गुरु-जन्म दिवस, यह शब्द ही बेमानी है, क्योंकि गुरु न तो मृत्यु को प्राप्त होते हैं और न कभी जन्म लेते हैं।
वे समय-समय पर अलग-अलग ग्रहों में सशरीर अवतरित होते रहते हैं और उस ग्रह के प्राणियों का मार्ग दर्शन करते रहते हैं।
कभी सूर्य लोक, कभी चन्द्र लोक, कभी वरूण, यक्ष, और कभी इन्द्र लोक में, वे कुछ वर्षों तक सशरीर वहां रहते हैं और अपने ज्ञान से, चेतना से, प्राणस्विता से, वहां के निवासियों का मार्ग दर्शन करते रहते हैं।
तुम अभी तक न तो गुरु को जान पाये हो और न भक्ति तत्व को।
गुरु मंत्र जप गुरु के साहचर्य का प्रतीक है।
पर इससे भी आगे बढ़ कर गुरु को अपने हृदय में उतारना होगा।
जब गुरु के वियोग में, बिना उसको देखे आंखें डब-डबायेगी तो भक्ति का द्वार स्वतः खुल जायेगा।
जब तुम्हारे गले में हिचकी, उच्छवास, सिसकारी ध्वनित होगी, तब मन की सितार पर स्वतः गुरु ध्वनि गुंजरित होने लग जायेगी।
जब गला रूंधा जायेगा, रूलाई के मारे बोल फ़ूट नहीं पड़ेंगे, तब स्वतः समाधि की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जायेगी।
जब आंखों से अश्रुकण निकल कर गालों पर से लुढ़कने लग जायेंगे, तब स्वतः गुरु मन्दिर के द्वार पूरी तरह से खुल जायेंगे, चारों तरफ़ फ़ूल खिल जायेंगे और तुम्हारा मन स्वतः शान्त हो जायेगा, इसी को ‘समाधि’ कहते हैं।
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