उसका जीवन कर्म राशि भार के नीचे दबा होता है, संचित कर्म मनुष्य के पूर्व जन्म के वे कर्म होते हैं, जिन्हें वह अभी तक नहीं भोगा है। ये कर्म संस्कार बनकर इस जीवन में भी उसके साथ रहते हैं। इसी प्रकार प्रारब्ध का तात्पर्य भाग्य है, पूर्व जन्म में किये गये अनगिनत कर्मों के फलस्वरूप जो यह जीवन मिला है, वे कर्म प्रारब्ध कहलाते हैं, इन कर्मों को इसी जीवन में भोगना पड़ता है।
यही कारण है कि जो व्यक्ति अपने इस जीवन में इतने सुकर्म, पूजा, साधना, शुभ कार्य आदि सम्पन्न करने पर भी असफल है, जीवन में अथक परिश्रम करने पर भी, सम्यक प्रयास करने पर भी बार-बार असफलतायें मिलती हों, सामान्य से भी निचले स्तर पर जीवन जीने को विवश होना पड़े, इसका एकमात्र कारण यही है कि उसका जीवन पूर्व जन्म के कर्मों के फल स्वरूप बाधित है।
वास्तव में संचित एवं प्रारब्ध कर्मों के कारण मनुष्य का जीवन एक कठपुतली की भांति हो जाता है। वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता है और भाग्य या प्रारब्ध के लेखों के आगे विवश होता है।
सद्गुरुदेव नारायण ने चुनौती पूर्वक शिष्यों से कई बार कहा है, कि ऐसा नहीं कि विधाता ने जो एक बार तुम्हारे भाल पर लिख दिया है, उसे बदला नहीं जा सकता है, मैं तुम्हारे माथे पर लिखी दुर्भाग्य की रेखाओं को मिटाकर पुनः उस पर नयी पंक्तियां अंकित करता हूं, यही सद्गुरु का कार्य भी है।
और यह सम्पन्न होता है क्रियामाण दीक्षा के माध्यम से, सद्गुरु शिष्य का नव निर्माण करने से पूर्व उसे जो मृत्यु देते हैं, वह मृत्यु उसके इन्हीं दूषित कर्मों की मृत्यु होती है, जिसके भार से दबा हुआ वह प्रगति नहीं कर पाता, उसके मार्ग में बार-बार बाधा आती रहती है।
क्रियामाण दीक्षा साधक में एक नवीन ऊर्जा का प्रस्फुटन करती है, उसके अन्दर उत्साह, चेतना, उमंग, जोश, कार्य क्षमता, परिश्रम और सफलता की संयुक्त विद्युत रश्मियां प्रवाहित कर देती है। यह क्रिया एक सतत् पूर्ण प्रभावी प्रक्रिया होती है, जिसके प्रभाव से शनैः शनैः साधक के कर्म जन्य दोष भस्मीभूत होने लगते हैं।
होली पूर्ण तांत्रोक्त सिद्ध चैतन्य दिवस है, जिस दिन अनेक विशिष्ट साधनात्मक क्रियायें सम्पन्न की जाती हैं, इस दिव्य दिवस पर गुरुधाम-जोधपुर में होली महोत्सव सम्पन्न होगा, आपका हृदय भाव से स्वागत है—! परन्तु यदि आप ना पाये तो भी यह विशिष्ट क्रियामाण दीक्षा अवश्य ग्रहण करें, क्योंकि होली पर्व का तात्पर्य ही दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने की क्रिया है, यह उच्चकोटि की क्रिया परम पूज्य सद्गुरुदेव होली महापर्व पर क्रियामाण शक्तिपात दीक्षा के माध्यम से सम्पन्न करेंगे, दीक्षा प्राप्त करने हेतु आप अपना फोटो ई-मेल, वाट्सअप, पत्र आदि द्वारा जोधपुर कार्यालय भेज दें और दीक्षा न्यौछावर आन-लाईन बैंकिंग, पे टी एम, बैंक आदि माध्यम से भेजकर दीक्षार्थी रूप में अपना पंजीकरण पूर्व में ही सुनिश्चित कर लें।
दीक्षा समयः- 01 मार्च सांय 07:47 से 08:22 तक अपने पूजा स्थान में ध्यान मुद्रा में बैठ कर गुरु मंत्र का मानसिक जप करें।
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