परन्तु इस आपाधापी के युग में, इन व्यस्तता के क्षणों में, प्रतिस्पर्धा के समय में यह सम्भव नहीं है, कि व्यक्ति अपनी सारी इच्छाओं को पूर्णता दे सके या अपने कार्यों को सफलता दे सके, उसको पग-पग पर परेशानियों का, बाधाओं का, अड़चनों का सामना करना पड़ता है, और निरन्तर रूकावटें उसके जीवन में आती रहती हैं, वह जितना ही प्रयत्न करता है, उतनी ही असफलतायें भी उसके सामने आती-जाती रहती हैं, क्योंकि आज के युग में मित्र कम, शत्रु अधिक बढ़ गये हैं, आज के जीवन में सहायता देने वाले कम, पीठ पीछे छुरा भोंकने वाले ज्यादा बन गये हैं, आज के जीवन में उन्नति की ओर बढ़ाने वाले कम, अपितु मित्र बनकर दुश्मनी करने वाले ज्यादा बढ़ गये हैं।
ऐसे समय में क्या करें? क्या उपाय करें, क्योंकि जीवन तो एक छोटा-सा जीवन है, और इस छोटे से जीवन में पूर्णता प्राप्त कर लेना ही सफलता कही जाती है, चाहे हम किसी भी क्षेत्र में हों, शिक्षा के क्षेत्र में हों, राज्य सेवा के क्षेत्र में हों, व्यापार के क्षेत्र में हों, राजनीति के क्षेत्र में हों या जीवन के किसी भी क्षेत्र में हों, आवश्यकता इस बात की है, कि हम जीवन में उस ऊंचाई तक पहुंच जायें, जो हमारे जीवन का लक्ष्य है, जो जीवन का उद्देश्य है।
परन्तु इस लक्ष्य पर पहुंचने के लिये इस प्रतिस्पर्धा और एक-दूसरे के बीच में द्वन्द्व, द्वेष, कलह की समस्याओं के बीच पूर्ण सफलता प्राप्त कर लेना अत्यन्त कठिन और असम्भव सा हो गया हैं यह भी सम्भव नहीं है, कि हम अपने प्रयत्नों में कोई कमी रख रहे हों, यह भी सम्भव नहीं है, कि हम किसी प्रकार की न्यूनता बरत रहे हों, परन्तु उसके बावजूद भी सफलता नहीं मिल रही है, तो कोई न कोई ऐसा उपाय होना चाहिये, जिससे कि हम कम-से-कम समय में बिना बाधाओं, बिना अड़चनों के उस पूर्ण सफलता को प्राप्त कर सकें।
और यह निश्चित है, कि जब तक देवी सहायता नहीं मिलेगी, तथा मंत्र बल का सहारा नहीं होगा, तब तक किसी न किसी प्रकार का प्रयोग सम्पन्न नहीं हो पायेगा, तब तक अपने प्रयत्नों से सफलता पा लेना अत्यन्त कठिन है, और आज के युग में यह प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं है, कि वह साधना सम्पन्न करे, प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं है, कि वह उच्चकोटि का मंत्र-जप करे या पूर्ण साधना पद्धति को अपनाये, उसके लिये यह सम्भव नहीं है, कि वह समय निकालकर सवा लाख मंत्र-जप कर सके, और अपनी समस्याओं का समाधान करे।
ऐसी स्थिति में यह पत्रिका आपके लिये सहायक बनकर प्रस्तुत है, इस पत्रिका में ऐसे कई प्रयोग हैं, जिसके माध्यम से सैकड़ों-हजारों साधकों ने लाभ उठाया है और पूर्ण सफलता प्राप्त की है, सैकड़ों-हजारों साधकों के पत्रों से यह भी ज्ञात होता है, स्पष्ट होता है, कि उन्होंने मंत्र-जप किया और उन्हें सफलता मिली।
साथ ही साथ इस होली के अवसर पर, जबकि होली का पर्व निकट है, ऐसे समय में ‘अपराजिता यंत्र’ अपने-आप में अद्वितीय यंत्र है। एक नहीं कई ग्रंथों में ‘अपराजिता यंत्र’ का वर्णन और महत्व स्पष्ट है, और यह बताया गया है, कि इसे पहिनने वाला व्यक्ति अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में निश्चित रूप से पूर्ण सफलता प्राप्त करता ही है, चाहे वह व्यापार का क्षेत्र हो या राजनीति का, चाहे नौकरी का हो या प्रमोशन का, चाहे जीवन का कोई भी क्षेत्र हो, प्रत्येक क्षेत्र में निरन्तर उन्नति की ओर अग्रसर होना, और बिना बाधाओं के, अड़चनों के अपनी मंजिल को प्राप्त कर लेने के लिये इस यंत्र की महत्ता लगभग सभी ग्रंथों ने एक स्वर से स्वीकार किया है।
नये वर्ष के प्रारम्भ से होली के बीच का यह जो पूर्ण समय है, वह अपने-आप में अद्वितीय समय है, इसके लिये श्रेष्ठ पण्डितों के द्वारा और पूज्य गुरूदेव के निर्देशन में कुछ ऐसे अपराजय यंत्रों का निर्माण किया गया है, जिसे धारण करने वाला व्यक्ति अपने जीवन की इच्छाओं को भली प्रकार से पूर्णतः कर सके, सफलता अर्जित कर सके, यह यंत्र गले में पहिना जा सकता है, अपनी जेब में रखा जा सकता है या दाहिनी भुजा पर बांधा जा सकता है।
आवश्यकता इस बात की है, कि यह अपने पास रखें, या अपने साथ लेकर किसी से मिलने जाये, या कोई कार्य प्रारम्भ करें, या किसी कार्य क्षेत्र में उन्नति की ओर बढ़ें, तो निरन्तर जो अड़चनें, बाधायें आ रही हैं, वे निश्चित रूप से दूर हो सकेंगी, और हम अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकेंगे, अपने रोगों पर नियन्त्रण प्राप्त कर सकेंगे, अपनी कठिनाइयों पर सफलता प्राप्त कर सकेंगे, और उन कार्यों को सम्पन्न कर सकेंगे, जो अभी तक हमारे जीवन में अधूरे रहे हैं।
उदाहरण के लिये यदि प्रमोशन नहीं हो रहा है, राज्य बाधा है, प्रयत्न करने पर भी पुत्री का विवाह नहीं हो रहा है, मकान नहीं बन रहा है, किसी कार्य में सफलता नहीं मिल रही है, व्यापार प्रारम्भ किया है और उसमें आर्थिक लाभ नहीं हो रहा है, निरन्तर ऋण बढ़ता जा रहा है या घर में कलह है, इन स्थितियों में यह ‘अपराजिता यंत्र’ अपने-आप में वरदान स्वरूप है, विशेष रूप से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना, मुकदमों में सफलता प्राप्त करना और असफलताओं पर विजय प्राप्त करने के लिये यह ‘अपराजिता यंत्र’ अपने-आप में अद्वितीय है ही।
हमने यह निश्चय किया है, कि इस महत्वपूर्ण अवसर पर यह यंत्र बिना शुल्क लिये सर्वथा निःशुल्क साधकों को और शिष्यों को प्रदान किया जाये, इसके लिये अगले पृष्ठ में दी गई सदस्यता फार्म में आप स्वयं अगले एक वर्षं के पत्रिका सदस्य बने एवं किसी मित्र को या स्वजन को पत्रिका सदस्य बनायें, उसका नाम और पता पूर्णरूप से स्पष्ट लिख दें, तथा नीचे अपना नाम और पता भी लिख दें, जिससे कि आपको यह यंत्र भिजवाया जा सके। दो पत्रिका का शुक्ल 700/- रूपया होता है। आप ‘प्राचीन मंत्र-यंत्र-विज्ञान’, खाता नं- 31763681638, स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, यू-आई-टी-, जोधपुर, आई-एफ-एस-सी कोड SBIN0006490, या ‘कैलाश चन्द्र श्रीमाली’ खाता नं-31706102525, स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, यू-आई-टी-, जोधपुर, आई-एफ-एस-सी कोड SBIN0006490, में 700/- रूपया जमा कर आश्रम में जानकारी दीजिये। सदस्यता फार्म में भेजे हुये पते पर निरन्तर एक वर्षं तक दोनों पते पर प्रतिमाह यह पत्रिका प्राप्त होती रहेगी, यह आपकी तरफ से उस मित्र को एक श्रेष्ठ उपहार होगा।
यह यंत्र आपको सुरक्षित रूप से प्राप्त हो सकेगा तथा इस यंत्र का आप उपयोग करें या अपने सम्बन्धी या रिश्तेदार के लिये, मित्र या स्वजन के लिये, पुत्र या परिवार के सदस्य के कल्याण के लिये भी इस यंत्र को उपहार स्वरूप दे सकते हैं। परन्तु ये यंत्र कम मात्रा में ही निर्मित हो सके हैं, इसलिये कुछ चुने हुये व्यक्तियों को ही या जिनके आर्डर पहले प्राप्त हो जायेंगे, उनको यह यंत्र भिजवाने की व्यवस्था की जा सकेगी, यदि किसी सदस्य को यंत्र नहीं भिजवा सकें या नहीं प्राप्त कर सकें, तो इसके लिये हम पहले से ही क्षमा प्रार्थी हैं।
वस्तुतः होली से राम नवमी तक के अवसर पर अपने-आप में वरदान स्वरूप इस ‘अपराजिता यंत्र’ को धारण करने से आप स्वयं अनुभव कर सकेंगे, कि आपने अपने जीवन में अपनी बाधाओं, अपनी समस्याओं, अपनी अड़चनों, अपनी कठिनाइयों को दूर किया है, और जीवन में पूर्ण सफलता, यश, सम्मान, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा और पूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त किया है। हमें प्रसन्नता है, कि आप अपने जीवन में अपराजेय बनें, ऐसा ही आपको आशीर्वाद है।
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