से शास्त्र विद्या का प्रर्वतन हुआ है। भगवती श्रुति भी कहतीं हैं कि संसार में जो कुछ भी देखा, सुना जाता है, सभी परमशिव तत्त्व है।
वह परमशिव तत्व ही सर्वत्र समाया है, वही भजनीय तत्त्व है, वहीं मानवीय शक्ति है, वहीं पूजनीय तत्त्व है, वही सगुण है, वही निर्गुण है, वही विश्वरूप है, पूर्ण चैतन्य स्वरूप परम आत्मा है।
गीता में श्री कृष्ण ने कहा है- रूद्राणां शंकरश्चास्मि! परब्रह्म परमात्मा ही रूद्रो (जिनकी संख्या ग्यारह मानी गई है) वे शंकर ही हैं। शिव को ही शंकर कहते हैं। शिव से ताप्तर्य नित्य, विज्ञानानन्दघन परमात्मा से है।
शंकर का ‘श’ आनन्द का बोधक है और ‘कर’ करने वाले के लिये प्रयुक्त होता है। अर्थात् जो प्राणी को आनन्द देने वाला है अथवा उसका आनन्द स्वरूप है, वही शिव है।
शिव सच्चिदानन्द स्वरूप ब्रह्म हैं। वह सूक्ष्म से सूक्ष्म और स्थूल से स्थूल हैं। सारा जगत उन्हीं का रूप है। यह सृष्टि उन्हीं की लीला है। शंकर जन-जन के देवता हैं। उनकी भक्ति से ऋषि-मुनि, देव, दनुज, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर, मनुष्य, पितर, भूत-प्रेत, देवी, अप्सरा तथा सिद्ध पुरूष आदि सभी को अभीष्ट फल की प्राप्ति हुई है। उनकी निष्काम पूजा से अन्तः करण शुद्ध होकर मनुष्य को ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति होती है। सकाम पूजा से भक्त को भोग-ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं।
एकाकी शिव प्रायः योगी रूप में ही प्रकट हुये हैं, शिव योगीराज हैं, योगाधीश्वर हैं। उनका रूप विलक्षण होते हुये भी प्रतीक पूर्ण है। उनकी स्वर्णिम लहराती जटा उनकी सर्वव्यापकता की सूचक है, जटा में स्थित गंगा कलुषता नाश तथा चन्द्रमा अमृत का द्योतक है। गले में लिपटा सर्प, कालस्वरूप है, इस सर्प अर्थात् काल को वश में करने से ही ये मृत्युंजय कहलाये। त्रिपुण्ड, योग की तीन नाडि़यों इड़ा, पिंगला एवं सुषुमना की द्योतक हैं, तो ललाट स्थित तीसरा नेत्र आज्ञा-चक्र का द्योतक होने के साथ ही भविष्य दर्शन का प्रतीक है। उनके हाथों में स्थित त्रिशूल तीन प्रकार के कष्टों-दैहिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक है, तो त्रिपल युक्त आयुध सात्विक, राजसिक, तामसिक तीन गुणों पर विजय प्राप्ति को प्रदर्शित करता है, हाथों में स्थित डमरू उस ब्रह्म निनाद का सूचक है। जिससे समस्त वांगमय निकला है, कमण्डल समस्त ब्रह्माण्ड के एकीकृत रूप का द्योतक है, तो व्याघ्र चर्म मन की चंचलता के दमन का सूचक है, शिव के वाहन नंदी धर्म के द्योतक हैं, जिस पर वे आरूढ़ रहने के कारण ही धर्मेश्वर कहलाते हैं, उनके शरीर पर लगी भस्म संसार की नश्वरता की द्योतक है।
उनकी महिमा अमृत के समान मधुर, अलंकार रहित और वाणी का, तर्कों का और अर्थों का आधार है। समस्त वेदों के सारभूत तथ्य, जगत के प्रति उसकी रक्षा और प्रलय का यदि कोई कारण है, तो वह शिव की इच्छा के अनुरूप है। जो अव्यव रहित हैं। वे उत्पत्ति के भी सहित हैं, बिना शिव की कृपा के संसार की रचना संभव हो ही नहीं सकती, क्योंकि वे ही ब्रह्मा बनकर इस सृष्टि की रचना करते हैं। वे ही विष्णु बनकर इस सृष्टि का पालन करते हैं और वे ही त्रिपुरारी बनकर इस सृष्टि का संहार करते हैं। इसीलिये उनको देवो के देव महादेव कहा जाता है, जिसका कोई न आदि है और न ही कोई अन्त है।
भगवतपाद् शंकराचार्य के शब्दों में जब शिव शक्ति से संयुक्त होते हैं, तभी वे सृजन करने में प्रवृत्त व समर्थ हो पाते हैं। शक्ति के बिना शिव शव के समान ही हैं। भगवान शिव का आधार ही शक्ति है, उनका सम्पूर्ण अस्तित्व शक्ति पर ही आश्रित है। वह शक्ति जिसको भगवती कहा गया है, जिसकी चरण रज कण लेकर ब्रह्मा समस्त सृष्टि की रचना करते हैं, शेष नाग उस चरण रज कण को बड़ी मुश्किल से अपने सहस्त्र शिर पर संभाले हुए है। विष्णु उस चरण रज कण की धूलि अपने पूरे शरीर में लगाए हुये हैं। विश्व की प्रत्येक शक्ति इसी महान शक्ति से उत्पन्न होती है। वे भगवती पार्वती जो शिव की अर्धांगिनी हैं। जो शक्ति स्वरूपा हैं। जिनके साथ पाणिग्रहण सम्पन्न करने के कारण ही भूतनाथ पशुपति एकमात्र जगदीश की पदवी धारण कर पाये।
इसीलिये उस परम शिव को भी अगर कोई पूर्णतः क्रियाशील किये हुये है, तो वह शक्ति ही है। इसी शिव-शक्ति के मिलन दिवस को महाशिवरात्रि कहा गया है। इसी दिन भगवान शिव का पार्वती जी के साथ विवाह सम्पन्न हुआ था। जिस दिन इस सृष्टि में एक महत्वपूर्ण घटना घटित हुयी। इसी रात्रि के क्षण से ही समस्त सृष्टि में ज्ञान का प्रादुर्भाव हुआ था। शिवरात्रि जो आनन्द की रात्रि है, जो मनुष्य के अन्धकारमय व घोर कालिमा युक्त जीवन को प्रकाशवान कर देने की रात्रि है, जो आत्मा को परमात्मा में लीन कर देने की रात्रि है, जो पूर्णता की रात्रि है, जो श्रेष्ठता की रात्रि है, जो शिव-शक्ति के सामञ्जस्य की रात्रि है, जो शिवत्व को प्राप्त कर लेने की रात्रि है और ऐसे शिवत्व और शक्तित्व को प्राप्त कर लेना ही तो जीवन का परम सौभाग्य है, परम आनन्द है, जीवन की सर्वोच्चता है।
यह सर्वोच्चता, यह आनन्द, यह सौभाग्य प्राप्त हो सकता है, महाशिवरात्रि दिवस पर शिव-शक्ति की चेतना को आत्मसात कर। क्योंकि शिव-शक्ति स्वरूप सभी मनोकामनाओं की पूर्णता के द्योतक हैं। जिस दिन जीवन को समस्त स्वरूपों में पूर्ण सम्पन्न और रस युक्त बनाया जा सकता है।
वर्ष का सर्वश्रेष्ठ महापर्व भगवान सदाशिव महादेव और माता गौरी के परिणय दिवस महाशिवरात्रि पर्व ही है। यह दिवस सृष्टि के निरन्तर वृद्धि का दिव्यतम स्वरूप है और ऐसे ही देवमय स्वरूप को साधक द्वारा जीवन में पूर्ण रूपेण जीवन्त जाग्रत करने हेतु ऐतिहासिक आध्यात्मिक सर्व स्वरूप में देवालयों से युक्त लखनऊ (उ-प्र-) में 23-24 फरवरी को विश्वनाथ प्रणित मन कामेश्वर पुरूषोत्तम शक्ति युक्त महाशिवरात्रि पर्व सम्पन्न होगा। कौशल राज्य में स्थित नैमिषारण्य में अठ्ठासी हजार ऋषियों ने हजारों वर्ष तक तप कर इस क्षेत्र को देवमय बनाया। पवित्र अमृतमय गोमती नदी के किनारे स्थित मन-कामेश्वर मंदिर, भूतनाथ, चन्द्रिका देवी, संकट मोचन हनुमान, नागेश्वर शिव मंदिर जो कि पूर्ण जाज्वल्यमान श्रद्धा व विश्वास के प्रतीक स्वरूप में हजारो वर्षो से विद्यमान हैं। ऐसी सभी श्रेष्ठमय स्थितियों को समेटे हुये लखनऊ शहर अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
इस वर्ष का श्रेष्ठतम महाशिवरात्रि पर्व साधक- साधिकाओं के और उनके गण स्वरूप में पुत्र-पुत्रियों के साथ शिव-गौरी गणपति कार्तिकेय स्वरूप में रस्तोगी इण्टर कालेज (रामलीला मैदान के सामने) ऐशबाग लखनऊ (उ- प्र) में 23-24 फरवरी को सूर्य ग्रहण की तेजस्विता के साथ सद्गुरुदेव कैलाश श्रीमाली जी व वन्दनीय माता जी के सानिधय में महामृत्युंजय रूद्राभिषेक रिद्धि सिद्धि शुभ लाभ शत्रुहन्ता महामाया मनोकामना पूर्ति व बल, बुद्धि, ज्ञान प्रदाता संकट मोचक हनुमान शक्ति दीक्षा, चन्द्रिका शक्ति युक्त अखण्ड सुहाग सौभाग्य दीक्षा साधना प्रवचन, हवन, अकंन, साक्षीभूत अभिषेक तपस्यांश चेतना से आने वाले नूतन वर्ष के प्रथम क्षण से ही जीवन में आनन्द, हर्ष, उल्लास, चेतना रूपी शक्ति सम्पन्नता से जीवन सुमंगलमय युक्त हो सकेगा।
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